हरियाणा और दिल्ली में पुलिस के साथ हुए दो दिनों के संघर्ष के बाद आखिरकार केंद्र सरकार ने शुक्रवार को नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों को राष्ट्रीय राजधानी में प्रवेश करने और अपने आंदोलन-प्रदर्शन को जारी रखने की अनुमति दे दी जिससे मुश्किल भरे हालात का तत्काल शांतिपूर्ण समाधान निकल गया। दिल्ली पुलिस के अधिकारियों ने बताया कि किसानों को उत्तरी दिल्ली के निरंकारी मैदान में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करने की अनुमति दी गई है। दिल्ली पुलिस केंद्रीय गृह मंत्रालय के नियंत्रण में है।
इससे पहले दिन में दिल्ली-हरियाणा सिंघू सीमा पर प्रदर्शनकारी किसानों ने पथराव किया था और बैरिकेड तोड़ दिए थे। प्रदर्शन कर रहे इन किसानों की दिल्ली पुलिस के साथ झड़प हुई थी जिसमें उन्हें तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले का इस्तेमाल किया गया था। इस बीच पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने ट्वीट किया, ‘मैं किसानों को दिल्ली में प्रवेश करने की अनुमति देने के केंद्र के फैसले का स्वागत करता हूं ताकि वे विरोध जताने के अपने लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग कर सके। उन्हें भी अब कृषि कानूनों पर किसानों की चिंताओं को दूर करने और मुद्दे को सुलझाने के लिए तत्काल बातचीत शुरू करनी चाहिए।’
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने गुरुवार को यह कहा था कि अगर कोई एमएसपी व्यवस्था में कोई बदलाव लाने की कोशिश करता है तब वह राजनीति छोड़ देंगे। शुक्रवार को उन्होंने आंदोलन कर रहे किसानों को भरोसा दिलाया कि केंद्र सरकार उनसे बातचीत के लिए हमेशा तैयार है और बातचीत के जरिये ही कोई हल निकल सकता है। भारत में कई किसान समूहों का एक समूह, संयुक्त किसान मोर्चा पंजाब से दिल्ली तक किसानों की पदयात्रा का नेतृत्व कर रहा है। संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा कि दिल्ली में शांतिपूर्ण विरोध की अनुमति देने के केंद्र के कदम से यह संकेत मिलता है कि सरकार हमारी मांगें मानने के लिए भी तैयार होगी।
किसानों ने मांग की थी कि उन्हें रामलीला मैदान में अपना विरोध प्रदर्शन करने की अनुमति दी जाए लेकिन दिल्ली पुलिस ने इस अनुरोध को स्वीकार नहीं किया। भारी सुरक्षा तैनाती के बावजूद रास्ते में पुलिस बैरिकेड तोडऩे के बाद शुक्रवार सुबह, पंजाब और हरियाणा के आंदोलनकारी किसानों के समूह दिल्ली की दो सीमाओं के करीब पहुंच गए।
दिल्ली पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को शहर में प्रवेश करने से रोकने के लिए सिंघू और टिकरी सीमा पर कंटीले तार लगाने के अलावा सुरक्षाकर्मियों की तैनाती करने के साथ-साथ रेत से लदे ट्रकों और पानी की बौछार करने के लिए भी इंतजाम किया था। इसके अलावा किसानों को ट्रेनों में चढऩे और राजधानी दिल्ली पहुंचने से रोकने के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के कई मेट्रो स्टेशनों को भी बंद कर दिया था। राष्ट्रीय राजधानी सहित उत्तर प्रदेश की सभी सीमाओं को सील कर दिया गया है और यह सुनिश्चित करने के लिए सख्त जांच की जा रही है कि ताकि किसानों की आड़ में असामाजिक लोग न घुसें। देश के अन्य हिस्सों में भी किसानों के समर्थन में विरोध प्रदर्शन किया गया। इससे पहले, गुरुवार को पंजाब के किसानों को पानी की बौछारों का सामना करना पड़ा।
हरियाणा पुलिस ने किसानों के ट्रैक्टर-ट्रॉलियों को रोकने के लिए सड़क पर सीमेंट और स्टील के बैरिकेड लगाने के साथ ही ट्रक खड़े किए गए थे जिनमें खाने का सामान लदा था। विरोध से पहले हरियाणा ने पंजाब के साथ अपनी सीमाओं को सील करने की घोषणा की थी ताकि किसानों को दिल्ली जाने के रास्ते में राज्य में प्रवेश करने से रोका जा सके। दिल्ली पुलिस ने यह भी स्पष्ट कर दिया था कि उन्होंने 26 और 27 नवंबर को राजधानी में विरोध प्रदर्शन करने की योजना बना रहे किसान संगठनों को अनुमति देने से इनकार कर दिया था।
इस बीच, कांग्रेस नेताओं राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने किसान आंदोलन को रोकने के लिए की गई सख्ती पर केंद्र सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि यह केंद्र सरकार की निरंकुश मानसिकता को दर्शाता है।
बातचीत से होगा समाधान?
किसानों की क्या है मांग?
किसान तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग के साथ यह गारंटी चाहते हैं कि कोई फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे न खरीदी जाए। इसके अलावा वे बिजली अधिनियम मसौदा को निरस्त कराना चाहते हैं जिससे उन्हें रियायती बिजली में कुछ बदलाव की आशंका दिख रही है।
यह आंदोलन राष्ट्रव्यापी है या कुछ हिस्से तक ही सीमित है?
पंजाब के ही ज्यादातर किसान इन कानूनों का विरोध कर रहे हैं लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के किसान भी इसमें शामिल हो गए हैं।
केंद्र की अब तक क्या प्रतिक्रिया रही है?
केंद्र ने आंदोलन कर रहे किसानों के साथ दो दौर की बातचीत की है और 3 दिसंबर को एक बार फिर से बातचीत की जाएगी। इसके अलावा, कई कैबिनेट मंत्रियों और अन्य लोगों ने आंदोलन कर रहे किसानों की चिंता दूर करने के लिए पंजाब का दौरा किया है।
आगे का रास्ता क्या हो सकता है?
किसान अगर इस बात पर अड़े रहे कि वे अपना आंदोलन नहीं रोकेंगे तब शायद बातचीत में कोई ठोस उम्मीद नजर आ सकती है।