बीएस बातचीत
बिहार में राजद के नेतृत्व वाले गठबंधन के साथ मुकेश साहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) का तालमेल नहीं बैठ पाया और बेहद नाटकीय तरीके से इस गठजोड़ का अंत हुआ। साहनी अब राजग से जुड़ चुके हैं और भाजपा ने उन्हें विधानसभा चुनावों में 11 सीटें दी हैं। उन्होंने शिखा शालिनी से अपनी राजनीतिक योजनाओं पर बात की। बातचीत के संपादित अंश:
बिहार के चुनावों में जातिगत आधार के लिहाज से देखा जाए तो आपकी जाति (निषाद) का उतना बड़ा आधार नहीं दिखता लेकिन आपकी सीटों की दावेदारी ज्यादा रही है?
बिहार की राजनीति की एक सच्चाई है कि 1990 के बाद जातिगत राजनीति का बोलबाला बढ़ा है। यह आम धारणा है कि सत्ता में रहने से ही किसी विशेष जाति या वर्ग को लाभ मिल पाता है। रामविलास पासवान से लेकर लालू प्रसाद और नीतीश कुमार ने भी इसी ढर्रे पर काम किया है और अपनी जाति और विचारधारा के लोगों को गोलबंद कर उनके लिए आवाज उठाकर सत्ता में आने की कोशिश की। यह सफल प्रयोग है। सीटों की बात करें तो बिहार में अति पिछड़ा वर्ग की 22 उपजातियां हैं जिनमें निसाद वर्ग की 10 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी है।
आखिर ऐसा क्यों? आप तो राज्य में लगभग हर दल के संपर्क में रहे हैं और पार्टी बनाकर सुनियोजित तरीके से राज्य की राजनीति में अपनी दखल बढ़ा रहे हैं?
मैं अपनी जिंदगी के शुरुआती दौर में एक सामान्य सा मजदूर था और मेरे सफर की शुरुआत 900 रुपये महीने की पगार के साथ हुई थी। मैं मुंबई में फिल्मों के सेट पर सामानों की आपूर्ति से जुड़ा काम करने लगा और बाद में अपनी कंपनी बनाई। आर्थिक रूप से सक्षम होने के बाद मैंने अपने समुदाय के लोगों के कहने पर एक निषाद सम्मेलन दरभंगा के एक मैदान में फरवरी 2014 में कराया जो काफी सफल हुआ। इसके बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), जनता दल (यूनाटेड), राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के लोकसभा उम्मीदवारों ने मुझसे मदद के लिए संपर्क किया। मैंने भाजपा के उम्मीदवारों की मदद की लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद लोग मुझे भूलने लगे किसी ने मुझे शुक्रिया तक नहीं कहा। 2015 में तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि मैं पार्टी की मदद करूं और मेरी मांग का ख्याल रखा जाएगा। मैंने फिर से पार्टी की मदद की लेकिन उनकी राज्य में सरकार नहीं बन पाई। मेरी एक ही मांग थी कि मछुआरा समुदाय को कुछ राज्यों में अनुसूचित जाति का आरक्षण मिला है तो बिहार में भी यह आरक्षण देना चाहिए। जब मेरी इस मांग पर किसी ने ध्यान नहीं दिया तब मैंने अपनी अलग पार्टी बनाने का फैसला किया क्योंकि हमारा वोट बैंक है और मुझे लगा कि सत्ता में आए बगैर ऐसा नहीं हो पाएगा। 2018 में ही हमने विकासशील इंसान पार्टी बनाई। मैं सामाजिक न्याय के लिए लालू यादव के संघर्ष का सम्मान करता हूं और इसकी वजह से ही मैं राजद के गठबंधन से जुड़ा। अति पिछड़ा वर्ग में निषाद समाज की बड़ी हिस्सेदारी है। जब कोई राजनीतिक दल बनता है तो उसका काम चुनाव लडऩा ही होता है और ऐसे में जो आपको सहारा देगा आप उसके ही पास जाते हैं।
राजद के साथ आपका जो विवाद हुआ उस पर इतनी नाटकीय प्रतिक्रिया की क्या जरूरत थी?
तेजस्वी यादव से दो महीने पहले ही 25 सीट और उप मुख्यमंत्री पद की बात हो चुकी थी और उन्होंने भी ना नहीं बोला। लेकिन उनके टालमटोल से मुझे लगा कि मेरे साथ धोखा हो रहा है। मेरे पास कोई विकल्प नहीं बचा था। इससे पहले भी जब लोकसभा और विधानसभा की खाली सीटों पर उपचुनाव हुए तब भी राजद ने पहले गठबंधन के सभी दलों के चुनाव लडऩे पर हामी भरी पर आखिरी वक्त में सारी सीटों पर खुद ही चुनाव लडऩे का फैसला कर लिया। मैंने इसका विरोध किया था और एक सीट पर सिमरी बख्तियारपुर से चुनाव लड़ा और एक सीट पर जीतनराम मांझी चुनाव लड़े। उपचुनाव में मुझे मिले वोट से यह बात स्पष्ट हो गई कि मेरा भी अपना वोटबैंक है। राजद भी यह बात जानती है कि अगर मैं अकेले चुनाव लडूंगा तो अतिपिछड़ा वोटो के दम पर मैं राजग को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाऊंगा। तेजस्वी चाहते थे कि मुझे आखिरी वक्त तक टाला जाए और मुझे कम सीट दी जाए। इस पार्टी में लालू प्रसाद की विचारधारा अब नहीं बची है और नेतृत्व में अनुभव और संघर्ष की कमी है। लेकिन भविष्य में कभी उस पार्टी के नेतृत्व में परिवर्तन होगा तब गठबंधन के लिए सोचा जा सकता है।
यानी आप अपने सारे रास्ते खुला रखना चाहते हैं?
