केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जमा बीमा और ऋण गारंटी निगम (डीआईसीजीसी) अधिनियम में संशोधन के प्रस्ताव को आज मंजूरी दे दी। इसके तहत बैंक डूबने की स्थिति में लोगों को 5 लाख रुपये तक की जमा राशि पर बीमा गारंटी दी जाएगी या बैंक संकट में फंसने पर जमाकर्ताओं को 90 दिन के अंदर 5 लाख रुपये तक निकालने की अनुमति होगी।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंत्रिमंडल की बैठक के बाद कहा कि नए नियम के दायरे में कुल जमा खातों का 98.3 फीसदी और कुल जमा मूल्य का 50.9 फीसदी आएंगे। इसके साथ ही मंत्रिमंडल ने सामान्य बीमा कारोबार (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम (जीआईबीएनए) में संशोधन के प्रस्ताव को भी मंजूरी दे दी। इससे सरकारी स्वामित्व वाली बीमा कंपनियों के निजीकरण का रास्ता साफ होगा।
सीतारमण ने कहा कि जमा बीमा गारंटी में संशोधन का सीधा उद्देश्य बैंक ग्राहकों को राहत देना है। यदि किसी संकट के कारण भारतीय रिजर्व बैंक किसी भी बैंक को लेनदेन से रोकता है तो जमाकर्ताओं को समय पर सहायता मिल जाएगी। अधिनियम में संशोधन लागू होने के बाद किसी भी बैंक से लेनदेन रोके जाने के 45 दिन बाद सभी जमाकर्ताओं के दावों की जानकारी ली जाएगी और उसे डीआईसीजीसी को सौंपा जाएगा। डीआईसीजीसी 90 दिन के अंदर सभी दावों का निपटारा करेगा। इससे जमाकर्ताओं को अपनी जमा राशि में से पांच लाख रुपये तक मिल जाएंगे।
डीआईसीजीसी, भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्ण स्वामित्व वाली इकाई है, जो बैंक जमा पर बीमा सुरक्षा देती है। मौजूदा प्रावधानों के अनुसार पांच लाख रुपये तक का जमा बीमा तब लागू होता है, जब किसी बैंक का लाइसेंस रद्द कर दिया जाता है और परिसमापन प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
इस विधेयक को संसद के मौजूदा मॉनसून सत्र में पेश किए जाने की उम्मीद है।’ उन्होंने कहा कि विधेयक के कानून बनने के बाद इससे उन हजारों जमाकर्ताओं को तत्काल राहत मिलेगी, जिन्होंने अपना धन पीएमसी बैंक और दूसरे छोटे सहकारी बैंकों में जमा किया था। सीतारमण ने कहा कि अभी दबाव वाले बैंकों के जमाकर्ताओं को अपनी बीमित राशि और अन्य दावे पाने में 8 से 10 साल लग जाते हैं। मगर यह कानून बनने के बाद संकटग्रस्त बैंक के जमाकर्ताओं को 90 दिन में अपना पैसा मिल जाएगा।
सरकारी बीमा कंपनियों के निजीकरण का रास्ता साफ
सामान्य बीमा कारोबार (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम में संशोधन के जरिये उस प्रावधान को हटाया जाएगा, जिसके तहत सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियों में केंद्र के पास कम से कम 51 फीसदी हिस्सेदारी होना अनिवार्य है। इसके साथ ही अधिनियम में प्रबंधन नियंत्रण भी संभावित खरीदारों को सौंपने का प्रावधान शामिल किया जाएगा। इसके कानून बनने से सार्वजनिक बीमा क्षेत्र के निजीकरण का रास्ता साफ होगा।
