प्रतिबंधित आपातकालीन उपयोग के लिए नियामकीय अनुमति हासिल करने वाले पहले भारतीय टीके कोवैक्सीन को लेकर द लैंसेट में प्रकाशित दूसरे चरण के चिकित्सकीय अध्ययन के परिणाम से पता चलता है कि इस चरण के अध्ययन में पाए गए प्रतिरक्षी टाइट्स पहले चरण के अध्ययन के मुकाबले दोगुने रहे हैं। इस अध्ययन को भारत बायोटेक के कृष्णा एल्ला एवं रेचेस एल्ला के साथ ही भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद की उप महानिदेशक निवेदिता गुप्ता एवं महानिदेशक बलराम भार्गव सहित कई अन्य लोगों ने लिखा है।
फर्म का कहना है कि टीके की दो खुराक लेने के बाद टीका हासिल करने वालों में दुष्प्रभाव दिखने की आशंका 10-12 प्रतिशत थी, जो आपातकालीन उपयोग प्राधिकार हासिल करने वाले दूसरे टीकों की तुलना में लगभग छह गुना कम है। दूसरे चरण के अध्ययन में कुल 380 स्वस्थ बच्चों तथा वयस्कों को 4 सप्ताह के अंतराल पर टीकों की दो खुराक दी गईं। भारत बायोटेक ने कहा, ‘दूसरे चरण के अध्ययन में पहले चरण के मुकाबले काफी अधिक (दो गुने) ऐंटीबॉडी टाइट्स पाए गए।’ एक अनुवर्ती अध्ययन से पता चला, भारत बायोटेक एवं आईसीएमआर द्वारा विकसित किए गए टीके कोवैक्सीन ने टीकाकरण के तीन महीने बाद बेहतर ऐंटीबॉडी के साथ ही टी-सेल प्रतिक्रियाओं का उत्पादन किया। वर्तमान में छह महीने और 12 महीनों के लिए इस तरह के अनुवर्ती अध्ययन चल रहे हैं।
लैंसेट में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया, ‘दूसरे चरण में सामने आने वाला सबसे आम प्रतिकूल प्रभाव इंजेक्शन स्थल पर दर्द होना था, जिसके बाद कुछ व्यक्तियों को सिरदर्द, थकान एवं बुखार की भी समस्या देखी गई। इसमें किसी भी तरह की गंभीर या जानलेवा प्रतिकूल घटना नहीं देखी गई।’
लेख में कहा गया, ‘सीरम न्यूट्रलाइजिंग ऐंटीबॉडीज को परीक्षण के पहले चरण में सभी प्रतिभागियों में 104 दिन बीत जाने पर पता चला और इन ऐंटीबॉडी का स्तर सीरम नमूनों के पैनल के समान था। ये निष्कर्ष एमआरएनए-1273 (मॉडर्ना) टीके के अनुसार हैं, जिसे आपातकालीन उपयोग प्राधिकरण मिला है।’
इस अध्ययन में 12-18 वर्ष और 55-65 वर्ष की आयु के प्रतिभागियों की एक छोटी संख्या को भी शामिल किया गया। शोधकर्ताओं ने कहा कि 65 वर्ष और उससे अधिक आयु के बच्चों में इम्यूनोजेनेसिटी स्थापित करने के लिए अनुवर्ती अध्ययन की आवश्यकता होती है।
