सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसानों को केंद्र के कृषि कानूनों का विरोध करने का अधिकार है लेकिन वे अनिश्चितकाल के लिए सड़क अवरुद्ध नहीं कर सकते। न्यायमूर्ति एस एस कौल और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश के पीठ ने कहा कि कानूनी रूप से चुनौती लंबित है, फिर भी न्यायालय विरोध के अधिकार के खिलाफ नहीं है लेकिन अंतत: कोई समाधान निकालना होगा।
पीठ ने कहा, ‘किसानों को विरोध प्रदर्शन करने का अधिकार है लेकिन वे अनिश्चितकाल के लिए सड़क अवरुद्ध नहीं कर सकते। आप जिस तरीके से चाहें विरोध कर सकते हैं लेकिन सड़कों को इस तरह अवरुद्ध नहीं कर सकते। लोगों को सड़कों पर जाने का अधिकार है लेकिन वे इसे अवरुद्ध नहीं कर सकते।’ शीर्ष अदालत ने किसान यूनियनों से इस मुद्दे पर तीन सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया और मामले को 7 दिसंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया। न्यायालय नोएडा की निवासी मोनिका अग्रवाल की याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें कहा गया है कि किसान आंदोलन के कारण सड़क अवरुद्ध होने से आवाजाही में मुश्किल हो रही है।
किसानों ने नहीं लगाए अवरोधक: बीकेयू
राकेश टिकैत के नेतृत्व में दिल्ली-उत्तर प्रदेश की सीमा पर नवंबर 2020 से धरना दे रहे भारतीय किसान यूनियन और इसके समर्थकों ने गुरुवार को कहा कि प्रदर्शन स्थल पर अवरोधक दिल्ली पुलिस ने लगाए हैं, न कि किसानों ने। संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) का हिस्सा भारतीय किसान यूनियन ने इन खबरों को भी खारिज कर दिया कि सड़कों से अवरोध हटाने पर उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी के बाद वह गाजीपुर बॉर्डर खाली कर रही है। दिल्ली के सिंघु, टीकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर नवंबर 2020 से सैकड़ों किसान तीन कृषि कानूनों को वापस लेने और फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य बरकरार रखने की मांग करते हुए धरना दे रहे हैं। प्रदर्शन शुरू होने के बाद से ही दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश को जोडऩे वाले मुख्य मार्ग प्रभावित हैं। बीकेयू के प्रवक्ता सौरभ उपाध्याय ने कहा, ‘हम सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का सम्मान करते हैं। हम यह भी स्पष्ट करना चाहते हैं कि दिल्ली पुलिस ने प्रदर्शन स्थल पर अवरोधक लगाए हैं। हम यह भी मांग करते हैं कि दिल्ली पुलिस को अब उन्हें जनता के कल्याण के लिए हटा देना चाहिए।’
