कांग्रेस नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन को समर्थन देने के मुद्दे पर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी यू-टर्न लेती नजर आ रही है।
जुलाई में संप्रग सरकार को बाहर से समर्थन दे रही माकपा की कांग्रेस से परमाणु करार पर जमकर तकरार हुई और उसने कांग्रेस से नाता तोड़ लिया। हालांकि अब माकपा इस विकल्प पर विचार कर रही है कि आगामी लोकसभा चुनावों के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती को प्रधानमंत्री पद के लिए समर्थन देने के बजाय वह कांग्रेस का हाथ थाम ले।
हालांकि इस बार माकपा कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने से पहले पूरी रणनीति तैयार करेगी, यानी अगर कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार बनती है, तो माकपा मुद्दों के आधार पर कांग्रेस का समर्थन करेगी। माकपा के एक वरिष्ठ सूत्र ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि कांग्रेस अगर आगामी चुनावों में मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित करती है, तब भी वामपंथी इसका विरोध नहीं करेंगे।
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि कांग्रेस का नेता कोई भी हो, अगर वह हमारे मुद्दों से सहमत होगा, तभी समर्थन की बात की जाएगी। हालांकि इससे पहले भी माकपा ने न्यूनतम साझा कार्यक्रम के तहत कांग्रेस को समर्थन दिया था, लेकिन परमाणु करार मसले पर दोनों के बीच नहीं बनी और समर्थन वापस लेना पड़ा।
वामपंथियों का मानना है कि मायावती की तुलना में कांग्रेस को समर्थन देना ज्यादा बेहतर रहेगा, क्योंकि बसपा जाति आधारित राजनीति करती हैं। माकपा के एक वरिष्ठ सदस्य ने बताया कि मायावती यह तो चाहती हैं कि अन्य पार्टियां उन्हें प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में समर्थन करें, लेकिन सीटों के बंटवारे पर वह सहमत होती नजर नहीं आती हैं।
माकपा चुनाव से पहले लालू प्रसाद की राजद से भी कोई समझौता नहीं करेगी। इन सभी संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए 20 और 30 नवंबर को दिल्ली में आयोजित होने वाली पार्टी की पोलित ब्यूरो बैठक में इसे अंतिम रूप दिया जा सकता है।
बिहार में माकपा लालू प्रसाद के राजद को छोड़ अकेले चुनाव लड़ेगी, क्योंकि राजद संप्रग में शामिल है। और माकपा कांग्रेस के साथ चुनाव पूर्व समझौता करने को तैयार नहीं है। पार्टी की पिछली बैठक में राज्य के नेताओं ने राजद से किसी भी तरह के समझौते करने का पुरजोर विरोध किया था।
पिछले चुनाव में भाकपा ने रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी का हाथ थामा था, तो माकपा ने लालू प्रसाद की राजद के साथ मिलकर चुनाव में हिस्सा लिया था। यही नहीं, चुनाव के दौरान माकपा राज्य में कांग्रेस की नीतियों का भी विरोध करती नजर आएगी।
हालांकि माकपा के महासचिव प्रकाश करात ने इस बात के संकेत दिए हैं कि पार्टी फिर से कांग्रेस का समर्थन कर सकती है। दरअसल, करात ने सिंतबर माह में नई दिल्ली में आयोजित एक सेमिनार में कहा था कि कांग्रेस का साथ छोड़ कर भाजपा को मौका देना उचित नहीं होगा। इससे यह कयास लगाए जा रहे हैं कि माकपा देर-सवेर कांग्रेस को ही समर्थन देगी।