उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि वह प्रत्येक नागरिक के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करेगा और कर्नाटक उच्च न्यायालय के उस निर्देश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर ‘उचित समय’ पर विचार करेगा, जिसमें विद्यार्थियों से शैक्षणिक संस्थानों में किसी प्रकार के धार्मिक कपड़े नहीं पहनने के लिए कहा गया है। न्यायालय ने इस मुद्दे को ‘राष्ट्रीय स्तर पर नहीं फैलने’ पर भी जोर दिया। प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमण, न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति हिमा कोहली के एक पीठ को छात्रों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने बताया कि उच्च न्यायालय के आदेश ने ‘संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत धर्म का पालन करने के मौलिक अधिकार को निलंबित कर दिया है।’ उन्होंने याचिका सोमवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का अनुरोध भी किया।
याचिका 14 फरवरी के लिए सूचीबद्ध करने का अनुरोध अस्वीकार करते हुए शीर्ष अदालत ने इस मामले में जारी सुनवाई का हवाला दिया और कहा कि हम प्रत्येक नागरिक के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करेंगे और मामले पर ‘उचित समय’ पर सुनवाई की जाएगी। कामत ने इसके बाद कहा, ‘मैं उच्च न्यायालय द्वारा कल हिजाब के मुद्दे पर दिए अंतरिम आदेश के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर कर रहा हूं। मैं कहूंगा कि उच्च न्यायालय का यह कहना अजीब है कि किसी भी छात्रों को स्कूल और कॉलेज जाने पर अपनी धार्मिक पहचान का खुलासा नहीं करना चाहिए। न केवल मुस्लिम समुदाय के लिए बल्कि अन्य धर्मों के लिए भी इसके दूरगामी प्रभाव हैं।’ उन्होंने सिखों के पगड़ी पहने का जिक्र किया और कहा कि उच्च न्यायालय ने एक अंतरिम आदेश में सभी छात्रों को निर्देश दिया है कि वे अपनी धार्मिक पहचान बताए बिना शिक्षण संस्थानों में जाएं।
कामत ने कहा, ‘हमारा सम्मानजनक निवेदन यह है कि जहां तक हमारे मुवक्किल की बात है, यह अनुच्छेद 25 (धर्म को मानने और प्रचार करने की स्वतंत्रता) के पूर्ण निलंबन के बराबर है। इसलिए कृपया अंतरिम व्यवस्था के तौर पर इस पर सुनवाई करें।’ भाषा
कक्षाओं में धार्मिक वस्त्र की अनुमति नहीं: उच्च न्यायालय
हिजाब पर रोक के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे कर्नाटक उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से शिक्षण संस्थानों को पुन: खोलने को कहा है। साथ ही विद्यार्थियों को भी कक्षा के भीतर भगवा शॉल, गमछा, हिजाब या किसी तरह का धार्मिक झंडा नहीं ले जाने को कहा है। मुख्य न्यायाधीश रितु राज अवस्थी की अध्यक्षता वाले तीन सदस्यीय पीठ ने अपने अंतरिम आदेश में यह व्यवस्था दी है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया है कि यह आदेश केवल ऐसे संस्थानों पर लागू होगा जहां की महाविद्यालय विकास समिति ने विद्यार्थियों के लिए ड्रेस कोड या यूनीफॉर्म लागू की है। भाषा
