वैश्विक महामारी और परिवारों पर स्वास्थ्य खर्च की बढ़ती बोझ के बीच भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) ने फार्मास्यूटिकल क्षेत्र में गैर प्रतिस्पर्धी गतिविधियों की पहचान करने और उसका समाधान करने के लिए एक अध्ययन शुरू किया है।
सीसीआई के अध्यक्ष अशोक गुप्ता ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि फार्मास्यूटिकल बाजारों में प्रतिस्पर्धा को बाधित करने वाले तंत्रों की पहचान करना और उचित उपाय कर उसका समाधान करना महमारी के दौरान सबसे प्रमुख बात है।
कोविड-19 महामारी ने इस अध्यन को अधिक समीचीन बना दिया है, सीसीआई ने इस क्षेत्र में व्यापार गतिविधियों से संबंधित मामलों की भारी संख्या को देखते हुए अध्ययन कराने का निर्णय लिया।
अध्ययन में वितरण शृंखला में व्यापार संघों, ई-फार्मेसियों की भूमिका और क्या ये इस क्षेत्र में बाजार और प्रतिस्पर्धा को नुकसान पहुंचा रहे हैं, का अध्ययन किया जाएगा।
सीसीआई के अध्यक्ष ने कहा, ‘वर्षों के हमारे प्रवर्तन से पता चलता है कि फार्मास्यूटिकल क्षेत्र में कुछ निश्चित औद्योगिक तरीके बाजार को प्रभावी रूप से काम करने और कम कीमत तथा विश्वसनीय गुणवत्ता के रूप में बाजार के परिणामों को सामने आने देने के लिए स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की अनुमति नहीं देते हैं।’
फार्मा बाजार के अध्ययन में इस क्षेत्र में वितरण शृंखला के चार प्रमुख पहलुओं पर ध्यान दिया जाएगा। इसमें थोक और खुदरा स्तरों पर छूट और मार्जिन नीति, व्यापार संघों की भूमिका, व्यापार मार्जिनों का नियामकीय युक्तिकरण और कीमत तथा प्रतिस्पर्धा पर ई-कॉमर्स के असर का अध्ययन शामिल है। गैर-प्रतिस्र्धा पर नजर रखने वाला यह आयोग भारत में ब्रांडेड जेनेरिक औषधियों के प्रसार के दायरे और प्रतिस्पर्धा पर इसके परिणामों की भी जांच करेगा और भारत में बायोसिमिलर औषधियों के प्रवेश में संभावित रुकावटों का भी पता लगाएगा।
सीसीआई प्रमुख ने कहा, ‘बहुत सारे ऐसे मामले हैं जिनमें आयोग ने निर्णय दिया है और बहुत सारी शिकायतें अभी भी आती हैं कि औषधियों की समूची आपूर्ति शृंखला व्यापार संघों द्वारा स्वयं से विनियमित है।’
सीसीआई ने पाया है कि इन संघों द्वारा आपूर्ति शृंखला पर कठोर नियंत्रण से बाजार में बाधा उत्पन्न हुई है।
उन्होंने कहा, ‘इसने फार्मास्यूटिकल बाजारों को प्रतिस्पर्धा के लाभों से वंचित कर दिया है जिसके कारण कीमत और गुणवत्ता के संदर्भ में ईष्टतम परिणाम सामने नहीं आते हैं। इन्हें बाजार के प्रतिस्पर्धियों पर छोड़ देना चाहिए जो कीमत और गुणवत्ता के मामले में प्रतिस्पर्धा करेंगे और इन्हें संघों के फरमानों से मुक्त होना चाहिए।’ सीसीआई फार्मा कंपनियों पर अपने अध्ययन के नतीजों के आधार एक एक परामर्श जारी कर सकता है। गुप्ता ने कहा, ‘यदि हम प्रतिस्पर्धा को बाधित करने वाले तरीकों की पहचान करते हैं और इस प्रकार दवाइयों की वहनीयता तक पहुंचते हैं तो हम औषधि आपूर्ति शृंखला में शामिल सभी साझेदारों के लिए एक परामर्श जारी कर सकते हैं। इन साझेदारों में फार्मा कंपनियों से लेकर खुदरा विक्रेता तक शामिल हैं। परामर्श में करने और नहीं करने जैसी कुछ निश्चित बातें हो सकती हैं।’
आयोग अपने अध्यय के दौरान फार्मास्यूटिकल कंपनियों, स्टॉकिस्टों, केमिस्टों, व्यापार संघों, ऑनलाइन फार्मेसियों, डॉक्टरों, क्षेत्र के विशेषज्ञों और नियामकों तक पहुंचेगा।
सीसीआई ने ई-कॉमर्स के दायरे को समझने के लिए पहले इसी तरह का एक अध्ययन किया था।
