केंद्र सरकार ने साइबर हमले की आशंका का हवाला देकर चीन से बिजली उपकरणों के आयात पर रोक तो लगा दी है मगर 12 राज्यों के 25 शहरों में रियल टाइम बिजली आपूर्ति और डेटा प्रबंधन तथा संचार बुनियादी ढांचे के ठेके चीन की कंपनियों के ही पास हैं। इनमें से अधिकतर परियोजनाओं के लिए धन शहरी विद्युत सुधार की केंद्रीय योजना एकीकृत विद्युत विकास योजना (आईपीडीएस) से ही दिया गया है।
इन परियोजनाओं के तहत चीन की कंपनियों का दखल सभी बिजली आपूर्ति फीडरों, मांग और आपूर्ति के आंकड़ों तथा अहम बिजली ढांचे में है और कंपनियां इन्हें दूर से भी नियंत्रित कर सकती हैं। ये ठेके स्काडा प्रणालियों, आरटीडीएएस और बिजली संचार बुनियादी ढांचे के लिए पिछले पांच-सात साल में दिए गए हैं।
स्काडा या सुपरवाइजरी कंट्रोल ऐंड डेटा एक्विजिशन एक औद्योगिक नियंत्रण प्रणाली है, जो आम तौर पर रिमोट तकनीक के जरिये औद्योगिक प्रक्रियाओं पर नजर रखती है और उनहें नियंत्रित करती है। इसे बिजली वितरण सुधारने के लिए किसी इलाके के पावर ग्रिड में लगाया जाता है। बिजनेस स्टैंडर्ड द्वारा जुटाई गई जानकारी के मुताबिक तमिलनाडु, राजस्थान, मध्य प्रदेश, ओडिशा, झारखंड और पुदुच्चेरी के शहरों में चीन की कंपनी दोंगफांग इलेक्ट्रिक कॉर्पोरेशन को ये ठेके दिए गए हैं।
दोंगफांग इलेक्ट्रिक कॉर्पोरेशन (डीईसी) की वेबसाइट पर कहा गया है कि चीन की केंद्रीय सरकार सीधे उसकी निगरानी करती है। डीईसी की वेबसाइट के अनुसार कंपनी को बिजली उपकरणों के निर्माण, अत्याधुनिक तकनीक के शोध एवं विकास, अंतरराष्ट्रीय अभियांत्रिकी परियोजनाओं के अनुबंध, संपूर्ण संयंत्र और उपकरणों के निर्यात और अंतरराष्ट्रीय आर्थिक एवं तकनीकी सहयोग में विशेषज्ञता हासिल है।
इसके अलावा आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड, ओडिशा, बिहार, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ सरकार ने दोंगफांग को रियल टाइम डेटा प्राप्ति (आरटीडीएएस) के ठेके भी दिए हैं। आरटीडीएस को किसी विशेष समय पर बिजली आपूर्ति प्रबंधन, प्रणालियों की निगरानी एवं डेटा संग्रह के लिए स्थापित किया गया है। आईपीडीएस पोर्टल के अनुसार इन राज्यों को आईटीडीएएस परियोजनाओं के लिए केंद्र से 208 करोड़ रुपये का अनुदान मंजूर किया गया है, जिसमें से 131 करोड़ रुपये दिए जाएंगे।
इसके अलावा सात अन्य राज्यों और केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों (पीएसयू) ने भी चीन की विभिन्न कंपनियों को बिजली संचार बुनियादी ढांचे के लिए ठेका दिया है। इसमें बिजली पारेषण नेटवर्क के साथ ही ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क बिछाने का काम शामिल है ताकि बिजली नेटवर्क पर पारेषण की जानकारी भेजी जा सके। बिजली उपकरण बनाने वाला देसी उद्योग अब सरकार से ये ठेके रद्द करने की मांग कर रहा है क्योंकि इनमें मालवेयर, डेटा चोरी, दूर से साइबर हमले और निजता के उल्लंघन का खतरा है। इंडियन इलेक्ट्रिकल ऐंड इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष आर के चुघ ने कहा कि चीन की कंपनियों और उनकी भारतीय इकाइयों को दिए गए स्काडा और आरटीडीएएस ठेकों से सुरक्षा को गंभीर खतरा है। चुघ सीमेंस लिमिटेड की एनर्जी मैनेजमेंट इकाई में दक्षिण एशिया के डिजिटल ग्रिड बिज़नेस प्रमुख भी हैं। उन्होंने कहा कि चीन की कंपनियों को भविष्य में भी बिजली क्षेत्र की निविदाओं में भागीदारी की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
चुघ ने कहा, ‘इससे राष्ट्रीय ग्रिड और बिजली प्रणाली को मालवेयर, स्पाईवेयर और रिमोट साइबर हमले का गंभीर खतरा है, जिससे बिजली आपूर्ति भी प्रभावित हो सकती है। स्काडा और आरटीडीएएस के कारण संवेदनशील जानकारी चीन की कंपनियों के पास है। संगठन चीन की कंपनियों और उनकी भारतीय इकाइयों को दिए गए ऐसे सभी अनुबंधों को रद्द करने की मांग करता है।’
2016 में रूसी हैकरों ने यूक्रेन की बिजली प्रणाली में मालवेयर डाल दिया था और बिजली प्रणाली पर साइबर युद्घ छेड़ दिया था। फिलीपींस ने हाल ही में जांच शुरू की है। उसका कहना है कि करीब 100 अनजान साइबर हमलों के जरिये चीन पूरे देश की बिजली आपूर्ति बंद कर सकता है। फिलीपींस के राष्ट्रीय ग्रिड में स्टेट ग्रिड कॉर्पोरेशन ऑफ चाइना की 40 फीसदी हिस्सेदारी है।
गलवान घाटी में भारत-चीन सीमा पर तनातनी के कारण भारत सरकार ने हाल ही में चीन से सभी बिजली उपकरणों के आयात पर रोक लगा दी है। भारतीय उद्योग ने सरकार से पुराने ठेके खत्म करने की अपील भी की है। उसका कहना है कि देश में इसके लिए पर्याप्त विनिर्माण क्षमता है। देश में कुल 71,570 करोड़ रुपये मूल्य के बिजली उपकरणों का आयात होता है, जिसमें करीब 30 फीसदी उपकरण चीन से आते हैं। इनमें बिजली और वितरण ट्रांसफॉमर, कंडक्टर, केबल, मीटर, मोटर, स्विचगियर आदि शामिल हैं।
