कोविड-19 से बचाव के लिए तीसरी खुराक (बूस्टर डोज) से संबंधित नीति पर विचार के लिए होने वाली बैठक से पहले विशेषज्ञों का कहना है कि दो टीकों का मिश्रण (तीसरी खुराक के रूप में अलग टीका) शरीर में बेहतर प्रतिरोधी क्षमता तैयार कर सकता है। हालांकि विषाणु विज्ञान पर शोध करने वाले विशेषज्ञ इस बात पर एकमत नहीं दिख रहे हैं कि कोविड-19 के नए स्वरूप ‘ओमीक्रोन’ के सामने आने के बाद बूस्टर डोज लगाना उपयुक्त कदम होगा या नहीं। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि टीके की दो खुराक के साथ मेमरी-सेल की सक्रियता कोविड-19 महामारी से सुरक्षा देने के लिए पर्याप्त होगी मगर कुछ लोगों का यह भी मानना है कि नए हालात के बीच बूस्टर डोज की जरूरत हो सकती है।
इनएक्टिवेटेड होल-वायरस तकनीक आधारित भारत बायोटेक का टीका कोवैक्सीन दो कारणों से अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है। होल-वायरस तकनीक में कोविड-19 वायरस के सभी हिस्से होते हैं न कि केवल स्पाइक प्रोटीन ऐंटीजन। पहली बात यह कि कोवैक्सीन की तीसरी खुराक बूस्टर डोज के रूप में दी जा सकती है जबकि कोविशील्ड (एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफर्ड द्वारा तैयार टीका) की तीसरी खुराक बूस्टर डोज के तौर पर कारगर साबित नहीं हो सकती है। बकौल विशेषज्ञ दूसरी अहम बात यह है कि कोविड-19 वायरस के नए स्वरूप के सामने के बाद उत्पन्न हालात के बीच कोवैक्सीन दूसरे टीकों की तुलना में अधिक प्रतिरोधी क्षमता दे सकता है क्योंकि इसमें होल वायरस तकनीक का इस्तेमाल हुआ है। होल-वायरस तकनीक में कोविड-19 वायरस के सभी हिस्से होते हैं न कि केवल स्पाइक प्रोटीन ऐंटीजन।
कोविशील्ड की दो खुराक ले चुके लोगों को इसकी तीसरी खुराक देने के बारे में ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी में ग्रीन टेमप्लटन कॉलेज में सीनियर रिसर्च फेलो शाहिद जमील कहते हैं, ‘वेक्टर आधारित प्रतिरोध क्षमता अधिक असरदार होगी। दो खुराक ले चुके लोगों को कोविशील्ड की ही तीसरी खुराक देने का कोई खास फायदा नहीं दिखेगा।’ कोविशील्ड चिम्पैंजी में पाए गए एडिनोवायरस के कमजोर संस्करण पर आधारित है। इस वायरस वेक्टर में सार्स-कोव-2 स्पाइक प्रोटीन का जीन पाया जाता है। वरिष्ठï विषाणु विज्ञानी एवं क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज वेलूर में क्लिनिकल वायरोलॉजी एवं माइक्रोबायोलॉजी के पूर्व प्रमुख जैकब जॉन ने कहा कि वेक्टर आधारित टीकों के प्रति शरीर दो तरह की प्रतिक्रियाएं देता है। एक प्रतिक्रिया वेक्टर के प्रति होती है जिसका कोई असर नहीं होता है मगर दूसरी प्रतिक्रिया कोरोनावायरस के स्पाइक प्रोटीन के खिलाफ होती है जो असरदार होती है। जमील का मानना है कि कोविशील्ड की दो खुराक लगने के बाद किसी दूसरे टीके की तीसरी खुराक अधिक असरदार हो सकती है। उन्होंने कहा, ‘कोविशील्ड के बूस्टर डोज के रूप में सीरम के पास पहले ही एक अच्छी खुराक मौजूद है। यह नोवावैक्स का प्रोटीन टीका कोवोवैक्स है। हालांकि भारत ने अभी इसकी अनुमति नहीं दी है।’
सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) के मुख्य कार्याधिकारी अदार पूनावाला ने भी कोविशील्ड के लिए एक नई बूस्टर डोज तैयार करने का संकेत दिया है। पूनावाला ने पिछले सप्ताह कहा था, ‘ऑक्सफर्ड के वैज्ञानिक फिलहाल शोध कर रहे हैं और इसके तथ्यों के आधार पर हम एक नया टीका ला सकते हैं। यह टीका छह महीने में बूस्टर डोज के रूप में काम करेगा।’इस बीच, उनकी कंपनी ने कोविशील्ड के लिए तीसरी खुराक के लिए दवा नियामक से अनुमति मांगी है। कंपनी ने कहा है कि उसके पास इस टीके की पर्याप्त खुराक उपलब्ध है। जॉन भी जमील की बात से सहमत दिखे। जॉन ने कहा,’जो लोग काविशील्ड की दोनों खुराक ले चुके हैं उनके लिए बूस्टर डोज के रूप में कोवैक्सीन की खुराक लेना फायदेमंद हो सकता है। लेकिन तीसरी खुराक भी कोविशील्ड ली जाए तो इसका कोई लाभ नहीं होगा। दूसरी तरफ जो लोग कोवैक्सीन की दो खुराक ले चुके हैं उनके लिए बूस्टर डोज के रूप में इसकी तीसरी खुराक भी लेना असरदार रहेगा। इसकी वजह यह है कि यह टीका होल वायरस पर आधारित है। लिहाजा इसमें कोविड-19 वायरस के सभी हिस्से होते हैं, न कि केवल स्पाइक प्रोटीन ऐंटीजन।’ हालांकि जॉन का मानना है कि ओमीक्रॉन के आने के बाद बूस्टर डोज लेना फायदेमंद होगा। ऐसी आशंका जताई जा रही है कि वायरस का यह नया स्वरूप शरीर की प्रतिरोधी क्षमता को भेद सकता है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के राष्टï्रीय महामारी विज्ञाान संस्थान की वैज्ञानिक सलाहकार समिति के चेयरमैन जयप्रकाश मुलियिल ने कहा, ‘अब तक ऐसे साक्ष्य नहीं मिले हैं जिनसे यह पता चलता है कि बूस्टर डोज- कोविशील्ड या कोवैक्सीन- कोई खास अंतर ला पाता है।’
