केंद्र सरकार ने दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में हवा की गुणवत्ता के मामले से निपटने के लिए एक नया अध्यादेश जारी किया है। ‘द कमीशन फार एयर क्वालिटी मैनेजमेंट इन नैशनल कैपिटल रीजन ऐंड एडजॉइनिंग एरिया, 2020’ नाम के इस अध्यादेश पर राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर कर दिया है।
यह पहला मौका है, जब केंद्र सरकार ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (ईपीए), 1986 के तहत वायु प्रदूषण के लिए विधायी आयोग का गठन किया है। हालांकि उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद 1998 में गठित पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम एवं नियंत्रण) प्राधिकरण (ईपीसीए) पहले से ही मौजूद है, लेकिन राज्यों के साथ तालमेल के मामलों में इसकी शक्तियां और कामकाज सीमित है।
इस अध्यादेश के मुताबिक 18 सदस्यों के आयोग का गठन होगा, जिसमें चेयरपर्सन, सेक्रेटरी और विभिन्न मंत्रालयों के 8 संबंधित सदस्य होंगे, जिन्हें एनसीआर में हवा की गुणवत्ता के प्रबंधन को लेकर विशेष न्यायाधिकार होगा। इसे किसी भी प्रदूषण स्थल पर तलाशी, जब्ती का विवेकाधिकार होगा, साथ ही आयोग वारंट भी जारी कर सकेगा।
7 केंद्रीय मंत्रायलों के अलावा आयोग में 5 राज्यों, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संसंस्थान, नीति आयोग और प्रदूषण के विशेषज्ञ और एनजीओ के प्रतिनिधि शामिल होंगे।
आयोग प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और इससे बचने के लिए कार्यक्रम की योजन बनाने, उसे लागू करने और निगरानी करने में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के साथ तालमेल स्थापित करेगा। आयोग को यह अधिकार होगा कि वह किसी उद्योग या ऑपरेशन को वायु प्रदूषण फैलाने पर प्रतिबंधित या बंद करने के आदेश दे दे। यह बिजली व पानी की आपूर्ति को भी नियंत्रित कर सकता है। अगर प्रदूषण करने वाले किसी स्थल पर आयोग को कोई व्यवधान आता है तो वह आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 के तहत तलाशी ले सकता है और उसे जब्त कर सकता है और संहिता की धारा 94 के तहत वारंट जारी कर सकता है।
आयोग हवा की गुणवत्ता, उत्सर्जन और पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले अपशिष्ट को लेकर मानक भी तैयार करेगा। उसे साइट की निगरानी व जांच व वायु प्रदूषण से जुड़ी रिचर्स कराने के अधिकार होंगे।
अध्यादेश में कहा गया है, ‘यह एनसीआर में राष्ट्रीय स्वस्थ वायु कार्यक्रम, राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी कायर्क्रम, राष्ट्रीय व्यापक वायु गुणवत्ता मानक लागू करने की व्यवस्था और साधन मुहैया कराएगा।’
पराली जलाने की समस्या पर काबू पाने के अलावा आयोग प्रदूषण करने वाले अन्य स्रोतों को भी चिह्नित करेगा। साथ ही पौधरोपण की निगरानी, जागरूकता अभियान और शोध को प्रोत्साहन देने का भी काम करेगा।
आयोग वित्त वर्ष के दौरान किए जाने वाले काम की सालाना रिपोर्ट तैयार करेगा। आयोग और उसके काम के बारे में सिर्फ राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण में सुनवाई हो सकेगी।
