केंद्र सरकार की अनाज खरीदने वाली एजेंसी भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) उत्पादकों से हर सीजन में गारंटीयुक्त दाम पर किसानों से गेहूं और चावल खरीदती है। अब किसानों को डर है कि नए कृषि कानून लागू होने के बाद यह खरीद बंद हो जाएगी। किसानों का कहना है कि नए कानून से नियमन के दायरे में आने वाली मंडियां बंद हो जाएंगी, जहां वे उत्पाद बेचने को लेकर निर्भर हैं। भारत के खाद्य कल्याण कार्यक्रम की आपूर्ति और तय मूल्य पर अनाज खरीद के लिए एफसीआई ही एकमात्र एजेंसी है, जो अब भारी कर्ज में डूब गई है। विश्व के सबसे बड़े खाद्य कल्याण कार्यक्रम को चलाने के लिए केंद्र सरकार वर्षों से एफसीआई के माध्यम से अनाज खरीदती है। साथ ही किसानों को संतुष्ट करने के लिए उसे जरूरत से ज्यादा अनाज खरीदने के आदेश दिए जाते हैं। एफसीआई की सुरक्षा का ढांचा खासकर पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के किसानों को गेहूं और चावल उत्पादन को प्रेरित करता है।
एफसीआई 80 करोड़ से ज्यादा लाभार्थियों को 5 किलो चावल और गेहूं हर महीने क्रमश: 3 रुपये और 2 रुपये प्रति किलो के भाव आपूर्ति करता है। तमाम राज्यों में बंपर उत्पादन और खरीद बढऩे की वजह से एफसीआई के गोदाम भर गए हैं। जून 2020 फसल वर्ष की समाप्ति तक एफसीआई के पास चावल और गेहूं का स्टॉक बढ़कर 972.7 लाख टन हो गया, जबकि 411.2 लाख टन की जरूरत होती है। आधिकारिक अनुमान के मुताबिक राज्य के गोदामों में पड़े अतिरिक्त अनाज की कीमत करीब 39 अरब डॉलर है। एफसीआई गेहूं व चावल का निर्यात नहीं कर सकता, क्योंकि वैश्विक दाम की तुलना में उसकी खरीद महंगी है। साथ ही विश्व व्यापार संगठन ने कल्याणकारी योजनाओं के अनाज के निर्यात को प्रतिबंधित कर रखा है।
पिछले दो दशक में क्यों बढ़ी खरीद
पंजाब और हरियाणा 1960 के दशक में भारत में हरित क्रांति के अग्रणी राज्य थे और यहीं से एफसीआई बड़े पैमाने पर खरीद करता था। लेकिन पिछले दो दशक में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे अन्य राज्यों ने गेहूं व धान का उत्पादन बढ़ा दिया है और इससे एफसीआई की खरीद बढ़ी है। 2020 में मध्य प्रदेश ने 120.4 लाख टन गेहूं एफसीआई को बेचा, जबकि 2000-01 में 3.51 लाख टन बेचा था। छत्तीसगढ़ से एफसीआई की चावल खरीद इस साल 52 लाख टन रही, जबकि दो दशक पहले 8.57 लाख टन थी।
कर्ज में एफसीआई
पिछले दशक में एफसीआई ने गारंटीयुक्त मूल्य पर चावल की खरीद 73 प्रतिशत और गेहूं पर 64 प्रतिशत खर्च बढ़ा है। बहरहाल एफसीआई जिस भाव पर खाद्य कार्यक्रम के लिए अनाज देती है, उसके दाम में बदलाव नहीं हुआ है। यह उम्मीद की जाती है कि एफसीआई के खरीद भाव और बिक्री भाव के बीच अंतर का भुगतान सरकार करेगी। लेकिन पिछले कुछ साल से सरकार ने इसकी पूरी भरपाई नहीं की, जिससे हर साल एफसीआई को उधार लेना पड़ रहा है। एफसीआई का कुल कर्ज बढ़कर 3.81 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया है। चालू वित्त वर्ष में सरकार ने 1.15 लाख करोड़ रुपये खाद्य सब्सिडी के लिए रखा है, जबकि एफसीआई को करीब 2.33 लाख करोड़ रुपये खर्च करने होंगे, क्योंकि कोरोनावायरस के दौरान अनाज का वितरण बढ़ाया गया है और इससे एफसीआई पर कर्ज का दबाव और बढ़ेगा।
