भारत में अल्जाइमर व डिमेंशिया से संबंधित अन्य रोगों से 2019 में 1.29 लाख लोगों की मौत हुई। आंकड़ों के अनुसार देश में अल्जाइमर से होने वाली मौतें साल 2019 में तीन दशकों में सबसे अधिक थीं। यह जानकारी भारत के राज्यों में तंत्रिका संबंधी विकारों (न्यूरोलॉजिकल डिसआर्डर) के बढ़ते दबाव पर लैंसेट के 2021 के अध्ययन में दी गई है।
अल्जाइमर बीमारी से संबंधित मौतों के आंकड़े ‘ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज’ में दिए गए हैं। इन आंकड़ों का बिज़नेस स्टैंडर्ड ने विश्लेषण किया। इस विश्लेषण के मुताबिक 1990 से 2019 के दौरान अल्ज़ाइमर से होने वाली मौतें पांच गुना बढ़ गईं। डिमेंशिया इंडिया रिपोर्ट 2010 के मुताबिक देश में 37 लाख लोग अल्जाइमर से पीड़ित थे। यह आंकड़ा 2019 में थोड़ा बढ़कर 39 लाख हो गया था।
बिज़नेस स्टैंडर्ड के विश्लेषण में अल्जामर के कारण विकलांगता से ग्रस्त सालों और इससे होने वाली मौतों को समायोजित कर अध्ययन किया। साल 1990 से 2019 के बीच अल्जाइमर से पीड़ित सालों और मौतों में चार गुना का इजाफा हो गया। ‘विकलांगता से ग्रसित सालों’ से तात्पर्य यह है कि इस बीमारी से कितने साल व्यक्ति पीड़ित रहा या पीड़ित होने के बाद से उसकी मौत तक की अवधि। साल 1990 से 2019 के बीच ‘विकलांगता से ग्रसित साल’ दोगुने हो गए।
अल्जाइमर तंत्रिका से संबंधित बीमारी है। यह आमतौर पर बुढ़ापे में होती है। भारत सरकार के जनसंख्या के अनुमान के अनुसार 2031 तक देश में बुजुर्गों की आयु 19.4 करोड़ के आंकड़े को छू जाएगी। लांसेट की 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक स्तर पर अल्जामर से पीड़ित मरीजों की संख्या में 2050 तक तीन गुना इजाफा हो जाएगा। वैश्विक स्तर पर साल 2019 में अल्जाइमर से पीड़ित मरीजों की संख्या 5.7 करोड़ थी। अनुमान है कि 2050 तक भारत में अल्जाइमर के मरीजों की संख्या बढ़कर 1.14 करोड़ हो जाएगी।
हालांकि भारत का राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (एनएमएचपी) के तहत भारत का खर्च घट रहा है। (डिमेंशिया का सबसे आम कारण अल्जाइमर है। डिमेंशिया तंत्रिका तंत्र से संबंधित बीमारी है जो धीरे-धीरे बढ़ती जाती है। विश्व स्वास्थय संगठन (डब्ल्यूएचओ)के ग्लोबल हेल्थ ऑबजरेवटरी के मुताबिक भारत के मानसिक स्वास्थ्य की राष्ट्रीय योजना का हिस्सा डिमेंशिया है।
वित्तीय वर्ष 2011-12 में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (एनएमएचपी) पर 113.5 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। यह खर्च वित्तीय वर्ष 2020-21 में 81.9 फीसदी घटकर 20.46 करोड़ रुपए हो गया। सरकार ने साल 1982 में एनएमएचपी कार्यक्रम शुरू किया था। इसका मकसद देश में मानसिक स्वास्थ्य पर बोझ और देश में मानसिक स्वास्थ्य की आधारभूत संरचना की खाई को पाटना था। एनएचमपी के तीन स्तंभ थे : मरीजों का क्लीनिकल इलाज, मरीजों का पुनर्वास और सकारात्मक मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देना।
