विदेश के कुछ विश्वविद्यालय इस बात को लेकर उलझे हैं कि अगर वे अपने पेपर या शोध परिणाम को भुगतान के आधार पर साझा करते हैं तो उन पर गूगल कर लगेगा या नहीं। इसे लेकर कानून की स्थिति साफ नहीं है। इसी तरह के कई और सवालों के जवाब नहीं मिल रहे हैं, जैसे अगर किसी विदेशी बैंक का ग्राहक भारत में है तो उसे कर का भुगतान करना होगा या नहीं। इस कर को इक्वलाइजेशन लेवी कहा जा रहा है, जो ऑनलाइन लेन देन पर लगेगा।
यह दर्जनों सवाल में से कुछ सवाल हैं, जहां कानून लागू होने और कर देनदारी की संभावना बनती है। इसे प्रवासी इकाइयों पर दोहरा कर लग सकता है। सरकार ने इस मसले पर अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (एफएक्यू) जारी करने से इनकार कर दिया है। कानून में अस्पष्टता से अनुपालन प्रभावित हो रहा है। 20 जुलाई तक संग्रह 25 प्रतिशत गिरकर 236 करोड़ रुपये रह गया है, जो पिछले साल की समान अवधि में 314 करोड़ रुपये था। जबकि इस साल इस तरह के कारोबार में बढ़ोतरी हुई है। पहली तिमाही के लिए इक्वलाइजेशन लेवी के भुगतान की अंतिम तिथि 7 जुलाई थी। फेसबुक, गूगल, एमेजॉन, उबर, नेटफ्लिक्स जैसी वैश्विक डिजिटल कंपनियां इस शुल्क के दायरे में आती हैं।
दरअसल भारत के पूर्व अंतरराष्ट्रीय कर के प्रमुख वार्ताकार अखिलेश रंजन ने भी कहा है कि यह कानून कुल मिलाकर साफ नहीं है और सरकार को करदाताओं पर लगने वाले नए शुल्क पर स्थिति साफ करनी चाहिए, जिससे अनुपालन सुनिश्चित हो सके। उन्होंने विभाग की ओर से एफएक्यू जारी किए जाने का पक्ष लिया था, जो प्रत्यक्ष कर विवाद से विश्वास अधिनियम जैसे सामान्य मामलों में भी जारी हुआ था।
वित्त सचिव अजय भूषण पांडेय ने उद्योग के एक कार्यक्रम में बोलते हुए इस मसले पर एफएक्यू जारी किए जाने की संभावना को खारिज करते हुए तर्क दिया था कि यह कानून बहुत सरल और विशेष स्थितियों में कर देनदारी को साफ करने वाला है।
अखिलेश रंजन ने इसके खिलाफ राय देते हुए कहा कि बगैर किसी एडवांस रूलिंग के सरकार अब बी शर्तों के अर्थ साफ कर सकती है, जिससे करदाता देनदारी की गणना कर सकें। उदाहरण के लिए इस बात को लेकर स्पष्टता की जरूरत है कि क्या यह शुल्क ई-कॉमर्स ऑपरेटर द्वारा एकत्र किए गए पूरे धन पर लगेगा या सिर्फ उसके द्वारा लिए जाने वाले कमीशन पर? अखिलेश रंजन ने कहा, ‘हमें कर देनदारी की गणना करने में निश्चित रूप से करदाताओं की मदद करनी चाहिए। मैं पूरी तरह से इक्वलाइजेशन लेवी के पक्ष में हूं। लेकिन करदाता को पता होना चाहिए कि उसकी देनदारी क्या है और उसे कब इसका अनुपालन करना है।’
ऐसी ई-कॉमस कंपनियां, जो प्रवासी के रूप में परिभाषित हैं और वस्तुओं की ऑनलाइन बिक्री या सेवाओंं की ऑनलाइन बिक्री या दोनों के लिए ऑनलाइन सुविधा या प्लेटफॉर्म का प्रबंधन करती हैं, उन पर कानून की स्थिति क्या होगी। इससे यह बहुत व्यापक विषय हो जाता है कि इसमें सभी ऑनलाइन लेनदेन शामिल होगा, जिसमें समर्पित ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस या प्रवासी वस्तु एवं सेवा प्रदाता के साथ ऑनलाइन बैंकिंग के साथ विदेशी बैंक, विदेशी विश्वविद्यालय, शोध संस्थान और यहां तक कि अपना सामान भेजने वाले विदेशी भंडार भी शामिल होंगे।
एकेएम ग्लोबल में पार्टनर अमित माहेश्वरी ने कहा कि ऑस्ट्रिया में स्थित एक फर्म भारत में अपनी सहायक इकाई को आईटी सेवाएं मुहैया करा रही है और सहायक कंपनी द्वारा ट्रांसफर प्राइसिंग सिद्धांतों के मुताबिक भुगतान किया जाता है। वह कहते हैं कि अभी यह चर्चा का विषय बना हुआ है कि क्या ऑस्ट्रिया की फर्म भी अपनी सहायक कंपनी के माध्यम से सेवा के सामान्य प्रावधानों के तहत गैर प्रवासी ई-कॉमर्स ऑपरेटर है या नहीं।
डिजिटल कर लगाने वाले ब्रिटेन फ्रांस या इटली जैसे अन्य देशों ने प्रवासी सेवा प्रदाताओं को डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से वस्तुएं या सेवाएं देने को इससे अलग रखा है।
