मायानगरी पर हुए हमलों के वक्त शायद कुछ लोगों को तकनीक की याद आ रही होगी।
तकनीक ही आज के युग में वह हथियार है, जो मासूमों की ओर तनी एके 47 रायफल और एम 5 जैसे हथियारों को भी बेअसर कर सकती है। इसीलिए पुलिस को भी यकीन है कि हमलावरों को पकड़ने में ज्यादा वक्त शायद ही लगे।
दरअसल ताज और ओबेरॉय होटलों और छत्रपति शिवाजी टर्मिनस के चप्पे-चप्पे पर क्लोज सर्किट टीवी (सीसीटीवी) कैमरा का पहरा बिछा हुआ है और दहशतगर्दों की हरेक हरकत उन कैमरों में कैद हो गई होगी। इसलिए पूरे घटनाक्रम को समझना और आतंकवादियों को पहचानना अब मुश्किल नहीं होगा।
सीसीटीवी और मेटल डिटेक्टर जैसी तकनीकें मुंबई जैसे शहर के लिए कोई नया नाम नहीं हैं। जाइकॉम, हनीवेल, सीमेंस और गोदरेज कंपनियों ने शहर की निगहबानी के लिए इन कैमरों को जगह-जगह लगाया है। चौबीसों घंटे मुंबई की खास जगहों पर उठने वाले एक-एक कदम को ये कैमरे पकड़ते रहते हैं।
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस से ठाणे के बीच 30 किलोमीटर का फासला है और उसमें जगह-जगह सीसीटीवी कैमरा लगे हुए हैं। जाइकॉम ने चर्चगेट से विरार के बीच 60 किलोमीटर के रास्ते की निगरानी के लिए 820 कैमरे लगाए हैं।
इसी तरह मुंबई के सभी ट्रैफिक सिग्नलों पर भी 100 के करीब सीसीटीवी लगाए गए हैं, जिन पर 4 करोड़ रुपये की लागत आई है। इसके अलावा दादर में प्रसिद्ध सिद्धिविनायक मंदिर में भी सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं।
इस काम में सरकार पर आने वाला लागत खर्च कोई बहुत ज्यादा नहीं है। मिसाल के तौर पर चर्चगेट से विरार के बीच इन कैमरों को लगाने पर ज्यादा खर्च नहीं आया क्योंकि इन्हें जाइकॉम ने लगाया और उसने इसके लिए सरकार से कोई पैसा नहीं मांगा। राज्य सरकार बस इनके रखरखाव के लिए हर महीने 11 लाख रुपये देती है।
लेकिन हमलावरों ने जिस तटीय इलाके से मुंबई में कदम रखा, उसमें सुरक्षा का खास खयाल नहीं रखा गया है। सीसीटीवी कैमरों के मामले में यह इलाका बिल्कुल दरिद्र है। सुरक्षा विशेषज्ञ इसके लिए सरकार को ही तोहमत देते हैं। उनके मुताबिक सरकार मानती है कि इस इलाके में कैमरे लगाना बेकार का खर्च होगा।
वे कहते हैं कि सरकार तभी जागती है, जब कोई आतंकी हमला होता है और कुछ वक्त बाद फिर सो जाती है। इसे साबित करने के लिए यही मिसाल काफी है। आतंकी जब दो जीपों में सवार होकर भागे, तो मुंबईवासियों के पास एसएमएस आने लगे। इनमें दोनों जीपों के नंबर थे और कहा गया था कि इन्हें देखते ही 100 नंबर पर पुलिस को सूचित किया जाए।
लेकिन सुरक्षा जानकारों के अनुसार इससे ज्यादा कदम उठाए जाने चाहिए क्योंकि यह तो तकनीक का बुनियादी इस्तेमाल है। फिक्की की सुरक्षा समिति के अध्यक्ष विजय मुखी कहते हैं, ‘जब भी कोई आतंकी भागता है, तो उनके पीछे पैसा सबूत छोड़ जाता है। किसी भी खुफिया सॉफ्टवेयर के जरिये सबसे पहले आप उन वाहनों की खरीद का ब्योरा हासिल कर सकते हैं, जिनमें वे भागते हैं।
