देश में 18 साल से कम उम्र के कोविड-19 टीका पाने वाले बच्चों की लंबी अवधि की निगरानी के लिए एक शोध कराया जा रहा है। इसकी जानकारी एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने दी। इस अध्ययन के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को टीकाकरण तकनीकी सहायता इकाई (आईटीएसयू) तकनीकी-प्रबंधन समर्थन देगा। टीकाकरण पर आधारित राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह (एनटीएजीआई) से जुड़े कोविड-19 कार्यसमूह के प्रमुख एन के अरोड़ा ने कहा, ‘कोविड-19 टीके लेने वाले बच्चों की लंबी अवधि तक निगरानी की जाएगी। इस प्रक्रिया के तहत बच्चों के समान समूह के आंकड़े जुटाए जाएंगे और उनकी निगरानी लंबी अवधि तक मसलन 5 साल, 10 साल, 15 साल या इससे अधिक अवधि तक की जाएगी। भविष्य में इस तरह के अध्ययन की पूरी गुंजाइश है।’
बिज़नेस स्टैंडर्ड से बातचीत करते हुए अरोड़ा ने कहा कि इस तरह के अध्ययन के पहले भी अनुमति दी गई है। इससे मिलने वाले डेटा का तुरंत इस्तेमाल नहीं हो सकता है। वह कहते हैं, ‘इससे लंबी अवधि के डेटा तैयार होंगे। अगर कोई दूसरी महामारी फिर से शुरू होती है तब हमारे पास नीतियां बनाने के लिए डेटाबैंक तैयार होगा।’
बच्चों की निगरानी करते वक्त उनके संक्रमण लगने के वक्त से लेकर बीमारी होने पर उनके लक्षणों पर नजर रखने के साथ ही यह भी देखना होता है कि कितने बच्चे गंभीर रूप से बीमार हुए और उन्हें कौन सा टीका मिला है और अगर वे संक्रमित हुए हैं तो संक्रमण का रुझान कैसा रहा, कोई दुष्प्रभाव दिखा या नहीं, महामारी विज्ञान से जुड़े इन्हीं प्रमुख डेटा पर गौर करना होता है जो भविष्य की नीतियां तैयार करने में मददगार साबित होंगी।
फिलहाल, हमारे पास बच्चों को दिए जाने वाले टीके से जुड़ी प्रतिरोधक क्षमता के डेटा है। इसका अर्थ यह भी है कि हम यह जानते हैं कि टीके एक बार दिए जाने के बाद वांछित प्रतिरोधक क्षमता की प्रतिक्रिया देते हैं। लेकिन, विशेषज्ञ इस बात की ओर इशारा करते रहे हैं कि टीकाकरण के असर, कोविड-19 बीमारी को समझने और उसके मुताबिक नीतियां तैयार करने के लिए एक बड़े डेटा-बैंक की आवश्यकता होती है।
सूक्ष्मजीव विज्ञानी और सीएमसी, वेलूर में प्रोफेसर गगनदीप कांग ने कहा, ’हमें यह निगरानी करने की आवश्यकता है कि बच्चे समय के साथ टीकों के प्रति कैसी प्रतिक्रिया देते हैं। मान लीजिए कि हम 2 साल के बच्चे को टीका देते हैं और फिर जब वह दूसरी खुराक की आवश्यकता तब होगी जब वह 10 साल की उम्र की होगी? हमारे पास अभी उपलब्ध टीकों पर आधारित प्रतिरोधक क्षमता से जुड़े डेटा हैं। हमें बच्चों के प्रतिरोधक क्षमता से जुड़े नतीजों पर एक डेटाबेस बनाने की जरूरत है। हमें उन बच्चों पर कुछ वक्त तक नजर रखने की जरूरत होती है जिन्हें टीके दिए जाते हैं ताकि उनमें बीमारी की घटनाओं पर नजर रखी जा सके।’
कोविड-19 बीमारी ने आमतौर पर वयस्कों को प्रभावित किया है। कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के साथ-साथ अन्य बीमारियों से ग्रस्त बच्चों को छोड़कर बाकी बच्चों में बीमारी के बेहद गंभीर होने की सूचना नहीं मिली है। कांग ने कहा कि बच्चों में करीब 80 फीसदी सीरो-पॉजिटिविटी दर्ज की गई है। वह कहती हैं, ‘अगर हम पीछे मुड़कर देखें तो हम निश्चित रूप से जानते हैं कि भारत के 80 प्रतिशत बच्चे गंभीर रूप से बीमार नहीं हुए। जब बच्चे संक्रमित होते हैं तब उनकी प्रतिरोधक प्रणाली इससे लड़ने का काम करती है। वे आमतौर पर बेहद आसानी से संक्रमण को नियंत्रित करने में सक्षम होते हैं।’
इसलिए विशेषज्ञों का मानना है कि भविष्य के लिए डेटाबैंक बनाने का यह सही समय है।
