पिछले कुछ महीनों से उत्तर भारतीयों के खिलाफ आंदोलन का सबसे बुरा असर राज्य के उद्योग जगत पर पड़ा है।
आने वाले दिनों राज्य की विकास दर में 15 से 20 फीसदी तक की गिरावट भी देखने को मिल सकती है।
राज्य में तेजी से फल फूल रहे रियल एस्टेट, कपड़ा उद्योग, भोजपुरी फिल्म उद्योग, कृषि उत्पादन और राज्य के विकास के लिए किये जा रहे विनिर्माण के कामों में गिरावट आई है तो नए निवेशक यहां निवेश करने से भी डरने लगे हैं।
राज्य के मुखिया विलासराव देशमुख भी इस बात से चिंतित नजर आ रहे हैं। हाल ही में देशमुख विदेशी निवेश के लिए यूरोप दौरे पर गये थे। वहां मुख्यमंत्री को ऐसे सवालों का सामना करना पड़ा, जिनके बारे में उन्होंने सोचा भी नहीं था।
मसलन एमएनएस क्या है? राज्य में निवेश की गई पूंजी सुरक्षित रहेगी, इस बात की क्या जिम्मेदारी है। देशमुख जितना सोच के गए थे, उसका 10 फीसदी ही लेकर आ पाये। देशमुख इस बात को मानते हैं कि निवेशक पूंजी लगाने से कतराने लगे हैं और पहले से पूंजी लगाए निवेशकों को रोक पाना भी मुश्किल हो रहा है।
वे कहते है कि आंदोलन से राज्य की छवि बहुत खराब हुई है। पूर्व केन्द्रीय मंत्री रामनाइक कहते हैं कि इसका खमियाजा अंतत: लोगों को ही भुगतना पड़ेगा। उनका कहना है कि पश्चिम बंगाल से टाटा का नैनो प्रोजेक्ट उठकर गुजरात चला गया जिसकी एक प्रमुख वजह यह भी है, जबकि महाराष्ट्र सरकार अपने यहां सभी तरह की सुविधा देने की बात कर रही थी और महाराष्ट्र में टाटा के पहले से ही कही प्रोजेक्ट चल रहे हैं।
आंदोलन के चलते ही पूरे महाराष्ट्र से मजदूर तबके ने पलायन करना शुरू कर दिया था। इसका सबसे ज्यादा असर रियल एस्टेट क्षेत्र में पड़ा। भवन निर्माताओं का कहना है कि एक तो मंदी की मार से रियल एस्टेट बुरे दौर से गुजर रहा है, ऊपर से मजदूरों की कमी ने रही सही कसर पूरी कर दी है। राज्य के सभी प्रोजेक्ट औसतन 8 से 10 महीने पिछड ग़ये हैं।
मुंबई से बाहर नासिक और पुणे का तो और भी बुरा हाल है। यहां लगभग एक साल देर से प्रोजेक्ट पूरे होने की आशंका है। भवन निर्माता दिलीप पोरवाल के अनुसार, इससे सभी को अपनी कीमतें कम करने का दबाव अलग से है।
भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री भी मुंबई से बाहर जाने का ताना-बाना बुनने लगी है। अगर यह उद्योग महाराष्ट्र से बाहर जाता है तो हजारों महाराष्ट्रीयन कामगारों को रोजगार से हाथ धोना पड़ सकता है। सालभर में औसतन 75 भोजपुरी फिल्में बनती हैं।
ऐसा ही हाल राज्य में कपड़ा उद्योग का भी है। हिंदुस्तान चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष शंकर केजरीवाल कहते हैं कि मजदूरों की कमी से उत्पादन और उत्पादन लागत के साथ कपड़े की गुणवत्ता में भी फर्क आ रहा है।
जल्द महाराष्ट्र में बने कपड़े दूसरे राज्यों में बने कपड़ों की अपेक्षा महंगे होगे और गुणवत्ता के मामले में कमजोर । ऐसे में कोई हमारा कपड़ा क्यों खरीदेगा? उनका कहना है कि राज्य में उत्पादित कपड़ें में करीबन 40 फीसदी की कमी और लागत में करीब 25 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की जाएगी।