ये सॉफ्टवेयर हमेशा उन तरीकों पर काम करते हैं, जिन पर आम आदमी सोच भी नहीं पाता।’
अमेरिका में सभी हवाई अड्डों पर लावारिस पड़े सामान के बारे में पांच मिनट के अंदर ही कैमरे बता देते हैं। लेकिन ताज और ओबेरॉय में तो हथियारों से भरे बैग को भी नहीं पकड़ा जा सका। इस तरह की लापरवाही से बचना होगा।
इनकार ने रखी ताज की बुनियाद
आतंकवादियों के हमले का प्रतीक बना ताज महल होटल भारतीयों के लिए गुलामी के समय से ही गर्व का प्रतीक रहा है। अपने खूबसूत गुंबद की वजह से मुंबई के स्काईलाइन में शुमार इस होटल की बुनियाद दरअसल इनकार की वजह से रखी गई थी।
स्टील मैन ऑफ इंडिया कहलाने वाले जमशेदजी टाटा ने इस होटल की नींव रखी थी। बताया जाता है कि टाटा अंग्रेजों के शासनकाल के दौर में मशहूर होटल वाटसन में गए, तो उन्हें बाहर ही रोक दिया गया। जब उन्होंने वजह पूछी, तो बताया गया कि यह होटल केवल ‘श्वेतों’ के लिए है और इसमें ‘अश्वेतों’ को आने की इजाजत नहीं है।
इस पर टाटा ने तय किया कि वह वाटसन से भी ज्यादा आलीशान होटल बनाएंगे। इस तरह ताज होटल की स्थापना की गई। वास्तुकला के बेजोड़ नमूने के तौर पर मशहूर इस होटल के निर्माण में उस वक्त 42 करोड़ रुपये की लागत आई थी।
होटल दरअसल मूरिश, ओरियंटल और फ्लोरेन्टाइन वास्तु शैली का मिलाजुला उदाहरण है। इसमें नक्कशीदार छत, सुलेमानी खंभे, खूबसूतर मेहराब, रेशमी कालीन और कीमती फानूस लगे हैं।
इस खूबसूरत और ऊंची इमारत में 565 कमरे हैं। इनमें 46 सुइट्स भी शामिल हैं।
पहले विश्व युद्ध के समय इस इमारत में अस्पताल था।?उसमें 600 कमरे थे, जिन्हें होटल में तब्दील कर दिया गया। इस होटल में ठहरने वालों की फे हरिस्त में भी मशहूर नाम शामिल हैं। इनमें रॉक स्टार माइक जैगर, फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति याक शिराक, प्रिंस चार्ल्स, द बीटल्स, बिल क्लिंटन और एल्विस प्रिस्ले हैं।
तीसरी बार नहीं बच पाया होटल ताज
ताज महल होटल पर हमलों की यह कोई पहली घटना नहीं थी। इससे पहले भी मुंबई की शान के प्रतीक इस अनूठे होटल पर हमले होते रहे हैं।
कम से कम दो बार तो यह बड़े हमलों से बच गया, लेकिन तीसरी बार किस्मत ने इस होटल का साथ नहीं दिया। ऐतिहासिक गेटवे आफ इंडिया के पीछे बन इस होटल को पहली बार 1993 के शृंखलाबद्ध बम विस्फोटों के दौरान निशाना बनाया गया था।
उस वक्त ताज होटल के पीछे खड़ी एक कार में भी बम फटा था। लेकिन होटल को कोई नुकसान नहीं पहुंचा।?2003 में जब गेटवे ऑफ इंडिया पर हमला हुआ था, तब भी होटल पर बम फेंका गया था। लेकिन वह बम होटल से काफी दूर पत्थर पर फट गया।
नया जासूस
ताज और ओबेरॉय में लगे हैं क्लोज सर्किट टीवी कैमरा
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस पर भी कैमरे
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