देश में जिस स्तर पर सस्ते मकानों की बढ़ती मांग की वजह से इन परियोजनाओं में निवेश बढऩे लगा है। हालांकि अभी भी इस श्रेणी में निवेश की रफ्तार सुस्त है लेकिन आने वाले समय में इस क्षेत्र में लाखों करोड़ रुपये के निवेश की संभावनाएं हैं। प्रॉपर्टी कंसल्टेंसी कंपनी नाइट फ्रैक इंडिया ने कहा है कि शहरी इलाकों में करीब 3.5 करोड़ गुणवत्तपूर्ण मकानों की जरूरत है। इस लिहाज से देखें तो सस्ते आवासीय क्षेत्र में करीब 45 लाख करोड़ रुपये के निवेश की संभावना है।
संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों का हवाला देते हुए नाइट फ्रैंक ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि दुनिया की 7.9 अरब आबादी में से करीब 4.5 अरब लोग शहरी इलाकों में रहते हैं। भारत में शहरी आबादी का 35 फीसदी हिस्सा कम गुणवत्ता वाले मकानों में रहता है। ऐसे में देश को करीब 3.5 करोड़ गुणवत्तापूर्ण मकानों की जरूरत है। इनमें से करीब 2 करोड़ मकान आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग, 1.4 करोड़ मकान निम्न आय वर्ग और 1 करोड़ मकान निम्न-मध्यम वर्ग के लिए होंगे।
नाइट फ्रैंक के अनुसार इतने बड़े पैमाने पर मकान बनाने के लिए 1,658 करोड़ वर्गफुट भूमि की जरूरत होगी। इन मकानों के निर्माण पर करीब 34.56 लाख करोड़ रुपये की लागत आएगी जबकि भूमि अधिग्रहण एवं अन्य जरूरतों के लिए 10.36 लाख करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी। कुल मिलाकर भारत में सभी जरूरतमंदों को मकान मुहैया कराने के लिए करीब 45 लाख करोड़ रुपये के भारी निवेश की जरूरत पड़ेगी। ऐसे में निजी फंड हाउस एवं अन्य निवेशकों के लिए इस क्षेत्र में निवेश का बेहतरीन मौका है।
भारत के सस्ते आवासीय क्षेत्र में 2011 के बाद से 25,970 लाख डॉलर का निजी इक्विटी (पीई) निवेश आया है। रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 100 साल के दौरान इस क्षेत्र में कुल रिहायशी श्रेणी को मिले पीई इक्विटी निवेश का 17 फीसदी निवेश हुआ। हालांकि, इसके बावजूद यह क्षेत्र फंड के लिए निवेश का प्रमुख क्षेत्र नहीं बन पाया क्योंकि चुनिंदा निजी इक्विटी फंड ही सस्ते आवास क्षेत्र को रकम उपलब्ध कराते हैं।
नाइट फ्रैंक के वरिष्ठ कार्यकारी निदेशक (अनुसंधान, सलाह, बुनियादी ढांचा एवं मूल्यांकन) गुलाम जिया ने कहा कि वर्ष 2011 से ही भारत के सस्ते आवासीय क्षेत्र में 259.7 करोड़ डॉलर का निजी निवेश आ चुका है। कंपनी का मानना है कि वर्ष 2030 तक भारत की 40 फीसदी से भी अधिक आबादी शहरी इलाकों में रह रही होगी जो अभी 35 फीसदी है।
नाइट फ्रैंक रिसर्च के अनुसार, वर्तमान में पिछले पांच वर्षों में शीर्ष आठ शहरों में 50 फीसदी लोग सस्ते मकानों में रहते हैं जिसकी कीमत करीब 50 लाख रुपये प्रति मकान है। बाजार की निराशाजनक स्थिति ने संपत्ति की बिक्री और संबंधित कीमतों को भी प्रभावित किया है। बाजार में मंदी के बीच किफायती मकान एक ऐसी श्रेणी है जो डेवलपर, वित्तीय संस्थानों, निवेशकों, नीति निर्माताओं के साथ-साथ अंतिम ग्राहक सहित सभी हितधारकों का ध्यान आकर्षित कर रहा है।
