सत्ता के नशे में चूर सूबे के नेताओं-माफियाओं को इंजीनियर महज सोने का अंडा देने वाली मुर्गी नजर आते हैं।
उन्हें इस बात का कतई अंदाजा नहीं है कि ये इंजीनियर आर्थिक और कारोबारी विकास का इंजन भी हैं। उनकी इसी नासमझी के चलते आज यूपी में तमाम सरकारी-गैर सरकारी परियोजनाओं पर संकट के काले बादल मंडराने लगे हैं।
इंजीनियर मनोज गुप्ता की हत्या के बाद सूबे में उजागर हुए गुंडाराज से खौफजदा इंजीनियर अब जिलों और निर्माण स्थलों पर काम नहीं करना चाह रहे हैं।
पिछले साल ही राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण का काम कर रहे पावर ग्रिड कॉरपोरेशन के अभियंताओं ने देवरिया और गोरखपुर में माफिया की ओर से वसूली मांगे जाने की शिकायत की थी।
बौध्द परिपथ योजना में बलरामपुर और श्रावस्ती जिलों में तो काम तभी शुरू हो पाया, जब ठेका माफिया को मिला। माफिया के दबाव में अभियंताओं को खराब निर्माण को भी क्लीन चिट देनी पड़ी।
अभी हाल में महत्वाकांक्षी पीपीपी योजना के तहत राज्य सरकार ने पर्यटक गृहों को निजी हाथों में देने की कवायद शुरू की, तो इसमें दिलचस्पी दिखाने वाली एक निजी फर्म को बांदा और इटावा सहित कई जिलों के टूरिस्ट बंगलों में माफिया का कब्जा मिला।
नतीजा, कोई भी निजी समूह इस काम को लेने के लिए आगे नहीं आया। इतना ही नहीं, जब परिवहन विभाग ने राज्य मार्गों पर बसें चलाने के लिए निजी क्षेत्र से प्रस्ताव मांगे तो डग्गामारी के धंधे में लिप्त माफिया ने इसमें भी रोड़े अटकाए।
माफिया और राजनेताओं का गठजोड़ केवल सरकारी कामों पर ही भारी नहीं है, बल्कि निजी क्षेत्र में भी इसका दखल है। मोबाइल टॉवर लगाने के काम पूर्वांचल के एक बाहुबली विधायक के पास हैं, जिन्हें बसपा ने लोकसभा चुनाव में उतरने को हरी झंडी दी है।
प्रदेश के बड़े शहरों में विज्ञापन कंपनियों को होर्डिंग लगाने के लिए माफिया से ही स्थान किराए पर लेना पड़ता है। राजधानी में आवासीय परियोजना ला रहे एक बड़े बिल्डर माफिया ने पहले मुआवजा के नाम पर ब्लैकमेल किया फिर मांग पूरी न होने पर भाड़े के लोगों को आए दिन धरना-प्रदर्शन पर बिठा दिया।
लगातार बढ़ते दबाव और माफिया के बढ़ते प्रभाव के चलते ज्यादातर अभियंता उत्तर प्रदेश में काम नहीं करना चाहते हैं। जो काम कर भी रहे हैं, उनमें से कम ही जिलों में या मलाईदार पदों पर तैनाती चाहते हैं।
पिछली और इस सरकार में भी काफी तादाद में इंजीनियरों ने जिलों में काम करने के बजाए हेडक्वार्टर पर ही तैनाती के लिए अर्जी लगाई है। लोक निर्माण विभाग के अभियंता माफिया की हिटलिस्ट में सबसे ऊपर हैं।
दुश्मन हैं हजारों इस प्रदेश में जान के…
उद्यमियों को कारोबार के लिए बुलावा दे रही सरकार को भी पता होगा कि इस प्देश में किसी भी उद्यमी का पहला साबका राजधानी के एयरपोर्ट पर उतरते ही होता है, जहां वाहन का ठेका माफिया और विधायक मुख्तार अंसारी के कारिंदो के हाथों में है।
जमीन अगर सरकार देती भी है तो उद्यमी को कब्जा पाने के लिए माफिया की जेब गरम करनी होगी। कारखाना लगाने की दशा में आए दिन माफिया को रंगदारी और उनके चेलों को नौकरी भी देनी पड़ती है। खुद माफिया कारखाने को बनवाने से लेकर माल की सप्लाई हर काम का ठेका लेना चाहता है।
अगर मामला इस्पात का है तो मुकाबला माफिया विधायक धनंजय सिंह या अभय सिंह से होगा। कोयले के धंधे में पूर्वांचल के एक बाहुबली, जो हाल ही में सांसद का चुनाव जीते हैं, से जूझना होगा। शराब के कारोबार में आज भी जायसवाल बंधु का नाम सबसे ऊपर है।
बिजली के सामानों की सप्लाई को लेकर आए दिन माफिया गुटों में भिड़ंत होती है। जमीन के कारोबार में करीब-करीब सारे माफिया शामिल हैं।
माफिया अब राजनेता का चोला पहन चुके हैं और इंजीनियर उनके निशाने पर सबसे पहले होते हैं। खराब हालात के चलते ईमानदार लोग न तो उत्तर प्रदेश में काम करना चाहते हैं और न ही कारोबार।
शैलेंद्र दुबे, महासचिव, अखिल भारतीय पावर इंजीनियर संघ
पानी से सस्ता है इंजीनियरों का खून
सत्तापक्ष के बाहुबली विधायक शेखर तिवारी के हाथों मारे गए इंजीनियर मनोज गुप्ता की हत्या उत्तर प्रदेश में विकास परियोजनाओं को अंजाम दे रहे टेक्नोक्रेटों की पहली हत्या नहीं है।
बीते दस सालों में 15 इंजीनियरों को माफिया ने मौत की नींद सुलाया है, जबकि 50 से ज्यादा इंजीनियरों को जान से मारने की धमकी दी जा चुकी है।
इंजीनियर्स एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष अख्तर अली का कहना है कि लगातार हो रही अभियंताओं की हत्या से पूरे उत्तर प्रदेश में दहशत है।
बीते दस सालों में जिन इंजीनियरों की हत्या की गई, उनमें जंगली प्रसाद भारती, एल. एन. सिंह, इंद्रभूषण, एस. सी. राय, मसूद आलम, एस. के. बाजपेयी, अनवर मेहंदी रिजवी, जे. सी. भाष्कर, टी. पी. दत्ता, सुखुराम, राधेश्याम, राजकुमार शर्मा, ए. माथुर, आर. एस. चौधरी और मनोज कुमार गुप्ता हैं।
लगातार हो रही अभियंताओं की हत्या से पूरे प्रदेश में दहशत है। इससे विकास कार्यों पर भी असर पड़ रहा है।
अख्तर अली, प्रदेश अध्यक्ष, इंजीनियर्स एसोसिएशन
सरकार इंजीनियरों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करे।
सुरजीत सिंह निरंजन,
महासचिव, उत्तर प्रदेश अभियंता संघ