ईश्वर केवलरमानी ने अगस्त, 2010 में जेपी इन्फ्राटेक परियोजना में एक अपार्टमेंट बुक कराया था जिसके बाद वे दक्षिणी दिल्ली से निकलकर गुडग़ांव में किराये के एक अपार्टमेंट में चले गए। इस बीच उनकी उम्र 60 वर्ष हो गई और उनक बेटा छात्र से पेशेवर बन चुका है। इतने सारे बदलावों के बीच जो एक चीज नहीं बदली है वह है घर पाने की उनकी चाहत।
उनकी तरह ही कम से कम 20,000 लोग अपना घर पाने का इंतजार कर रहे हैं। 2007 और 2011 के बीच विभिन्न जेपी इन्फ्राटेक (जेएलएल) परियोजनाओं के तहत कुल बुक की गई 32,700 आवासीय इकाइयों में से कम से कम 20,000 घर अब तक आवंटित नहीं किए गए हैं।
सर्वोच्च न्यायालय के दस्तावेजों से पता चलता है कि गत मार्च तक जेपी ने घर खरीदारों को 7,997 कब्जे दिए हैं जबकि केवल 6,530 उप पट्टा बैनामा किया है। इन बैनामों से घर खरीदारों को कब्जे का अधिकार मिल जाता है लेकिन पंजीकरण के उलट इससे पूर्ण स्वामित्व की गारंटी नहीं मिलती। पिछले वर्ष निर्माण कार्यों पर रोक लग गई थी जिससे तैयार मकानों की संख्या में कोई वृद्घि नहीं हुई है।
रियल एस्टेट विश्लेषक कंपनी प्रॉपइक्विटी के अनुमानों में कहा गया है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में इन्वेंट्री में बहुत अधिक इजाफा होने की सबसे बड़ी वजहों में से एक है जेपी की अटकी परियोजनाएं। निर्माण कार्य में अटके 2,00,000 मकानों में 1,00,000 से अधिक नोएडा-ग्रेटर नोएडा क्षेत्र में हैं और इनमें जेपी की परियोजनाएं 20 फीसदी हैं।
2,000 के दशक के मध्य में नोएडा में रियल एस्टेट में नजर आई तेजी के दौरान जेपी ने मध्य खंड के रियल एस्टेट बाजार पर बड़ा दांव लगाया था और बड़े पैमाने पर आवासीय परियोजनाएं शुरू की थी। उल्लेखनीय है कि जेपी ने ही यमुना एक्सप्रेसवे और बुद्घ इंटरनैशनल सर्किट का निर्माण किया था।
2014 आते आते कंपनी के ऊपर बढ़ते कर्ज और फ्लैटों की डिलिवरी नहीं होने की घटनाओं से उसकी छवि दागदार हो गई। नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेसवे पर पर्यावरण नियमकों उल्लंघन के आरोप से निर्माण कार्य में और अधिक देरी हुई।
केवलरमानी जैसे घर खरीदारों को एक उचित समाधान तक पहुंचने की उम्मीद समाप्त होती जा रही है। वह याद करते हैं कि 2010 के दशक के शुरुआती वर्षों में किस प्रकार से जेपी समूह प्रबंधन ने धन का तथाकथित रूप से गबन किया। अंतरिम समाधान पेशेवर की एक रिपोर्ट, जिसे सर्वोच्च अदालत में जमा कराया गया था, के मुताबिक जेपी ने बुकिंग रकम और आंशिक अदायगी के तौर पर घर खरीदारों से 13,364 करोड़ रुपये लिए। लेकिन समूह स्तर पर ऋणों के बढऩे पर प्रबंधन ने समूह की कंपनियों में संदिग्ध धन स्थानांतरण प्रारंभ कर दिया।
एक याचिका में घर खरीदारों ने आरोप लगाया कि समूह प्रबंधन ने करीब 10,000 करोड़ रुपये जेआईएल से उसके प्रमोटर जयप्रकाश एसोसिएट्स (जेएएल) को स्थानांतरित किए। यह रकम उसे बैंक ऋणों और बॉन्डों के पुनर्भगतान के लिए दिए गए।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि नोएडा-ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेसवे के पास 5,000 एकड़ जमीन के स्वामित्व वाले जेपी समूह ने अवैध तरीके से जेआईएल से भूखंडों को जेएएल को स्थानांतरित किए जिसमें उसे वित्तीय लेनदार बताया गया था।
इनमें से कई लेनदेनों की जांच अभी तक होना बाकी है पिछले वर्ष सर्वोच्च न्यायालय ने जेएएल को निर्देश दिया था कि वह 758 एकड़ का भूभाग जेआईएल को लौटाए। राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण के इलाहाबाद पीठ के मुताबिक जमीन स्थानांतरण घोखाधड़ी और अवमूल्यन पर किया गया था। जेपी समूह ने जेआईएल से किसी तरह की अवैध धन निकासी से इनकार किया था।
होल्डिंग कंपनियों की कई परतें होने से संबंधित पक्ष के लेनदेन का पता लगाना मुश्किल हो गया। जेआईएल की प्रमोटर कंपनी जेएएल की रियल एस्टेट इकाई में 60.98 फीसदी हिस्सेदारी है। जेएएल स्वयं 61 प्रमोटर निकायों से नियंत्रित है। एक असूचीबद्घ प्रमोटर जेपी इन्फ्रा वेंचर्स के पास जेएएल में सबसे बड़ी हिस्सेदारी 28.3 फीसदी है। बहरहाल, 51 व्यक्तियों जिनमें से अधिकांश गौर परिवार के सदस्य और मित्र हैं और आधे दर्जन से अधिक न्यासों के पास प्रमोटर स्वामित्व के बाकी की 38.66 फीसदी हिस्सेदारी है।
2015 तक जेएएल का कुल ऋण बढ़कर 75,000 करोड़ रुपये हो गया था जिसके बाद क्रेडिट सुइस के मुताबिक यह देश के 10 सबसे बड़े कर्जदार कॉर्पोरेट समूहों में से एक बन गया था।
