चार दशक से भारत और पाकिस्तान के बीच फिल्मों के प्रदर्शन पर लगा प्रतिबंध खत्म होने से भारत में पाकिस्तानी फिल्मों के बाजार के परवान चढ़ने की उम्मीद बनने लगी है।
हाल ही में पाकिस्तानी फिल्म ‘खुदा के लिए’ भारतीय सिनेमाघरों में रिलीज हुई। इस फिल्म को दर्शकों को काफी सराहना मिल रही है। यह फिल्म भारत और पाकिस्तान के बीच संस्कृति, खेल की तरह मनोरंजन की साझेदारी की ही एक कड़ी समझी जा सकती है।
इस फिल्म के जरिए पाकिस्तानी सिनेमा भारत में एक बार फिर जिंदा हो गया है। यह फिल्म इस मायने में भी खास है कि इसने पाकिस्तानी फिल्मों की परंपरागत छवि को भी तोड़ने का काम किया है। यह फिल्म 911 को हुए अमरीका में आतंकी हमले की पृष्ठभूमि पर आधारित है। इस फिल्म में उस घटना के बाद मुसलमानों की स्थिति को दर्शाया गया है।
के. डी. फिल्म्स के डॉ. आनंद शुक्ला का कहना है, ‘खुदा के लिए, को जिस तरह का रिस्पांस मिला है, उससे एक बात तो तय है कि यह एक टर्निंग प्वाइंट माना जा सकता है।’ हालांकि शुक्ला यह मानते हैं कि जब यह फिल्म रिलीज हुई, उस समय बाजार में और भी फिल्में रिलीज हो गईं थी, उसकी वजह से शुरुआत तो धीमी थी लेकिन अब थोडे दिनों में और भी बेहतर रिस्पांस मिलेगा।
गौरतलब है कि भारत और पाकिस्तान ने 1965 में हुए युद्ध के बाद अपने यहां एक-दूसरे की फिल्म दिखाने पर पाबंदी लगा दी थी। हालांकि हाल के वर्षो में राजनीतिक संबंधों में सुधार के बाद इसमें थोड़ी तब्दीली भी आई और पाकिस्तान के सिनेमाघरों में भारतीय फिल्में विशेष अनुमति के तहत दिखाई जाने लगीं।
वैसे तो भारतीय फिल्में पाकिस्तान में भी काफी लोकप्रिय हैं। वहां बॉलीवुड का जादू सिर चढ़ कर बोलता है। पाकिस्तान में भारतीय फिल्मों, टेलीविजन धारावाहिकों के अलावा गानों की पाइरेटेड सीडी, वीसीडी खूब बिकती हैं।
कुछ समय पहले पाकिस्तान सरकार ने यह कहा था कि अगर एक हिंदी फिल्म पाकिस्तान में रिलीज होती है तो उसके बदले एक पाकिस्तानी फिल्म भी भारत में रिलीज की जानी चाहिए। पाकिस्तानी सिनेमाघरों के मालिकों के दबाव की वजह से पाकिस्तानी संसदीय समिति ने भारतीय फिल्मों को वहां प्रदर्शन की इजाजत दी है। हालांकि अभी पाकिस्तान के राजनीतिक हालात काफी अस्थिरता के दौर में है।
शायद इसका भी असर है कि पाकिस्तानी फिल्म उद्योग का हाल फिलहाल वहां बेहाल है। वहां कई सिनेमाघर बंद हो चुके हैं। एक ओर भारत में जहां साल भर में लगभग 1000 फिल्में बनती हैं, वहीं पाकिस्तान में महज 40 फिल्में। पाकिस्तान में फिलहाल स्थिति ऐसी है कि वहां सिनेमा को कभी भी उद्योग का दर्जा ही नहीं दिया गया।
मुंबई में फिल्म ट्रेड एनालिस्ट कोमल नाहटा का कहना है-‘ भारत में पाकिस्तानी फिल्मों के लिए बेहतर संभावनाएं हैं। ‘खुदा के लिए’ को बेहतर ओपनिंग मिली है। इसकी वजह यह है कि हमारे क ल्चर में काफी हद तक समानता है। अभिनय के मामले में भी कोई ज्यादा फर्क नहीं दिखता है। हां अगर उर्दू डायलॉग अगर कुछ कम हो तो हमारे देश के ज्यादातर लोग उसे पसंद करेंगे।’
नाहटा यह मानते हैं कि हिंदी फिल्मों के सामने फिलहाल जो चुनौतियां हैं कुछ वैसी ही चुनौतियां पाकिस्तानी फिल्मों के सामने भी हैं। उनका कहना है कि चार दशक बाद फिल्मों के जरिए ही सरहदों की दूरियां कम हो तो बेहतर होगा।
‘खुदा के लिए’ के बाद सलाखें आई और अब युवा निर्देशक महरीन जब्बार की फिल्म ‘रामचंद पाकिस्तानी ‘ आने वाली है। इसमें भारतीय अभिनेत्री नंदिता दास ने भी काम किया है और शुभा मुद्गल ने इस फिल्म के लिए गीत भी गाया है।
वरिष्ठ फिल्म समीक्षक प्रयाग शुक्ल का कहना है कि यह एक बेहतरीन फिल्म है और सरकार की ऐसी कोशिशों की तारीफ होनी चाहिए। वे यह जरूर मानते हैं कि साहित्य, थियेटर, फाइन आर्ट्स में भी दोनों देशों के बीच साझेदारी की कोशिशें जारी हैं इसलिए उम्मीद है कि कला और मनोरंजन पर सरहदों की पाबंदी नहीं होगी।