ब्लूलाइन बसों को देखकर अब शायद दिल्लीवालों के रोंगटे नहीं खड़े होंगे। नामी-गिरामी कंपनियों के राजधानी में बस चलाने की ख्वाहिश जाहिर करने के बाद उम्मीद तो कुछ ऐसी ही है।
करीब 57 करोड़ रुपये के पहले क्लस्टर में ऐसे 11 बड़े खिलाड़ी 200 बसें सड़कों पर उतारने का इरादा रखते हैं। यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के परिवहन विभाग की उस कवायद केतहत हुआ है, जिसके तहत 4000 ब्लूलाइन बसों का निगमीकरण (कॉरपोरेटाइज) किये जाने की योजना है।
इस प्रक्रिया में 1140 करोड़ रुपये खर्च होंगे। इन कंपनियों में ऑरिक्स इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (जापानी कंपनी ऑरिक्स कॉरपोरेशन और आईएलएंडएफएस का संयुक्त उपक्रम), मेगा कॉरपोरेशन लिमिटेड, गोवर्धन ट्रांसपोर्ट कंपनी प्राइवेट लिमिटेड, सिटी लाइफ लाइन ट्रैवल्स प्राइवेट लिमिटेड, इंद्रप्रस्थ लॉजिस्टिक्स लिमिटेड, स्टारबस सर्विस लिमिटेड वगैरह शामिल हैं।
दिल्ली परिवहन विभाग ने पूरी दिल्ली को 17 क्लस्टरों में बांटा है और पहले क्लस्टर के लिए योग्यता आवेदन (रिक्वेस्ट फॉर क्वालिफिकेशन) मांगे गए हैं। विभाग पहले क्लस्टर के तहत 200 ब्लू लाइन बसों की जगह पर 35 लो फ्लोर बसें, 30 सेमी लो फ्लोर बसें और बाकी साधारण बसें सड़कों पर उतारेगा।
इस साल के अंत तक शुरू होने वाली यह नई बस सेवा दिल्ली के 32 रूटों पर उपलब्ध होगी। दिल्ली के परिवहन आयुक्त रजनीकांत वर्मा ने बताया कि पहले क्लस्टर के लिए आवेदनों की जांच पड़ताल की जा रही है और इस हफ्ते के खत्म होने तक प्रस्ताव भेज दिया जाएगा।
वर्मा ने उम्मीद जताई कि जून 2008 तक ठेके देने का काम पूरा हो जाएगा और अगले क्लस्टरों के लिए आवेदन मंगाने का सिलसिला दो महीने के भीतर शुरु हो जाएगा। वर्मा ने विश्वास भरे लहजे में कहा कि निजीकरण की यह प्रक्रिया साल खत्म होने तक पूरी कर ली जाएगी। 2010 में होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों से पहले सारी ब्लूलाइन बसों को सड़कों से हटाना ही इस मुहिम का बुनियादी उद्देश्य है।