बारिश वाले दिन सुबह 11 बजे, नोएडा सेक्टर 62 में स्थित एक चार मंजिला को-वर्किंग स्पेस ‘आकाश’ में खूब चहलकदमी है। 800 सीटों वाला यह को-वर्किंग स्पेस अक्टूबर 2021 में महामारी के बीच में खुला था। अब यहां 80 फीसदी जगह भर गई है। ऑफिस के अलावा जो जगह खाली है, उसमें एआई-सक्षम स्मार्ट टीवी, साउंडप्रूफ मीटिंग पॉड्स और एलेक्सा-चालित लाइट्स के साथ कॉन्फ्रेंस रूम हैं।
जिसमें जीएनएपी सर्विसेज और जियोटेक जैसी सूचना प्रौद्योगिकी फर्मों और खालसा ईवी जैसी स्टार्टअप के कर्मचारी हैं। सप्ताह के अन्य दिनों की ही तरह आज की सुबह भी इसके छत पर बने कैफेटेरिया में चहल-पहल है क्योंकि लोग कॉफी और नाश्ते के लिए यहां मौजूद है।
आकाश की चहल-पहल वहीं दर्शाती है, जिस ओर डेटा इशारा करते है। ऑफिस की मांग 2019 की तुलना में महामारी के बाद दोगुना हो गई है। संपत्ति सलाहकार एनारॉक का कहना है कि ऑफिस स्पेस के मामले में आईटी और आईटीईएस (आईटी से जुड़ी सर्विसेज) सेक्टर की हिस्सेदारी 2021 की पहली छमाही में 49 फीसदी से घट कर 2022 की दूसरी छमाही में 36 फीसदी हो गई है। नतीजतन आईटी फर्मों और स्टार्टअप से को-वर्किंग स्पेस की बड़ी मांग आ रही है।
आकाश जिसके दिल्ली एनसीआर, कोलकाता, बेंगलूरु और गुवाहाटी में कार्यालय हैं। इसके सभी केंद्रो पर 75 फीसदी जगह भर गई है। देश भर में इसके ग्राहकों में मित्सुबिशी कॉर्पोरेशन, एसेंटस्पार्क, माईफैब11 और 5डी वर्चुअल डिजाइन ऐंड कंस्ट्रक्शन भी शामिल हैं।
महामारी के दौरान बड़े शहरों में को-वर्किंग स्पेस का किराया 1,500 रुपये कम हो गया था। आकाश कोवर्किंग के मुख्य कार्याधिकारी आदित्य मेहता कहते हैं, ‘व्यवसायों में तेजी आने के साथ किराया अब महामारी से पहले के स्तर पर वापस आ गया हैं और औसत दरें भी बढ़ रही हैं।’
नाइट फ्रैंक इंडिया के अनुसंधान निदेशक विवेक राठी कहते हैं, ‘किराये पर ऑफिस लेने वालों को ‘को-वर्किंग स्पेस का लचीलापन’, प्लग-ऐंड-प्ले कार्यक्षेत्र, कम लीज टर्म लॉक-इन सुविधा और ऑफिस के परिचालन व्यय में कमी करने में मदद करता है। उनका कहना है कि महामारी के बीच बढ़ी हुई व्यावसायिक अनिश्चितता के साथ निगमों ने अपने कार्यक्षेत्र की रणनीति को लचीला बनाए रखा है। जो ऐसे फ्लेक्स स्पेस मॉडल के विकास का समर्थन करते है।
आकाश से लगभग 8.5 किलोमीटर दूर ऑफिस ऑन (जो नोएडा सेक्टर 2 में एक को-वर्किंग स्पेस है) का दृश्य भी बहुत कुछ वैसा ही है। ऑफिस ऑन में किराये पर चार सीट लेने वाली शाजिला (जो एक फैक्टचेकिंग वेबसाइट की ऑपरेशन मैनेजर हैं) कहती हैं, ‘लंबे समय तक अकेले रहने के बाद, काम के लिए इस तरह के स्थानों की बहुत अधिक आवश्यकता है।
महामारी के बाद से प्रौद्योगिकी पर हमारी निर्भरता कई गुना बढ़ गई है और ये स्थान कम लागत पर उस आवश्यकता को पूरा कर रहे हैं।’ कई को-वर्किंग ऑफिसों ने अब तकनीक में अधिक निवेश किया है। वर्चुअल ऑफिस के अलावा वह स्मार्ट बोर्डरूम, कॉन्फ्रेंस रूम और वाशरूम पेश किए हैं।
मेहता कहते हैं कि क्लाउड-आधारित सहयोग और एआई-आधारित नवाचारों को लाने के लिए भी निवेश किया जा रहा है। उनमें से कई ऊर्जा संरक्षण के लिए सौर पैनल जैसे स्थायी विकल्प अपना रहे हैं। महिलाओं के लिए जिनमें से कई कार्यबल से बाहर हो गईं या जिनकी जिम्मेदारियां महामारी के दौरान कई गुना बढ़ गईं। उनकी तरफ से फ्लेक्स स्पेस की बड़ी मांग है।
न्यूजीलैंड की एक कंपनी के लिए काम करने वाली शुभांगी कहती हैं, ‘को-वर्किंग स्पेस हमारे लिए सबसे उपयुक्त है क्योंकि हम घर भी संभालना होता है और कुशलता से काम करने में भी सक्षम हैं।’ वह आगे कहती हैं कि कार्यालय आने-जाने का समय बचता है, नेटवर्किंग के अधिक अवसर हैं और ये स्थान सुरक्षित भी हैं।
अभी भी कई लोग अपने घरों से काम कर रहे है। भुवनेश्वर, चंडीगढ़ और जयपुर जैसे मझोले शहरों में भी को-वर्किंग स्पेस की मांग बढ़ी है। जहां पर बड़े शहरों की तुलना में किराया भी कम होता है। दिल्ली स्थित सॉफ्टवेयर डेवलपर निशु सिंह कहते हैं, ‘यहां एक निश्चित अवधि के लिए हस्ताक्षर करने की कोई सीमा या अनुबंध नहीं है। हम कुछ घंटों या कुछ दिनों के लिए भी अपनी सीट बुक कर सकते हैं और फिर भी पेशेवर कार्यालय सेट-अप, नेटवर्किंग के अवसर और सम्मेलन स्थान प्राप्त कर सकते हैं।’
