अपने देश में एक वक्त ऐसा भी था, जब लोगों की शादी तक सरकारी नौकरी हासिल करने पर निर्भर होती थी।
भले ही लड़का क्लर्क ही क्यों न हो, लेकिन लोग उन्हें प्राइवेट सेक्टर में बड़े पदों पर काम करने वालों से ज्यादा तरजीह देते थे। उन्हें अपनी बेटियों के लिए ऐसे ही दूल्हों की जरूरत होती थी। उनका कहना था कि सरकारी नौकरियों में भले ही उन्हें पैसे कम मिले, लेकिन नौकरी तो बची रहती है।
लेकिन उसके बाद आया आर्थिक उदारीकरण का दौर, जिसने पुरानी धारणाओं को अतीत के पन्नों में दफन कर डाला।
जब आया नया दौर
आर्थिक उदारीकरण के दौर में कंपनियों ने मोटी से मोटी सैलरी पर लोगों को भर्ती करना शुरू किया। इसने लोगों की सोच को बदलने में अहम भूमिका निभाई। जब लोगों को भरोसा हुआ कि वे बेहद ऊंची सैलरी पा सकते हैं तो इसके लिए उन्होंने जोखिम उठाने में भी परहेज नहीं किया।
हाल यह हुआ अच्छी-खासी सरकारी नौकरियों को छोड़कर लोगों ने प्राइवेट सेक्टर की तरफ रुख करना शुरू किया। आर्थिक उदारीकरण ने लोगों को यह भरोसा दिलाया कि अगर वे अपना काम अच्छी तरह से करना जानते हैं तो उनके लिए मोटी सैलरी और अच्छी नौकरी की कभी कमी नहीं होगी।
लोग इस ओर इसलिए भी खिंचे चले आए क्योंकि यहां सरकारी सेक्टर की तरह लाल फीताशाही नहीं हुआ करती। यहां लोगों को अपनी नई सोच और रचनाशीलता को दिखाने का पूरा मौका मिलता है। इसके अलावा, एक अहम वजह यह भी थी कि सरकारी नौकरियों में कमी थी और अगर थीं भी तो उनमें आरक्षण था।
1997-98 के मंदी के दौर में भी टेलीकॉम और मैनेजमेंट कंपनियों ने बड़ी तादाद में नौकरियां बांटी। प्राइवेट नौकरी ने ही हर किसी के लिए घर और कार का सपना सच करना शुरू कर दिया।
फिर लगा ग्रहण
पिछले कुछ महीनों से वैश्विक आर्थिक मंदी की वजह से कुछ लोग कहने लगे हैं कि अब प्राइवेट सेक्टर की नौकरियां का ग्लैमर खत्म हो रहा है। इसी वजह भी है क्योंकि अक्टूबर तक दुनियाभर में डेढ़ लाख से ज्यादा लोगों को निजी क्षेत्र ने बेरोजगार कर दिया।
हालांकि अमेरिका और यूरोप में तो सरकारी नौकरियों से भी लोगों को निकाला जा रहा है। अभी पिछले महीने ही ब्रिटिश सरकार ने अपने न्याय मंत्रालय से 10 हजार लोगों को निकालने का ऐलान किया है। निजी क्षेत्र में सबसे बुरा हाल है बैंकिंग और वित्त सेक्टर का। सिटीग्रुप ने हाल में 75 हजार कर्मचारियों की छंटनी की है।
यह अंधेरा घना छा रहा…
छंटनी के इस भंवर में अपना मुल्क भी फंस चुका है। अभी हाल ही में जेट एयरवेज ने अपने करीब दो हजार कर्मियों को नौकरी से निकाल दिया, लेकिन बाद में राजनीतिक दवाब में उसे यह फैसला वापस लेना पड़ा।
लेकिन सबसे ज्यादा मार तो टेक्सटाइल इंडस्ट्री पर पड़ी है, जहां करीब सात लाख लोगों को नौकरी से निकाला जा चुका है। वहीं अगले कुछ महीनों में पांच लाख दूसरे लोगों को भी निकाले जाने की तैयारी हो चुकी है।
…वो सुबह कभी तो आएगी
ऐसे ही बुरे माहौल में बिजनेस स्टैंडर्ड ने व्यापार गोष्ठी के जरिए देश की नब्ज टटोलने की कोशिश की। प्रख्यात मैनेजमेंट स्कूल के डीन और करियर परामर्शक के साथ-साथ देशभर के अपने प्रबुध्द पाठकों से हमने यह जानना चाहा कि इस अंधेरे में उन्हें निजी क्षेत्र का सूरज क्या हमेशा के लिए डूबता नजर आ रहा है?
विशेषज्ञों ही नहीं, कमोबेश हर पाठक ने एक सुर में यही माना कि हालात चाहें आज कितने भी बदतर नजर आ रहे हों लेकिन प्राइवेट सेक्टर का सूरज फिर चमचमाएगा। मंदी चाहे जितनी गहरी हो, यह इसके लिए ग्रहण ही है। इस वजह से प्राइवेट सेक्टर का ग्लैमर कभी खत्म नहीं होने वाला।
उनकी राय में सरकारी क्षेत्र भले ही नौकरी और सामाजिक सुरक्षा के साथ-साथ अब मोटा वेतन भी देने लगा हो लेकिन प्रतिभाओं की कदर जितनी शिद्दत से निजी क्षेत्र करता है, किसी और के बस की बात नहीं।
जाहिर है, उनकी राय यही है कि इस बुरे वक्त के बावजूद देश के मेधावी युवाओं को इस क्षेत्र में करियर बनाने की राह से डगमगाने की कोई वजह ही नहीं है। क्योंकि वो सुबह कभी तो आएगी…