दिल्ली पुलिस ने 6 मई को दक्षिणी दिल्ली के एक फार्महाउस और लोधी कॉलोनी के एक रेस्तरां में छापा मारा और अभी तक के सबसे बड़े छापे के तौर पर वहां से 400 से अधिक ऑक्सीजन कन्सन्ट्रेटर जब्त किए गए, जिसे कालाबाजारी करके वास्तविक कीमत से लगभग 3.5 गुनी कीमत पर बेचा जाना था। उसी दिन, दिल्ली सरकार ने निजी ऐंबुलेंस सेवाओं के लिए अधिकतम दरों को तय किया, क्योंकि खबरों में यह बात सामने आई थी कि वे कोरोना की इस दूसरी लहर के दौरान अपनी सामान्य दरों के मुकाबले दो से पांच गुना किराया ले रहे थे।
इस कार्रवाई से चार दिन पहले, दिल्ली के शाहदरा जिले के अधिकारियों ने दो व्यक्तियों को नकली रेमडेसिविर के साथ गिरफ्तार किया था, जिन्हें वे प्रति इंजेक्शन 35,000 रुपये में बेच रहे थे। इसी तरह, शुक्रवार (7 मई) को, एक अन्य छापे में, पुलिस ने भारत के सबसे महंगे बाजारों में से एक खान मार्केट के दो लोकप्रिय भोजनालयों से 100 से अधिक ऑक्सीजन कन्सन्ट्रेटर जब्त किए थे।
एक तरफ जब देश का चिकित्सकीय ढांचा कोरोना की दूसरी लहर के दौरान असमर्थ सा हो गया है, दूसरी तरफ, इसके समानांतर देश में ठग, कालाबाजारी और जालसाजों की भी भरमार देखी जा रही है। अस्पतालों में ऑक्सीजन सिलिंडर, कन्सन्ट्रेटर , कोरोना के लिए आवश्यक दवाओं और यहां तक कि ऑक्सीजन बेड की तत्काल जरूरत वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। सोशल मीडिया पर, कई लोग गैरजिम्मेदार ऑपरेटरों से बात कर रहे हैं, जो एडवांस में काफी अधिक पैसे लेने के बाद रफूचक्कर हो रहे हैं या नकली ऑक्सीजन सिलिंडर, नकली रेमडेसिविर, फैविफ्लू और टोसीलिजुमैब दवाएं दे रहे हैं।
उदाहरण के लिए, जब 3 मई को पश्चिमी दिल्ली में रहने वाले सात लोगों के परिवार में सभी का कोरोना टेस्ट पॉजिटिव आया और दो सदस्यों को तत्काल उच्च प्रवाह वाले ऑक्सीजन सिलिंडर की आवश्यकता हुई तो उन्होंने एक अज्ञात आपूर्तिकर्ता को एक सिलिंडर के लिए 50,000 रुपये की कुल तय राशि में से 50 प्रतिशत का अग्रिम भुगतान कर दिया। व्यक्ति ने कुछ घंटों में में सिलिंडर पहुंचाने का वादा किया था लेकिन वह पहुंचा ही नहीं। हताश होकर उन्होंने एक और सिलिंडर के लिए 1 लाख रुपये का भुगतान किया, जो अंतत: उन्हें घंटों बाद मिला। सिलिंडर की कीमत सामान्य रूप से 4,000 रुपये से अधिक नहीं होनी चाहिए।
दिल्ली के एक अन्य व्यक्ति ने अपने गंभीर रूप से बीमार पिता के लिए घर पर आईसीयू स्थापित करने के लिए ट्विटर पर संपर्क किया तथा संबंधित व्यक्ति को एक लाख रुपये का भुगतान किया। जैसे ही उन्होंने पैसे ट्रांसफर किए, संबंधित व्यक्ति से दोबारा संपर्क ही नहींं हो पाया। जब पानीपत निवासी एक महिला का 10 दिन बाद भी तापमान एवं ऑक्सीजन सैचुरेशन सही नहीं हो सका तो चिकित्सक ने रेमडेसिविर लेने के लिए कहा। महिला ने इसे ऑनलाइन 30,000 रुपये में खरीदा जबकि इसकी खुदरा बाजार में कीमत 3,000 रुपये से कम होती है। हालांकि उन्होंने दवाई ले ली लेकिन वह इस बात का पता नहीं लगा सकती थीं कि दवाई असली थी भी या नहीं।
