महाराष्ट्र में शिवसेना के एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे गुट के बीच में सियासी जंग जारी है है। केंद्रीय चुनाव आयोग के समक्ष उद्धव ठाकरे गुट ने पार्टी का वैकल्पिक नाम और चुनाव चिन्ह पेश किए हैं। तो शिंदे गुट की तरफ से भी लगभग वही नाम और निशान की मांग की गई। दोनों गुट बाला साहेब ठाकरे पर दावा ठोक रहे हैं। आयोग ने दो दिन पहले पार्टी का धनुष-बाण चिह्न पर रोक लगा दी थी और दोनों खेमों को वैकल्पिक चिह्न और पार्टी नाम का सुझाव देने को कहा था। आयोग के इस फैसले के खिलाफ उद्धव खेमे ने अदालत में याचिक दायर की।
आयोग से प्राप्त जानकारी के मुताबिक शिवसेना के उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे नीत खेमों ने निर्वाचन आयोग को अपनी पसंद के तीन-तीन वैकल्पिक चिह्न और नाम औपचारिक रूप से सौंपे हैं। निर्वाचन आयोग अब यह पड़ताल करेगा कि इन चिह्नों का इस्तेमाल कोई अन्य पार्टी तो नहीं कर रही है। पूरी जांच के बाद आयोग फैसला लेगा कि किस गुट को क्या नाम और चिन्ह दिया जाए।
शनिवार को, आयोग ने शिवसेना के दोनों खेमों को तीन नवंबर को अंधेरी ईस्ट विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव में पार्टी के नाम और चुनाव चिह्न का इस्तेमाल करने से प्रतिबंधित कर दिया था। पार्टी पर नियंत्रण के लिए प्रतिद्वंद्वी खेमों के दावे को लेकर एक अंतरिम आदेश में आयोग ने उन दोनों से सोमवार तक अपनी पसंद के तीन अलग-अलग नाम और चिह्न बताने को कहा था। ठाकरे खेमे ने त्रिशूल,मशाल और उगते सूरज की मांग की। उद्धव ठाकरे गुट की तरह ही एकनाथ शिंदे गुट ने भी उगते सूरज और त्रिशूल पर दावा ठोका है। ऐसे में, एक बार फिर से चुनाव आयोग के सामने कशमकश की स्थिति पैदा हो चुकी है। पार्टी के नाम को लेकर भी एकनाथ शिंदे गुट ने शिवसेना प्रबोधनकार ठाकरे, शिवसेना बालासाहेब ठाकरे दिए गए हैं। दोनों ही गुट शिवसेना बालासाहेब ठाकरे नाम देने की मांग कर रहे हैं।
अंधेरी विधानसभा उपचुनाव में नामांकन पत्र दाखिल करने की अंतिम तिथि 14 अक्टूबर है, ऐसे में दोनों खेमों के वैकल्पिक चिह्न और नामों पर आयोग के शीघ्र फैसला करने की संभावना है। तीन नवंबर को यहां मतदान होना है।
शिवसेना उद्धव खेमे ने पार्टी के नाम और चुनाव चिह्न का उपयोग करने पर पाबंदी लगाए जाने के निर्वाचन आयोग के आदेश को रद्द करने की मांग करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया। ठाकरे द्वारा दायर याचिका में आयोग के आठ अक्टूबर के आदेश को चुनौती दी गई है। इसमें यह दलील दी गई है कि यह आदेश नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का पूर्ण उल्लंघन करते हुए और पक्षों को सुने बगैर जारी किया गया।
याचिका में निर्वाचन आयोग और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथराव संभाजी शिंदे को पक्षकार बनाया गया है। इस पर महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री और भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि ठाकरे गुट को पता था कि निर्वाचन आयोग के समक्ष उसका मामला कमजोर है। ठाकरे गुट ने जानबूझकर सुनवाई की तारीख स्थगित कराई, लेकिन स्थगन का मतलब यह नहीं है कि आप कानून से बच सकते हैं। किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि निर्वाचन आयोग ने अंतरिम आदेश दिया है, न कि अंतिम निर्णय। पिछले 25 साल में जब भी इस तरह पार्टी टूटने के मामले सामने आए हैं, आयोग ने चुनाव चिन्ह और पार्टी के नाम के इस्तेमाल पर रोक लगाई है।
शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना की संपादकीय के माध्यम से कहा कि यह पाप दिल्ली ने किया। बेईमान लोगों ने यह बेईमानी की, लेकिन हम इतना ही कहेंगे कि कितना भी संकट आ जाए,हम खड़े ही रहेंगे। निर्वाचन आयोग ने शिवसेना के मामले में क्रूर फैसला दिया है और बालासाहेब ठाकरे द्वारा स्थापित की गई शिवसेना का नामोनिशान खत्म करने की कोशिश की गई है। आयोग ने ऐसा निर्णय देकर महाराष्ट्र में घना अंधेरा ला दिया है। बालासाहेब ठाकरे ने 56 साल पहले मराठी अस्मिता व मराठी लोगों के न्याय व अधिकार के लिए एक अलख जगाई। उस शिवसेना का अस्तित्व खत्म करने के लिए एकनाथ शिंदे और उनके 40 सहयोगी दिल्ली के गुलाम बन गए हैं। मुख्यमंत्री पद और कुछ मंत्री पद की सौदेबाजी में महाराष्ट्र का स्वाभिमान बेचने वाले इन लोगों के आगे औरंगजेब की दुष्टता भी फीकी पड़ जाएगी। भारतीय जनता पार्टी इन सबकी सूत्रधार है। शिवसेना को जमीन दिखाएंगे, ऐसा अमित शाह कहते थे। शिवसेना रही ही नहीं, ऐसा फडणवीस ने घोषित किया। वे शिवसेना से मैदान में लड़ नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने न्यायालय और निर्वाचन आयोग के कंधे पर बंदूक रखकर शिवसेना पर गोली दागी।