वैश्विक वित्तीय संकट और मंदी की दस्तक से भारतीय कंपनियां और उसमें काम करने वाले कर्मचारियों में तनाव का माहौल है।
जिसे दूर करने के लिए कंपनी प्रबंधक मोटिवेशन गुरुओं की शरण में जा रहे हैं। उनका मानना है कि मंदी की वजह से पैदा हुए तनाव और अवसाद को आध्यात्मिक गुरु अपने प्र्रेरणादायी वचनों और पुस्तकों से दूर कर सकते हैं।
‘द मॉन्क हू सोल्ड हिज फेरारी’ और ‘ग्रेटनेस गाइड’ जैसी प्रेरणादायी पुस्तकों के लेखक रॉबिन शर्मा ने बताया कि कई कंपनियां उनसे संपर्क कर रही हैं, ताकि वे अपने प्रेरक वक्तव्यों से कर्मचारियों में उत्साह और उमंग का संचार कर सकें।
23 अक्टूबर को रॉबिन शर्मा सेंट्रल मुंबई के एक इलाके में रियल एस्टेट, बैंकिंग और मंदी से प्रभावित अन्य क्षेत्रों के मानव संसाधन विभाग के अधिकारियों को संबोधित कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि मंदी के इस दौर में तमाम कंपनियां आध्यात्मिक गुरुओं की शरण ले रही हैं। इससे मोटिवेशन गुरुओं की मांग काफी बढ़ गई है।
वर्तमान में जीई, नाइकी, फेडएक्स, यूनिलीवर जैसी कंपनियों से रॉबिन शर्मा जुड़े हैं। दुनिया भर की कंपनियां और उसमें काम करने वाले लोग भविष्य को लेकर चिंतित है। वे इस बात का अंदेशा तक नहीं लगा पा रहे हैं कि अगली दो से चार तिमाहियों में उनकी कंपनी का प्रदर्शन कैसा रहेगा। भारत की स्थिति भी इससे इतर नहीं है।
बंबई स्टॉक एक्सचेंज का संवेदी सूचकांक सेंसेक्स इस साल करीब 58 फीसदी गिर चुका है। वहीं मंदी और नकदी की किल्लत की वजह से मांग में कमी आ रही है, जिससे तमाम कंपनियों के नतीजे पर असर पड़ता दिख रहा है। कई जगहों पर तो कर्मचारियों की छंटनी तक की नौबत आ गई है। कंपनियां अपनी विस्तार योजनाओं को आगे बढ़ाने से कतरा रही हैं। इससे पूरे उद्योग जगत में भय का माहौल है।
एक अन्य आध्यात्मिक गुरु शैलेश ठक्कर का कहना है कि पिछले पांच सालों के दौरान लगभग सभी कंपनियों ने तेजी से विकास किया। लेकिन वर्तमान में स्थिति बिल्कुल बदल गई है। मौजूदा हालात में कंपनियां खुद को किसी तरह बचाए रखना चाह रही हैं।
प्रबंधकों को यह समझ में नहीं आ रहा है कि वे अपने कर्मचारियों का क्या करें, क्योंकि कंपनियों को नए ऑर्डर नहीं मिल पा रहे हैं। इससे हर ओर अवसाद और तनाव का माहौल है। जॉनसन एंड जॉनसन, फीलिप्स, टोरेंट पावर जैसी कंपनियां ठक्कर की सेवा ले रही हैं।
आध्यात्मिक गुरुओं का कहना है कि वर्तमान हालात में वहीं कंपनी बेहतर प्रदर्शन कर सकती है, जिसका नेतृत्व सुदृढ़ और सक्षम हाथों में हो। साथ ही प्रबंधकों को अपने कर्मचारियों में भी उत्साह-उमंग का संचार करते रहना होगा, ताकि उन पर मंदी का तनाव हावी न हो सके।
जनरल इलेक्ट्रिक के मुख्य इनोवेटिव कंसल्टेंट और टक स्कूल ऑफ बिजनेस के प्रोफेसर विजय गोविंदराजन का कहना है कि हरेक व्यक्ति के जीवन में तीन से चार ऐसे मौके आते हैं, जब उन्हें कुछ असाधारण कर दिखाना होता है। आत्मनिर्भर नेतृत्व इस मंदी के थपेड़े से निकलने में पूरी तरह सक्षम हो सकता है।
उनके मुताबिक, यह समय कुर्सी पर बैठकर विचार करने का नहीं है, बल्कि वास्तविकता को समझते हुए कुशल नेतृत्व करने का है। कर्मचारियों के खोए उत्साह जगाने का है, जो ऐसा करने में सक्षम होगा, वही इस भंवर से पार पाएगा। दरअसल, मंदी की वजह से कर्मचारियों में नौकरी जाने का भय बना हुआ है, जिससे वे अपनी पूरी क्षमता के साथ काम नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में उनमें उत्साह और विश्वास पैदा कराना जरूरी है।