दो अलग अलग मामलों में रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2016 यानी की रेरा के क्षेत्राधिकार को बरकरार रखने के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से उम्मीद बंधी है कि घर खरीदारों को बेवजह की परेशानी नहीं उठानी पड़ेगी और धोखधड़ी करने वाले डेवलपरों पर लीक पर चलने का दबाव बनेगा।
पहला, सभी चालू और रेरा कानून के प्रभावी होने तक पूरा होने का प्रमाणपत्र हासिल नहीं कर पाई रियल्टी परियोजनाओं पर रेरा के अधिकार क्षेत्र को बरकरार रखने के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से अब इस अधिनियम के आधार पर राज्य विशेष के निमयों में बड़ा बदलाव होने की उम्मीद है।
चालू परियोजनाओं से आशय ऐसी परियोजनाएं हैं जिन्हें देश में रेरा अधिनियम के अधिसूचित होने तक नागरिक एजेंसियों से पूरा होने का प्रमाणपत्र नहीं मिला था।
सिरिल अमरचंद मंगलदास में पार्टनर अभिलाष पिल्लई ने कहा, ‘चालू परियोजनाओं को रेरा के दायरे में तब लाया गया जब रियल एस्टेट परियोजनाओं का विकास विनियमित नहीं होता था और घर खरीदारों को रियल एस्टेट उद्योग में आधे अधूरे परियोजनाओं के अंबार से मुश्किल हो रही थी।’
पिल्लई ने कहा कि एक ओर जहां कुछ राज्यों ने रेरा नियमों में चालू परियोजनाओं को परिभाषित किया है और इसके दायरे में विस्तार किया है वहीं केंद्रीय कानून की मौलिकता से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है।
उन्होंने कहा, ‘यही कारण है कि न्यूटेक निर्णय मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने रेरा अधिनियम के इस पहलू के साथ साथ चालू परियोजनाओं में रेरा को लागू करने की संवैधानिकता को बरकरार रखा। ऐसा इस बात को ध्यान में रखकर किया गया है कि चालू परियोजनाओं को निश्चित तौर पर रेरा की निगरानी में लाए जाने की जरूरत है ताकि घर खरीदारों के हितों को सुरक्षा की जा सके। देरी से चल रहीं और निर्माणाधीन परियोजनाओं को समय पर पूरा करने का यही एकमात्र तरीका है।’
एनारॉक प्रॉपर्टी कंसल्टेंट्स के चेयरमैन अनुज पुरी ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से अन्यथा ही ठगे जा रहे घर खरीदारों का विश्वास दोबारा से बहाल होगा और न्यायालय ने इस फैसले से रेरा को और अधिक शक्ति प्रदान की है।
पुरी ने कहा, ‘कई राज्यों में रेरा के नियमों को उदार बनाया गया था जिसका कुछ डेवलपरों द्वारा दुरुपयोग किया गया। रेरा के लागू होने तक कई ऐसी परियोजनाएं थी जो पूरी नहीं हो पाई थी और वे रेरा के दायरे में नहीं आईं। अब सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से ये निर्माणाधीन परियोजनाएं भी रेरा के दायरे में आएंगी और इस प्रकार लंबी अवधि में घर खरीदारों को फायदा होगा।’
पुरी कहते हैं कि आने वाले समय में इस क्षेत्र में अधिक संख्या में आवासीय परियोजनाएं पूरी होती हुई नजर आएंगी।
उन्होंने कहा, ‘कई निर्माणाधीन परियोजनाओं के डेवलपरों ने रेरा के दायरे में नहीं आने वाली परियोजनाओं को अधर में छोड़कर रेरा के दायरे में आनी वाली परियोजनाओं पर ध्यान देना शुरू कर दिया था। अब चूंकि रेरा के दायरे में ऐसी सारी परियोजनाएं आएंगी ऐसे में उन्हें इन परियोजनाओं को पूरा करना होगा। लिहाजा हमें ऐसी परियोजनाओं की संख्या कम होती नजर आ सकती है जो भारी भरकम देरी से चल रही हैं या जिनमें निर्माण कार्य पूरी तरह से ठप पड़ चुका है।’
जुलाई में जारी किए गए एनारॉक के आंकड़ों के मुताबिक देश के शीर्ष सात शहरों में करीब 6,29,000 आवासीय इकाई निर्माण के अलग अलग चरण में थे। इनका निर्माण 2014 या उससे पहले शुरू हुआ था और इनके निर्माण में काफी देरी हो चुकी है या फिर निर्माण कार्य पूरी तरह से ठप पड़ चुका है।
निसुस फाइनैंस के मुख्य कार्याधिकारी और प्रबंध निदेशक (एमडी) अमित गोयनका ने कहा कि रेरा लागू किए जाने में अहम बात यह है कि यह खास राज्यों तक सीमित था और धन प्रवाह उन राज्यों में हो रहा था, जैसे पश्चिम बंगाल में उचित तरीके से रेरा लागू नहीं है। उन्होंने कहा, ‘यह निवेशकों और खरीदारों के लिए जाननना असंभव था कि विभिन्न राज्यों में रेरा लागू करने करने को लेकर क्या स्थिति है। यह महत्त्वपूर्ण है कि इस कानून का हर राज्य के लिए मानकीकरण किया जाए।’
