देश जैसे-जैसे वैश्विक महामारी कोविड-19 की दूसरी विनाशकारी लहर से उबरता हुआ प्रतीत हो रहा है, बुखार के मामलों में अचानक इजाफा हुआ है। इनमें से कुछ मामले मलेरिया और डेंगू जैसी मॉनसून के बाद की बीमारियों के हैं, जबकि अन्य मामले इन्फ्लूएंजा और अन्य वायरल बुखार के हैं।
हालांकि अगर वर्ष 2021 की तुलना वर्ष 2019 से करें, तो मॉनसून की शुरुआत तक बुखार के मामले ज्यादा चिंताजनक नहीं हैं। इस साल जून के आस-पास बुखार के लगभग 53,343 मामले दर्ज किए गए हैं, जबकि वर्ष 2019 में पूरे साल 6,25,651 मामले सामने आए थे। महामारी से प्रभावित वर्ष 2020 एक ऐसा असामान्य साल रहा, जब बुखार के मामलों में काफी गिरावट आ गई (2,69,840 मामले), क्योंकि लोग घरों के अंदर रहे और उन्होंने मास्क पहनने जैसी सावधानी बरती। हालांकि देश में मॉनसून के बाद का परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। कुछ चिकित्सक बताते हैं कि कोविड संबंधित बाल चिकित्सा के मामलों में हाल ही में वृद्धि हुई है।
हैदराबाद के यशोदा हॉस्पिटल्स में गंभीर बाल चिकित्सा देखरेख के प्रमुख सलाहकार सुरेश कुमार पानुगंटी ने कहा कि पिछले दो से तीन सप्ताह में कोविड-19 संबंधित बाल चिकित्सा मामलों में पिछले तीन महीनों के मुकाबले लगभग 10 प्रतिशत तक का इजाफा हुआ है। पानुगंटी ने कहा कि लहरें उठ रही हैं, जैसा कि सभी ने भविष्यवाणी की है। हालांकि फिलहाल हम जिन बच्चों की जांच कर रहे हैं, उनमें से पांच प्रतिशत से भी कम बच्चे कोविड-19 संक्रमित निकल रहे हैं। इसलिए यह अभी चिंताजनक नहीं है। चिकित्सक इस बात का संकेत देते हैं कि मार्च 2020 की तुलना में बच्चों से संबंधित कोविड के लक्षणों में बदलाव आया है। चिकित्सक कहते हैं ‘तब बच्चों में श्वसन संबंधी लक्षण नहीं थे, वे आमतौर पर जठरांत्र संबंधी मार्ग वाले लक्षणों के साथ मौजूद होते थे। आगे चलकर हमने यह देखा है कि वे फ्लू के लक्षणों-खांसी, सर्दी, बुखार, शरीर में दर्द आदि के साथ आ रहे हैं।
क्या यह तीसरी लहर का संकेत है?
ऐसी खबरें आ रही थीं कि बच्चों पर कोविड की तीसरी लहर का अधिक असर पडऩे की आशंका है। वेलूर में क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज की प्रोफेसर डॉ. गगनदीप कांग ने कहा ‘हमारे पास सीरो-सर्वेक्षण के आंकड़े हैं, जो यह बताते हैं कि 60 प्रतिशत बच्चे पहले से ही वायरस के संपर्क में आ चुके हैं। मुझे नहीं लगता कि अगर तीसरी लहर आती है, तो वे विषम आनुपातिक रूप से प्रभावित होंगे। हमें बच्चों में बीमारी मापने के अपने प्रयास पर अब तक की तुलना में और ज्यादा ध्यान केंद्रित करना चाहिए।’ उन्होंने कहा कि इससे अधिकारियों को बच्चों में जोखिम का आकलन करने में मदद मिलेगी और टीकाकरण से संभावित जोखिम को भी संतुलित किया जा सकता है। उत्तर प्रदेश में दर्ज की गई मौतों के इजाफे ने ग्रामीण इलाकों में फैल रहे ‘रहस्यमयी बुखार’ के संबंध में डर फैलाने वाली सुर्खियां आने लगी हैं।
इसका एक उदाहरण देखिए – 1 जनवरी से 15 सितंबर तक मध्य प्रदेश में डेंगू के कुल 3,500 मामले देखे गए, जबकि वर्ष 2020 में साल भर केवल मात्र 806 मामले ही देखे गए थे। राज्य के स्वास्थ्य विभाग के दिल की धड़कन जिस बात से बढ़ रही है, वह ये आंकड़े हैं कि 15 अगस्त से 15 सितंबर की अवधि के बीच 50 प्रतिशत (करीब 1,750 मामले) दर्ज किए गए हैं।
वेक्टर जनित बीमारियों के नियंत्रण के लिए राज्य कार्यक्रम अधिकारी हिमांशु जयस्वर ने कहा ‘इस साल अब तक हमारे पास डेंगू के लगभग 3,500 मामले थे। सामान्य वयस्कों के ही संक्रमण मामले हैं, कोई भी बच्चा प्रभावित नहीं हुआ है।’ हालांकि राज्य ने मौतों के केवल पांच मामले दर्ज किए हैं। मध्य प्रदेश की कहानी भारत में उस बुखार के मामलों में अचानक वृद्धि होने का एक अच्छा उदाहरण हो सकती है, जिसे कई लोगों ने रहस्यमयी बुखार कहा है। इससे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, हरियाणा और पश्चिम बंगाल सहित पांच राज्यों में 100 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में केवल फिरोजाबाद और मथुरा में ही करीब 72 मामले सामने आए हैं।
विशेषज्ञ इस बात की ओर इंगित करते हैं कि मामलों में इस अचानक वृद्धि की असली वजह वर्ष 2020 में कम आधार होना हो सकता है। वर्ष 2019 के मुकाबले वर्ष 2020 में मलेरिया के मामलों में 46 प्रतिशत, डेंगू में 78 प्रतिशत और चिकनगुनिया के मामलों में 47 प्रतिशत की गिरावट आई थी। दूसरी ओर पश्चिम बंगाल के उत्तर बंगाल इलाके में वायरल संक्रमण ने 1,000 से अधिक बच्चों को चपेट में लिया है। यहां पहले ही छह बच्चों की मौत हो चुकी है। राज्यों और नगर निकायों ने बुखार के मामलों की निगरानी शुरू कर दी है। मुंबई में बीएमसी बाल रोग विशेषज्ञों के साथ निगरानी कर रही है और शहर के ऐसे सभी बाल-विशेषज्ञों को बुखार की सूचना देने के लिए अधिकारियों से पत्र मिले हैं।
