बिहार में 28 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है और मतदाताओं को उम्मीद है कि अगले पांच साल, पिछले पांच साल से बेहतर हों वहीं दूसरी तरफ इस चुनाव के कई प्रमुख खिलाड़ी इस चुनाव को अगले विधानसभा चुनाव में जोरदार आगाज के लिए एक शुरुआती मोड़ के तौर पर देख रहे हैं।
विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव और लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के चिराग पासवान के लिए यह चुनाव सत्ता तक पहुंचने का रास्ता है लेकिन जरूरी नहीं है कि सत्ता की कुर्सी तक अपनी पहुंच बना पाएं। नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए यह चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की संयुक्त अपील से सत्ता में अपनी पकड़ मजबूत करने का एक तरीका है। पार्टी को उम्मीद है कि 2019 के लोकसभा चुनावों को दोहराया जाएगा जब दोनों दलों की टीम ने 40 लोकसभा सीटों में से 39 सीटों पर जीत हासिल की थी।
हाल ही में मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने पटना में कहा कि भारतीय निर्वाचन आयोग ने यह सुनिश्चि किया है कि महामारी के चलते बिहार के गांवों में लौटे 2,30,000 प्रवासी कामगारों में से एक भी मतदान का मौका न गंवाए। यह पहली बार है जब प्रवासी कामगारों के लिए एक आधिकारिक संख्या सार्वजनिक की गई है। ये प्रवासी मजदूर इस बात को लेकर खासे नाराज हैं कि राज्य सरकार ने उनके राज्य में वापस आने पर कोई मदद नहीं दी। वहीं दूसरी ओर मतदाता स्वीकार करते हैं कि नीतीश कुमार के 15 साल के शासनकाल (जीतन राम मांझी के छोटे से अंतराल को छोड़कर) में व्यापक बुनियादी ढांचे का विकास हुआ है। इससे सभी जाति वर्ग के लोगों को फायदा पहुंचा है।
मध्य बिहार में जहां 28 अक्टूबर को चुनाव होने वाले हैं, वहां के साथ-साथ राज्य के बाकी हिस्सों में भी विपक्ष ने नौकरियों में कमी को मुद्दा बनाया है। अपने घोषणापत्र में हर पार्टी चाहे वह भाजपा, जदयू हो या राजद सभी ने बेरोजगारी को राज्य की सबसे बड़ी चुनौती बताया है। राजद ने राज्य में बेरोजगार युवाओं को 1500 रुपये भत्ता देने का वादा भी किया है। अब बहस इस बात को लेकर है कि क्या राजद की भावी सरकार 10 लाख नौकरियां दे पाएगी या भाजपा करीब-करीब सबको रोजगार देगी। तेजस्वी यादव ने एक जनसभा में कहा, ‘रोजगार और नौकरी अलग हैं। हम बात कर रहे हैं 10 लाख की सरकारी नौकरियों की। 10 लाख नौकरियों के लिए हमारा वादा वास्तव में एक हकीकत है। हम राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सरकार की तरह 50 लाख नौकरियों के फर्जी वादे भी कर सकते थे।’ राजद ने जो अन्य वादे किए हैं उनमें फसलों के लिए उच्च न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और किसानों के लिए ऋ ण माफी, बेहतर स्वास्थ्य सेवा सुविधाएं, गांवों में पक्की सड़कें और कंप्यूटर केंद्र, शिक्षा बजट में बढ़ोतरी और सरकारी स्कूलों में ज्यादा शिक्षक जैसे वादे शामिल हैं। हालांकि किसी भी राजनीतिक दल ने यह दावा नहीं किया है कि वे नीतीश के बुनियादी ढांचे के विकास के रिकॉर्ड के मुकाबले और बेहतर कर सकते हैं। यह अपने आप में एक अहम बात है।
