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  ताजा खबरें  बिहार चुनाव: आर्थिक नीतियों और राजनीतिक समीकरण का असर
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बिहार चुनाव: आर्थिक नीतियों और राजनीतिक समीकरण का असर

बीएस संवाददाता बीएस संवाददाता —November 5, 2020 12:38 AM IST
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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) के सहयोगी दलों और विपक्षी दलों के निशाने पर समान रूप से हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) भले ही नीतीश के साथ खड़े होने का संदेश देने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हो लेकिन अपुष्ट खबरों के मुताबिक पार्टी राज्य में शीर्ष कमान पर काबिज होने के अपने दो दशक लंबे गतिरोध को खत्म करना चाहती है। इसके अलावा लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के नेता चिराग पासवान हैं जिन्होंने अपने पूर्व सहयोगी नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने की उम्मीदवारी के खिलाफ  खुलेआम झंडा बुलंद कर रखा है। दूसरी तरफ  राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस पार्टी के गठबंधन ने मुख्यमंत्री को ‘थका हुआ आदमी’ कहा है और राज्य की सत्ता में अपनी वापसी के लिए दावा भी किया है।
 केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार और राज्य की नीतीश सरकार दोनों ने कई आर्थिक मापदंडों के आधार पर नतीजे दिए हैं, खासतौर पर पिछले डेढ़ साल में इसमें तेजी दिखती है। मोदी सरकार ने 2019 में अपनी पार्टी की सफ लता में उज्ज्वला योजना को भी अहम माना था जिसके तहत ग्रामीण परिवारों को मुफ्त एलपीजी सिलिंडर उपलब्ध कराया जाता है। केंद्र सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि पूरे देश भर की तुलना में बिहार में इस योजना के तहत ज्यादा लोगों को इसका लाभ मिले। राज्य में 85 लाख परिवारों को ये मुफ्त एलपीजी सिलिंडर दिए गए हैं जो राज्य में अनुमानित ग्रामीण परिवारों में से आधा हिस्सा है। रसोई गैस सिंलिंडर से जुड़ी इस योजना के देश भर के कुल 10 फीसदी ग्रामीण परिवार लाभार्थी हैं जिनमें से बिहार की हिस्सेदारी 7 फीसदी तक की है।
‘हर घर जल’ योजना के तहत बिहार में हाल की प्रगति ज्यादा आश्चर्यजनक है जिसका मकसद गांव के सभी घरों तक पानी के नल का कनेक्शन मुहैया कराना है। यह योजना पिछले साल स्वतंत्रता दिवस के मौके पर शुरू की गई थी। इस योजना की शुरुआत के वक्त बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों के केवल दो फीसदी परिवारों के पास पाइप वाले पानी का कनेक्शन था। इस साल अक्टूबर तक बिहार के कुल 17 करोड़ ग्रामीण परिवारों में से करीब 55 प्रतिशत तक नल वाले पानी की सुविधा मिल गई है। आर्थिक रूप से पिछड़े किसी अन्य राज्य ने इस मापदंड पर बिहार की तरह प्रगति नहीं की है। बिहार का प्रदर्शन इस लिहाज से राष्ट्रीय स्तर पर की गई प्रगति से कहीं अधिक है। इसी अवधि के दौरान जिन ग्रामीण परिवारों को पानी के नल के कनेक्शन की सुविधा थी उनकी तादाद राष्ट्रीय स्तर पर 17 प्रतिशत से बढ़कर लगभग 30 प्रतिशत हो गई। हालांकि इस योजना की संकल्पना मोदी सरकार ने की थी लेकिन राज्य सरकार की कोशिश के बिना यह प्रगति संभव नहीं थी।
