रेस्तरां कारोबारी गौरी देवीदयाल पहले की तरह सिर्फ सप्ताहांत में वक्त बिताने ही अलीबाग के विला में नहीं आतीं बल्कि महामारी की वजह से पिछले कुछ महीने में यह उनके काम करने की मुख्य जगह बन गई है। कमरे में बंद रहने के बजाय उनका परिवार खुली जगहों में घूमने के साथ-साथ शानदार तरण ताल का लुत्फ भी उठा रहा है। वह और उनके पति जे यूसुफ अब समुद्र तट के किनारे बसे इस शहर से खाने के कारोबार का प्रबंधन कर रहे हैं और जरूरत पडऩे पर घंटे भर में मुंबई भी पहुंच जाते हैं।
अलीबाग नारियल के पेड़ों से घिरा है। यहां हर तरह की सेवाओं में सुधार हुआ है और अब उन्हें किसी शहरी वातावरण में न रहने का कोई अफसोस नहीं है। यहां फाइबर ऑप्टिक इंटरनेट, डीटीएच टेलीविजन, एसी मरम्मत की सुविधा और घर तक सामान की डिलिवरी की सुविधा भी है। गौरी फिलहाल बड़े शहर में अपना रेस्तरां ‘दि टेबल’ फिर से खोलने के लिए वापस आई हैं लेकिन वह फिर से उसी छोटे शहर में वापस लौटने की योजना बना रही हैं जब तक कि उनकी सात साल की बेटी का स्कूल इस साल के अंत तक ऑनलाइन चलता रहेगा। वह कहती हैं, ‘अलीबाग अब मुंबई के एक उपनगर की तरह लगता है।’
एक दशक से भी अधिक समय से अलीबाग मुंबई के लिए ठीक वैसा ही शहर था जैसा कि लंदन के लिए कॉट्सवोल्ड्स या न्यूयॉर्क के लिए हैम्पटन हैं जहां अमीर और मशहूर लोग सुकून पाने के लिए जा सकते हैं। राज्य सरकार कोंकण के ग्रामीण क्षेत्र को मुंबई के विस्तारित क्षेत्र के तौर पर विकसित करने की कोशिश में है जो शहर पर बढ़ रहे जनसंख्या दबाव में राहत दे सकता है।
यह इस वजह से भी व्यावहारिक लग रहा है क्योंकि यहां ‘रो-रो’ नौका सेवाओं की शुरुआत की गई है जो यात्रियों को अपनी कारों सहित मझगांव के भाऊचा धक्का (नौका घाट) पर सवार होने की सुविधा देता है और यात्री महज 60 मिनट बाद ही मांडवा के नए घाट में उतर सकते हैं। यह सेवा देने वाले एम2एम फेरीज के मालिक आशिम मोंगिया कहते हैं कि लोग यात्रा के दौरान पूरे समय तक अपनी कार में भी रह सकते हैं या फिर जहाज के डेक पर खुली हवा में भी सवारी कर सकते हैं जिसे एक मिनी क्रूज जहाज के मॉडल पर तैयार किया गया है। वैसे उड़ान भरना खतरनाक लगता है लेकिन खुली हवा में सवारी का यह अनुभव अपेक्षाकृत सुरक्षित और सुविधाजनक यात्रा विकल्प के रूप में उभर कर आता है।
2010 के करीब वहां संपत्ति में निवेश करने वाली गौरी कहती हैं, ‘बहुत से लोग पहले वहां निवेश नहीं करने की वजह से अफसोस जता रहे हैं। हम इकतारा और मैगजीन स्ट्रीट किचन के माध्यम से मुंबई से विशेष तरह के व्यंजन ला रहे हैं जो उस खास वर्ग के लिए है जो अलीबाग के अपने विला में फंस गए थे या जिसने महामारी के डर से खुद को यहां अलग रखा है। अगस्त से ही वहां के ऑर्डर में तेजी आई है।’
रो-रो फेरी की शुरुआत 20 अगस्त को हुई जिसकी क्षमता 900 लोगों को ले जाने की है लेकिन यह अधिक से अधिक 500 लोगों को ही ले जाता है। इसके फेरे हर कार्यदिवस में दो और सप्ताहांत में तीन कर दिए गए हैं। टिकट 300 रुपये से लेकर 1,200 रुपये तक हैं और रोजाना यात्रियों की तादाद औसतन 40 फीसदी तक है।
इनमें से कुछ तो अलीबाग के नए निवासी हैं जो अब सप्ताहांत पर आने के बजाय और भी ज्यादा वक्त बिताने लगे हैं। इन लोगों ने एक व्हाट्सऐप ग्रुप बनाया है ताकि तकनीशियन, डॉक्टर और पैदल लंबी यात्रा में साथ देने वाले लोगों की तलाश में भी मदद दी जा सके।
गोरेगांव में रहने वाले फोटोग्राफर डॉमिनिक डेविड ने पिछले साल अलीबाग के पास किहिम में एक अपार्टमेंट खरीदा था और वह छुट्टियों के मौसम में यहीं रहने की योजना बना रहे हैं। वह अपने 49 साल के दोस्त प्रसन्ना पाटिल से प्रेरित थे जिन्होंने 2012 में देश की वित्तीय राजधानी के शोर-शराबे को छोड़कर अपने पैतृक नगर में रहने का फैसला किया जहां उन्हें प्रकृति का भरपूर साथ मिलता है। वह हर हफ्ते शहर में अपने प्रिंटिंग प्रेस से जुड़े काम के लिए जाते हैं। मुंबई पहुंचने के लिए समुद्री रास्ते से घंटे भर की सवारी उतनी लंबी नहीं लगती है और वह अपने सांताक्रूज अपार्टमेंट से शहर के अन्य हिस्सों में जाने के लिए जितना वक्त लगाते थे उसकी तुलना में अब ज्यादा आराम है।