जदयू अपनी अपील में लोगों को यह याद दिला रही है कि 15 साल के शासन में क्या हासिल किया गया है और उससे भी अधिक करने का वादा कर रही है। वैशाली और मुजफ्फ रपुर की चुनावी जनसभाओं में नीतीश ने कहा, ‘हमने लोगों को सड़कें, नल का पानी और बिजली दी है। अगर एक और मौका दिया जाए तो हम हर सड़क पर सोलर स्ट्रीट लाइट्स लगाएंगे। हमने हजारों स्कूल भवनों का निर्माण किया है और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार किया है। इसके अलावा बेहतर कनेक्टिविटी के लिए बेहतर सड़कों का निर्माण किया है।’ गठबंधन के सहयोगी दल भाजपा ने न सिर्फ यह दोहराया है कि नीतीश मुख्यमंत्री बने रहेंगे बल्कि यह भी कहा है कि केंद्र और राज्य में एक ही पार्टी वाली सरकार जनता के लिए ज्यादा फायदेमंद हो सकती है।
हालांकि चुनाव के इस चरण के राजग गठबंधन की सहयोगी लोजपा की कड़ी परीक्षा होगी। मध्य बिहार वह क्षेत्र है जहां इस पार्टी की मौजूदगी है खासतौर पर हाजीपुर और वैशाली में। लोजपा ने कई बार कहा है कि यह भाजपा की सहयोगी पार्टी है लेकिन बड़ी संख्या में भाजपा के बागियों को लोजपा ने टिकट दिया है। शायद यही वजह है कि प्रधानमंत्री ने अब तक अपनी किसी भी चुनावी रैली में लोजपा का जिक्र नहीं किया । 2017 में जदयू के राजग में लौटने पर भाजपा ने फिर से राज्य में सत्ता हासिल कर ली। इसने 2015 में 157 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था और 24.42 फीसदी वोट हिस्सेदारी के साथ 53 सीटें जीत ली थीं। तब राजद के नेतृत्व वाले गठबंधन का हिस्सा रहे जदयू ने 101 सीटों में से 71 पर जीत हासिल की थी और वोट हिस्सेदारी 16.83 फीसदी थी। लेकिन अब अहम मुद्दा यह है कि क्या जदयू अपनी यही रफ्तार बरकरार रख सकती है वरना ऐसा नहीं होने पर गठबंधन सत्ता में वापसी करता है तब स्वतंत्र रूप से कामकाज करने के दौरान नीतीश कुमार की अपनी स्वायत्तता से गंभीर समझौता करना पड़ सकता है ।
नीतीश के लिए सबसे बड़ा समर्थन बिहार की 3 करोड़ महिला मतदाताओं का है जिन्हें उन्होंने कई अलग-अलग तरीकों से सशक्त बनाया है जिनमें स्थानीय सरकार में आरक्षण सुनिश्चित करने से लेकर राज्य में शराबबंदी लागू करने तक के कदम शामिल हैं।
उपचुनाव में वर्चुअल प्रचार के उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक
सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के उस फैसले पर रोक लगा दी, जिसमें कोविड-19 के कारण राजनीतिक दलों को 3 नवंबर के विधानसभा उपचुनाव का प्रचार रैली के बजाय वर्चुअल करने को कहा गया था। न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर के पीठ ने भारतीय चुनाव आयोग से कहा कि वह कोविड-19 के दिशानिर्देशों को मद्देनजर रखते हुए राजनीतिक रैलियों के संबंध में उचित फैसला ले। पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय को यह महसूस करना चाहिए था कि जमीन पर स्थिति नहीं बदल रही है। पीठ ने कहा, ‘मामले को मद्देनजर रखते हुुए हम 20 अक्टूबर के फैसले और 23 अक्टूबर के आदेश पर रोक लगाते हैं, लेकिन भारतीय चुनाव आयोग को इस आदेश पर विचार करने और कानूनसम्मत निर्णय लेने का निर्देश देते हैं।’