कोविड-19 से जुड़े संसाधनों के बारे में जानकारी जुटाने के लिए बनाए गए फेसबुक ग्रुप ‘कोविड कम्युनिटी दिल्ली/एनसीआर-इन्फॉर्मेशन फैक्ट्स सपोर्ट’ की संचालक मीता मस्तानी बताती हैं, ‘रोजाना सत्यापन के दौरान ग्रुप पर चिकित्सा उपकरण, दवाइयां, प्लाज्मा और अन्य सेवाएं उपलब्ध करने की बात करने वाले कम से कम पांच पोस्ट संदिग्ध होते थे। पिछले 10 दिन में हमने कई खतरनाक पोस्ट की पहचान की जिसमें सेवा प्रदाता अपना पता नहीं बताता हैं, और 50 प्रतिशत ऑनलाइन अग्रिम पर जोर देने के साथ ही घर पर उपकरण देने की पेशकश करते हैं। यह खतरे की घंटी हैं।’
ऐसे मामलों में अधिकांश बार जब वह इस बात पर जोर देती हैं कि सामग्री प्रदाता अपना पता बताए जहां से वे स्वयं जाकर उपकरण ले लें तो सेवा प्रदाता फंस जाता है और उनका नंबर ब्लॉक कर देता है। मस्तानी के साथ ही कई अन्य सिविल सोसाइटी समूह एवं रेडियो चैनल रेड एफएम घोटालेबाजों की पहचान की मुहिम चला रहे हैं लेकिन उनका मानना है कि यह कालाबाजारी तब तक बनी रहेगी, जब तक कि सरकार कोविड-19 से जुड़े उपलब्ध मेडिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर के बारे में जनता को विश्वसनीय जानकारी नहीं देगी।
स्वास्थ्य क्षेत्र के बुनियादी ढांचे के बारे में बेहतर गुणवत्ता की मांग कोई नई बात नहीं है। महामारी से बहुत पहले, सूचना का अधिकार (आरटीआई) कार्यकर्ताओं का कहना है कि सरकार इस बात का खुलासा करे कि कितने अस्पतालों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) और नियमित रोगियों, दोनों के लिए बिस्तर उपलब्ध हैं।
2 मई को सरकारी कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिए काम करने वाले दिल्ली के नागरिक समूह- सतर्क नागरिक संगठन की आरटीआई कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज ने बिस्तरों की उपलब्धता, आवश्यक दवाओं और ऑक्सीजन के वितरण की सत्यापित, अद्यतन जानकारी की आवश्यकता पर जोर डालते हुए सामग्री वितरण के संबंध में उच्चतम न्यायालय में चल रहे सूओ मोटो मामले में हस्तक्षेप की मांग की थी।
भारद्वाज ने बताया, ‘हमने कहा है कि हर राज्य में कोविड अस्पतालों (सरकारी और निजी) में उपलब्ध बिस्तरों की संख्या, ऑक्सीजन सुविधा वाले बिस्तर, बिना ऑक्सीजन वाले बिस्तर, वेंटिलेटर से लैस आईसीयू बिस्तरों के बारे में प्रत्येक आठ घंटे में जानकारी अद्यतन होनी चाहिए।’ वह प्रत्येक अस्पताल में उपलब्ध आवश्यक दवाओं के नाम और स्टॉक की स्थिति के बारे में भी जानकारी साझा करने की मांग कर रही हैं। इसके अलावा, उन्होंने मांग की है कि प्रत्येक राज्य को ऑक्सीजन की आवश्यकता और केंद्र से आपूर्ति के बारे में जानकारी देने वाली एक समर्पित वेबसाइट भी बनाई जाए।
भारद्वाज कहती हैं, ‘यह कोविड रोगियों के लिए जीवन-रक्षक संसाधनों तक आसान पहुंच सुनिश्चित करेगा। यह सार्वजनिक निगरानी को सक्षम करके निहित स्वार्थी तत्त्वों द्वारा संसाधनों की कालाबाजारी, जमाखोरी, जबरन वसूली और कॉर्नरिंग (एकाधिकारात्मक क्रय) पर भी रोक लगाएगा।’