मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन किरुबकरन ने कहा कि भारत दवा के क्षेत्र में अग्रणी देश बनकर उभरा है, लेकिन दवा बनाने की मूल सामग्री के मामले में चीन से आयात पर निर्भर है। उन्होंने कहा कि यह निर्भरता हमें विकलांग बनाती है। अगर दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ता है तो यह हमारे देश के मरीजों के लिए भी दिक्कत की बात है। उन्होंने कैंसर की दवाओं के मामले में भारत की आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करने पर विचार करने के लिए 5 सदस्यों की समिति बनाने का भी आदेश दिया है।
चेन्नई की विनकेम लैब्स की ओर से दायर रिट याचिका पर सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति किरुबकरन ने अपने 226 पृष्ठों के आदेश में निर्देश दिया है कि केंद्रीय औषषि मंत्रालय एवं वित्त मंत्रालय संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारियों की एक समिति बनाएं जिससे कैंसर के उपचार पर शोष कर रही याची फर्म की वित्तीय जरूरतों सहित अन्य आवश्यक जरूरतें पूरी की जा सकें।
विनकेम ने याचिका में शोध के लिए सरकार, विभिन्न बैंकों व अन्य वित्तीय संस्थानों की ओर से वित्तीय समर्थन न मिलने का मसला उठाया था। फैसले में न्यायालय ने कहा, ‘हम पहले ही प्रतिभा पलायन के कारण तमाम योग्य लोगों को गंवा चुके हैं। यह सही वक्त है, जब याची जैसे विशेषज्ञों/वैज्ञानिकों को जरूरी समर्थन मुहैया कराया जाए।’
न्यायालय ने आदेश में उल्लेख किया है कि किस तरह से सस्ते आयातित एक्टिव फामास्यूटिकल इनग्रेडिएंट (एपीआई) की वजह से भारत फॉम्युलेशन केंद्र बनने के बजाय जेनेरिक दवाओं का केंद्र बन गया है, जो चीन से आता है।
न्यायधीश ने कहा, ‘एक समय हमारे देश में एपीआई पर 99.7 प्रतिशत आत्मनिर्भरता थी, जबकि अब एपीआई जरूरतों का 90 प्रतिशत चीन से आयात होता है। एपीआई के आयात के आर्थिक फायदे से भारत वैज्ञानिक रूप से और एपीआई की आत्मनिर्भरता के मामले में पिछड़ गया है।’
