महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों पर हमले के बाद पैदा हुआ क्षेत्रवाद का जिन्न महाराष्ट्र के बाहर भी पैर पसारने लगा है।
क्षेत्रवाद की आग से फैले दहशत और डर के माहौल के चलते उत्तर भारत से महाराष्ट्र आने वाले लोगों की संख्या तो घटी ही, महाराष्ट्र से उत्तर भारत के विभिन्न धार्मिक और पर्यटक स्थलों में घूमने जाने वाले महाराष्ट्र के पर्यटकों ने भी अपनी यात्राएं फिलहाल रद्द कर दी हैं।
मुंबई की हीरा दया पवार सारनाथ, लुंबिनी, वैशाली, बोधगया और नालंदा जैसे प्रसिद्ध बौद्ध स्थलों की यात्रा पर पिछले दिनों निकलीं। उनके साथ 60-70 साल के अन्य 63 लोग भी थे। इनमें 55 महिलाएं थीं। इसी दौरान बिहार में छात्रों ने उग्र प्रदर्शन किया, जिसकी चपेट में तीर्थ यात्रियों का यह दल भी फंस गया था।
पवार बताती हैं कि हम बोधगया से पटना के लिए निकले थे कि पटना से करीब 35 किलोमीटर पहले हमारी बस को रोक लिया गया। पुलिस ने हमारी बस को आगे जाने से रोक दिया। ढाबे वालों ने हमारी बस को अपने यहां खड़ी नहीं होने दी। उनका कहना था कि तुम्हारे साथ हमारा ढाबा भी तोड़ दिया जाएगा।
टूर मैनेजर ने बस जंगल में ही खड़ी करा दी। यात्रियों ने जैसे-तैसे बिहार के एक बड़े नेता का नंबर निकालकर उनसे जान की गुहार लगाई। नेताजी ने इनको धीरज बंधाते हुए, तुंरत पुलिस दल मौके पर भेजा। लेकिन छात्रों की संख्या को देखते हुए पटना पुलिस अधीक्षक को इनकी सुरक्षा केलिए कमांडो देने पड़े, तब जाकर जान बची।
पवार कहती हैं कि बिहार पुलिस के जवानों ने हमारे सामान को अपने सिर पर रखकर हमें ट्रेन में बैठाया, जबकि बिहार के बच्चे मुंबई में पुलिस वालों के सामने पिटते रहे। हालत यह है कि उत्तर भारत के लिए पर्यटन के कारोबार में 60 फीसदी तक की कमी आई है।
नंवबर और दिसंबर के लिए पहले से बुक कराए गये टिकटों में से 30 फीसदी को लोगों ने रद्द करा दिया है। चौधरी यात्रा कंपनी के संचालक चौधरी के अनुसार, पिछले वर्ष अक्टूबर-नवंबर में दिवाली के दौरान 645 पर्यटकों ने 56 लाख की बुकिंग कराई थी, जबकि इस बार इसमें कमी देखने को मिल रही है।
विभिन्न ट्रैवल एजेंसियों से मिली जानकारी के अनुसार, लोग ताजमहल जैसी प्रेम की निशानी को देखने के लिए भी नहीं जाना चाहते हैं। उत्तर भारत से हर साल लाखों पर्यटक महाराष्ट्र आते थे, लेकिन इस बार संख्या काफी कम है।
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