देखिए राजनीति है इसमें कई लोग आएंगे उनके अपने विचार होंगे। राजद कांग्रेस के खिलाफ लड़ते हुए आज उनके साथ चुनाव लड़ रही है। तो ऐसे ही दरवाजा खोल कर चलना ही पड़ता है क्योंकि इसके बाद तो विकल्प ही खत्म हो जाता है। आप सत्ता में रहेंगे तभी कोई बदलाव ला पाएंगे।
आपसे भाजपा में किसने संपर्क किया?
मैंने इस घटना के अगले दिन ही घोषणा कर दी थी कि मैं अकेले या तीसरा मोर्चा बनाकर चुनाव लडूंगा। इसके बाद मेरे पास नित्यानंद राय का फोन आया और फिर भूपेंद्र यादव से बात हुई। जब मैं दिल्ली गया तब सीधे गृहमंत्री से मेरी मुलाकात हुई। मेरे पास उस वक्त कोई शर्त रखने का मौका नहीं था। मुझे भाजपा के खाते से ही सीट मिलनी थी और उस समय तक जदयू और भाजपा के बीच सीटें भी बंट चुकी थीं। इस तरह मुझे 11 विधानसभा सीटें और एक एमएलसी की सीट देने का वादा किया गया।
आपको तो इन 11 सीटों के लिए अपनी ही जाति के उपयुक्त उम्मीदवार नहीं मिले?
मुझे तो 2019 में ही जब मेरी पार्टी कुछ महीने पुरानी थी तभी भाजपा दो लोकसभा सीट देने के लिए तैयार थी लेकिन मेरी प्रतिबद्धता किसी और गठबंधन के लिए थी और मुझे तीन सीटें दी गई थीं। उस लिहाज से तो मेरी दावेदारी 18 सीटों की बनती है। मुझे पिछड़े तबके की बहुलता वाली सीट चाहिए थी जैसे कि मुंगेर, शेखपुरा की सीट। लेकिन इन जगहों पर अधिकतम जदयू की सीटें पहले ही तय हो गईं। मुझे तो भाजपा की ही सीटों में से चयन करना था। ऐसे में मुझे काफी समझौता करना पड़ा जहां मेरे उम्मीदवार नहीं थे। आखिर हम अपनी पार्टी के लोगों को ही चुनाव लड़ाना चाहेंगे ना। मेरी तो जाति आधारित पार्टी है। लेकिन इन 11 सीटों पर से मेरी जाति के चार उम्मीदवार हैं जबकि हमने सभी जातियों का सम्मान करते हुए अनुसूचित जाति, बनिया, ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत, अति पिछड़ा सबको सीट दी है। हमारी पार्टी बिहार के सभी जन समुदाय के लिए है।
चिराग पासवान कह रहे हैं कि भाजपा से उनकी कोई रंजिश नहीं है तो भविष्य में गठबंधन में उनके फिर से शामिल होने की बात में कितना दम दिखाई देता है आपको?
चिराग पासवान ने मेरी सीट पर भी अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं जबकि मैं तो भाजपा के कोटे से हूं। दरअसल बिहार में भाजपा के साथ चिराग का कोई संबंध नहीं है यही एक सच्चाई है।
नीतीश कुमार के नेतृत्व में 15 सालों को किस तरह देखते हैं?
बिहार में अभी काफी काम करने की जरूरत है। दूसरे राज्यों के लिहाज से बिहार की प्रगति काफी कम हुई है। लेकिन जितना भी हुआ वह भी कम नहीं है। नीतीश कुमार को तो सरकार चलाने का बेहतर अनुभव है लेकिन अगर यह कमान तेजस्वी यादव को दे दी जाए तो वह सोच भी नहीं पाएंगे कि उनको करना क्या है। नीतीश कुमार में दूरदर्शिता है और तेजस्वी को तो गठबंधन चलाने तक का तरीका नहीं मालूम है।
बिहार को लेकर आपकी क्या रणनीति है?
2015 से लेकर मैंने निषाद समाज के अधिकारों की बात उठाई है। हम अगर सत्ता में आते हैं तो उनकी हर मांग को देखेंगे। संविधान के दायरे में रहकर काम करेंगे और सभी को एक नजर से देखते हुए बिहार की तरक्की के लिए काम करेंगे। हालांकि मेरा भी मानना है कि जातिगत राजनीति से पूरे बिहार का भला नहीं हो सकता है।