इस योजना के वित्त पोषण में केंद्र और राज्य सरकारों की समान भागीदारी है। 2020-21 के बजट में इस योजना के लिए 11,500 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे। इसका मकसद देश के हर ग्रामीण परिवार को 2024 तक पाइप से पानी की आपूर्ति करना है जब मोदी तीसरी बार सत्ता में लौटने की उम्मीद में चुनाव में उतरेंगे। मोदी सरकार को उम्मीद है कि यह योजना 2024 में सत्ता की राह में वापसी सुनिश्चित करेगी जैसा कि 2019 में उज्ज्वला योजना की वजह से प्रदर्शन देखा गया था। नीतीश सरकार भी ऐसे ही राजनीतिक उद्देश्यों को ध्यान में रखकर इस अभियान के क्रियान्वयन को लेकर आक्रामक रही है।
नीतीश सरकार के सत्ता में फिर से वापसी करने पर 2015-16 के बाद से ही महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी (मनरेगा) योजना के तहत काम पाने वाले कामगारों की हिस्सेदारी में भी इजाफा हुआ है। शेष भारत की तुलना में बिहार में इस योजना अधिसूचित मजदूरी स्थिर हो गई है, लेकिन बिहार में इस योजना के श्रमिकों की हिस्सेदारी 2015 से 2019 तक दोगुनी हो गई। कोविड महामारी की वजह से केंद्र ने लॉकडाउन लगाया था और ऐसे में बड़ी तादाद में प्रवासी मजदूर वापस बिहार गए और अप्रैल से अक्टूबर के दौरान कामगारों को दी जाने वाली औसत मजदूरी बढ़कर 194 रुपये हो गई।
इस अवधि के दौरान राज्य में गरीब परिवारों को सीधे दी जाने वाली नकद हस्तांतरण में भी बढ़ोतरी हुई। 2020-21 में मोदी सरकार के 18 लाख करोड़ रुपये के प्रत्यक्ष नकद भुगतान का दस फीसदी हिस्सा बिहार में गया। पिछले कुछ सालों में इन नकद सब्सिडी में बिहार की हिस्सेदारी सात फीसदी के आसपास रही।
मोदी सरकार की लघु ऋ ण योजना मुद्रा से भी बिहार के गरीबों को फायदा मिला है। वर्ष 2015-16 में देश के कुल 3.5 करोड़ लाभार्थियों में से करीब 7 फीसदी  बिहार के ही थे। वर्ष 2018-19 में इस योजना के तहत ऋ ण पाने वाले देश के 10 लाभार्थियों में से एक का योगदान बिहार में वितरित 7 फीसदी की रकम में है।
हालांकि देश के मुकाबले राज्य में निवेश की गई पूंजी में वृद्धि हुई लेकिन ग्रामीण बेरोजगारी में भी तेजी आई। बड़े राज्यों में बिहार में सबसे ज्यादा ग्रामीण बेरोजगारी है। इसकी ग्रामीण बेरोजगारी दर भारत के मुकाबले दोगुनी है। वहीं प्रति व्यक्ति बिजली की उपलब्धता देश के दूसरे राज्यों के लोगों के मुकाबले बिहार के लोगों में महज 20 फीसदी ही है। हालांकि नीतीश के कार्यकाल के दौरान प्रति व्यक्ति आमदनी में लगभग एक-तिहाई की बढ़ोतरी हुई लेकिन देश के दूसरे राज्यों में लोगों की जितनी आमदनी है उसके मुकाबले बिहार के लोगों के लोगों की आमदनी एक-तिहाई ही है।
कई मायनों में नीतीश की आर्थिक सफ लता स्थिर ही दिखती है। हालांकि बिहार में वृद्धि हो रही है लेकिन यहां की जनता अब भी 2020 में अन्य भारतीयों के मुकाबले उतने ही पीछे नजर आते हैं जितना कि वे 2015 में थे। बिहार में राजनीतिक समीकरण भी इस बार जदयू के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं। जदयू को चिराग पासवान की पार्टी लोजपा की वजह से नुकसान हो सकता है। चिराग को उनके पिता राम विलास पासवान के निधन की वजह से सहानुभूति का वोट मिल सकता है जो बिहार में एक मजबूत दलित चेहरा थे।

आर्थिक नीतिजदयूनीतीश कुमारबिहार चुनावराजनीतिक समीकरण
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