मिर्च भी क्या बारूद का काम कर सकती है? क्या हाथी जैसा भारी भरकम जानवर महज मिर्च के भरोसे भगाया जा सकता है? सुनकर आप शायद हंसेंगे।
लेकिन रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के लिए यह बचकानी बात नहीं है। अगले महीने डीआरडीओ की रक्षा अनुसंधान प्रयोगशाला (डीआरएल) के निदेशक डॉ. आर बी श्रीवास्तव सफेद कोट में परखनलियों के साथ होने के बजाय जब बीच जंगल में मचान पर चढ़े दिखाई देंगे, तो पता चल जाएगा कि मिर्च बारूद का काम कर सकती है।
दरअसल डॉ. श्रीवास्तव मचान पर चढ़कर यह देखेंगे कि उनका नया हथियार उत्पाती हाथियों पर कितना असर डालता है और यह हथियार है नगा मिर्ची या भूत जोलोकिया यानी डीआरएल के मुताबिक संसार की सबसे तीखी मिर्च। मिर्च के तीखेपन को स्कोफील्ड हीट यूनिट (एसएचयू) में नापा जाता है।
आम भारतीय हरी मिर्च में तकरीबन 100,000 एसएचयू तीखापन होता है और आम भारतीय 200,000 एसएचयू तीखी मिर्च खाते ही पानी मांगने लगता है। भूत जोलोकिया में तीखापन लगभग 855,000 एसएचयू होता है। दुनिया में सबसे तीखी कैलिफोर्निया रेड सवाइना मिर्च में भी बस 577,000 एसएचयू का ही तीखापन होता है।
लेकिन अमेरिका में जब चिली पेपर इंस्टीटयूट ने डीआरएल के इस दावे की जब पड़ताल की, तो यह दावा गलत निकला। दरअसल संस्थान के मुताबिक मिर्च तो इस दावे से भी ज्यादा तीखी है, तकरीबन 10 लाख एसएचयू से ज्यादा तीखी!
असम के तेजपुर में डीआरएल तमाम मसालों के सैन्य इस्तेमाल की गुंजाइश ढूंढ रही है, मसलन बेहद तीखी आंसू गैस। इसी बीच विश्व वन्यजीव कोष (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) ने उससे पूछा कि क्या नगा मिर्च जंगली हाथियों को गांवों और खेतों से दूर रख सकती है।
डीआरएल ने हथियार बना दिया – नगा मिर्ची के रस में डूबी नायलोन की रस्सी गांवों के रास्तों पर बांध दी जाएंगी, जिससे हाथी वहां नहीं पहुंचेंगे। इसका परीक्षण मई और जून में होगा और उसी के लिए डॉ. श्रीवास्तव मचान पर चढ़ेंगे।
बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत में डॉ. श्रीवास्तव ठहाका लगाते हुए कहते हैं, ‘डब्ल्यूडब्ल्यूएफ कहता है कि इस परीक्षण के दौरान मुझे मचान पर रहना होगा। भगवान जाने कि हाथी मेरे साथ क्या करेंगे।’ पूर्वोत्तर के इलाकों में मिलने वाले पानी में लौह तत्व बहुत ज्यादा होता है।
कुछ इलाकों में 30-40 पीपीएम तक पहुंच जाती है। डीआरएल ने इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन की मान्य सीमा 0.3 पीपीएम तक लाने का बीड़ा उठाया। उसने पानी का परीक्षण करने वाली किट बनाई, जिसे जवान अपने साथ ले जाकर कहीं भी पानी का परीक्षण कर सकते हैं।
किट पानी में पीएच स्तर, कठोरता और लौह की मात्रा नापती है। पेटेंट कराने के बाद तकनीक 3 निजी कंपनियों को दे दी गई। नासिक में पिछले साल बाढ़ के दौरान यह उपयोगी साबित हुई। इसके बाद डीआरएल के जल रसायन विभाग ने पत्थर, बालू आदि के इस्तेमाल से ऐसी तकनीक बनाई, जिससे पानी में लौह का स्तर कम हो गया।
इस उपकरण की कीमत केवल 30,000 रुपये है और बिजली के इस्तेमाल के बिना भी हर घंटे इससे 300 लीटर पानी शुद्ध हो जाता है। इसके लिए आम तौर पर 3 से 4 लाख रुपये के उपकरण इस्तेमाल होते हैं और उनसे साफ किए गए पानी में लौह की मात्रा 17 गुना तक ज्यादा पाई जाती है।