मांडवा में जहां पाटिल ने परिवार के लिए बंगला बनवाया था वहां अब उनकी जुड़वां बेटियां ऑनलाइन क्लास में पढ़ रही हैं। वे अब अलग-अलग पक्षियों की पहचान कर लेती हैं और फूलों से फल तैयार होते हुए देख रही हैं। वह कहते हैं, ‘लॉकडाउन के दौरान मेरे ज्यादातर दोस्त अपने घरों में ही बंद थे लेकिन यहां हमारे लिए खुली जगह थी जिसका हम आनंद ले रहे थे।’
स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां छुट्टियां बिताने वाले लोगों की पहचान उनके पनामा हैट, बोट शूज और धूप के चश्मे से हो जाती है। ये लोग यहां भूखंडों में निवेश करने के लिए भी विकल्प देखने आते हैं। इन क्षेत्रों में 35 लाख रुपये से 45 लाख रुपये तक में एक या दो बेडरूम वाले फ्लैट मिलना मुमकिन है जहां हीरानंदानी जैसे लोग गेट वाली सोसाइटी बना रहे हैं। संभावित मांग ने रियल एस्टेट डेवलपर वैभव जटिया को ‘रिदम ओएसिस’ लॉन्च करने के लिए प्रोत्साहित किया है जो ऐसा रिसॉट्र्स जिसका इस्तेमाल कोई व्यक्ति छुट्टियां बिताने वाले घर के रूप में कर सकता है और जो उनकी ओर से किराये पर भी दिए जाते हैं। उन्होंने अपनी संपत्ति का 75 प्रतिशत हिस्सा बेच दिया है जो अगले जून में इसका संचालन शुरू करेंगे।
राज्य सरकार ने हाल ही में महाराष्ट्र के तट से लगे आठ समुद्री तट के लिए तटीय कमरा बनाने की नीति को मंजूरी दी है जिससे भविष्य में पर्यटन को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। ज्यादा रकम का भुगतान करने के लिए तैयार ग्राहकों की मांग को भांपते हुए सैफ्रॉनस्टे ने इस क्षेत्र में दो ‘एक्स-सीरीज’ या उबर-लक्जरी कॉटेज की पेशकश की है। महज सप्ताहांत के अलावा अब हाल ही में बुकिंग का दायरा महीनों तक के लिए बढ़ाया गया है और हॉस्पिटैलिटी कंपनी लोगों की मदद करने के लिए वाइ-फाई आदि का इंतजाम कर रही है ताकि ग्राहक घर बैठे-बैठे काम कर सकें।
हालांकि हर कोई समान रूप से अलीबाग की संभावनाओं को लेकर अभी तक आश्वस्त नहीं है।
देश की इकलौती मास्टर ऑफ वाइन डिग्री हासिल करने वाली सोनल हॉलैंड गोवा में अपना एक दूसरा घर पसंद करती है जो अलीबाग के शांत माहौल की तुलना में बेहतर सामाजिक माहौल की गुंजाइश देता है। मुंबई के कई रेस्तरां खाने की डिलिवरी कराते हैं और लोगों के बंगले में भी खानपान का इंतजाम करते हैं। हालांकि अब तक किसी ने भी अलीबाग में रसोई या खाने-पीने की जगह नहीं बनाई है। हॉलैंड कहती हैं, ‘मेरा अब भी मानना है कि रेस्तरां और खाने-पीने की संस्कृ ति पूरी तरह से विकसित नहीं हुई है। यहां जाने के लिए कोई छोटा बार या आकर्षक रेस्तरां भी नहीं है। यहां घर के अंदर रहने या एक-दूसरे के घरों में जाने की रवायत है।’ इसके अलावा अलीबाग में बिजली कटौती की समस्या अब भी है और लोगों को अक्सर जेनरेटर पर निर्भर रहना पड़ता है। एम2एम फेरीज के मोंगिया का मकसद इस क्षेत्र की तरक्की करने और यहां लोगों की आवाजाही बढ़ाने को लेकर है। उनकी कंपनी इसके लिए राज्य सरकार के साथ साझेदारी कर रही है। वह कहते हैं, ‘अभी, मुंबई के लोग अलीबाग जा रहे हैं। उनके लिए यह जीवनशैली की बात है। जब अलीबाग के लोग भी मुंबई आ सकते हैं और जीवन के सभी क्षेत्रों के लोग रोजाना की यात्रा करने लगेंगे तब ही सफलता मिलेगी।’
अलीबाग में हमेशा रहने वाले पाटिल जैसे निवासियों को इस बात पर कोई आपत्ति नहीं है कि यहां पूरी तरह शहरीकरण होने में वक्त लगे। वह कहते हैं, ‘हमें उम्मीद है कि यह उतनी तेजी से नहीं हो और इस हद तक नहीं हो कि प्रकृति ही खो जाए।’
