केंद्र सरकार ने एक दिन में फैक्टरी परिसर में मजदूरों के बने रहने की अधिकतम अवधि 10.5 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे करने का प्रस्ताव किया है। इसमें पहली बार विस्थापित श्रमिकों के घर जाने के लिए यात्रा भत्ता पाने की पात्रता की शर्त का प्रस्ताव है।
पेशेगत सुरक्षा, स्वास्थ्य व कार्य की स्थिति (केंद्रीय) नियम, 2020 के 19 नवंबर के मसौदे में कहा गया है, ‘कामगार के काम की अवधि का इस तरह से प्रबंधन किया जाएगा कि आराम की अवधि सहित उसका एक दिन का वक्त 12 घंटे से ज्यादा नहीं होगा।’
विशेषज्ञों का कहना है कि इस कदम से नियोक्ताओं को 3 शिफ्ट की जगह काम की 2 शिफ्ट बनाने को प्रोत्साहन मिलेगा और इससे रोजगार के अवसर कम होंगे।
बहरहाल किसी भी दिन के लिए ओवरटाइम की गणना में 15 से 30 मिनट तक के काम को 30 मिनट माना जाएगा और 30 मिनट से कम काम को ओवरटाइम नहीं माना जाएगा। साप्ताहिक काम के घंटों की सीमा 48 घंटे रखा गया है।
चल रही महामारी के दौरान हरियाणा, महाराष्ट्र, पंजाब और ओडिशा सहित कई राज्यों ने काम करने के घंटे बढ़ाकर 13 घंटे कर दिए थे, जबकि कुछ राज्यों ने कानून के इस प्रावधान के अनुपालन में ढील दी थी।
श्रम अर्थशास्त्री और एक्सएलआरआई जमशेदपुर में प्रोफेसर केआर श्याम सुंदर ने कहा, ‘अगर नियोक्ता कार्यस्थल पर कर्मचारियों को पूरे 12 घंटे रखते हैं और उसमें यात्रा का समय भी शामिल किया जाता है, जो महानगरों में आसानी से एक घंटे होता है, तो कामगारों के काम और जिंदगी का संतुलन बिगड़ जाएगा।’
विस्थापित श्रमिकों के लिए, जो अपने मूल निवास वाले राज्य में यात्रा करते हैं, उन्हें नकद भत्ता दिए जाने का प्रस्ताव किया गया है। सरकार ने इसके लिए पहली बार न्यूनतम पात्रता की शर्त का प्रस्ताव रखा है। जिन विस्थापित श्रमिकों ने पहले के कैलेंडर वर्ष में काम के 6 महीने पूरे कर लिए हैं, वही इसके पात्र होंगे। अभी तक इसके लिए ऐसी कोई पात्रता शर्त नहीं रखी गई है। अगर कोई विस्थापित श्रमिक 6 महीने के पहले अपनी नौकरी बदल देता है तो नया नियोक्ता पहले के रोजगार की अवधि (पहले के नियोक्ता के अनुभव प्रमाण पत्र के आधार पर)की भी गणना करेगा, जब वह यात्रा भत्ते का भुगतान करेगा।
बहरहाल सरकार ने नए श्रम कानूनों में विस्थापित श्रमिकों के लिए संभावनाएं बढ़ा दी हैं क्योंकि 18,000 रुपये तक कमाने वाले सभी कामगारों को इस श्रेणी में रखा गया है, जो एक राज्य से दूसरे राज्य में रोजगार के लिए जाते हैं। मौजूदा कानून के तहत श्रम कानून के तहत वे ही विस्थापित श्रमिक आते हैं, जिन्हें कांट्रैक्टरों के माध्यम से रखा गया है। इसके परिणामस्वरूप जो विस्थापित श्रमिक खुद काम के लिए यात्रा करते हैं, वे श्रम कानून के दायरे में नहीं आते हैं।
सरकार ने अब नियोक्ताओं द्वारा सीमित कर्मचारियों के लिए ही सालाना स्वास्थ्य जांच का प्रावधान रखा है, जैसे अगर कोई कर्मचारी 45 साल से ज्यादा उम्र का है। मसौदा नियम के मुताबिक विनिर्माण, खनन और निर्माण क्षेत्र के नियोक्ताओं को इस तरह की मेडिकल जांच हर साल अप्रैल तक करानी होगी।
