भारत तथा जी 24 समूह के अन्य सदस्य देशों ने वैश्विक कर समझौते पर की इस शर्त पर कड़ी आपत्ति जताई है कि भविष्य में डिजिटल सेवाओं पर इक्वलाइजेशन कर जैसा कोई भी कर या शुल्क नहीं लगाया जाएगा। उन्होंने कहा कि यह शर्त उनके संप्रभु अधिकारों के खिलाफ है। विकासशील देशों का कहना है कि अधिकार क्षेत्र से लेकर भविष्य में कोई उपाय नहीं लागू करने समेत कोई भी वादा केवल राजनीतिक प्रतिबद्धता से जुड़ा होना चाहिए।
स्तंभ एक पर प्रगति के बारे में समावेशी प्रारूप की रिपोर्ट पर टिप्पणी करते हुए जी-24 के सदस्यों ने कहा, ‘हमें ध्यान रखना होगा कि राजनीतिक प्रतिबद्धता से परे कोई भी संकल्प या वादा संप्रभु अधिकार क्षेत्र के कानून बनाने वाले अधिकारों को भविष्य में कम कर देगा।’
उभरती अर्थव्यवस्थाओं के इस समूह ने विदहोल्डिंग करों को भी प्रस्तावित समझौते में रखे जाने पर चिंता व्यक्त की है। समूह ने कहा, ‘जी-24 मानता है कि पहले स्तंभ में विदहोल्डिंग करों पर विचार करने से कराधान के मौजूदा अधिकार कम हो जाएंगे और विकासशील देशों के लिए यह अनाकर्षक तथा अर्थहीन हो जाएगा।’समूह ने कहा कि विदहोल्डिंग कर कुछ खास तरह के भुगतान पर ही लगाया जाता है और यह नहीं कहा जा सकता कि वह बचे हुए मुनाफे पर लगता है। जी-24 समूह ने कहा कि वे पहले ही कई बातों में झुक चुके हैं, जैसे शेष लाभ का कम फीसदी हिस्सा लेना और कुछ खास कंपनियों के लिए राजस्व की ऊंची सीमा। इसके अलावा प्रस्तावित विवाद समाधान समिति में बाहर से स्वतंत्र विशेषज्ञ को लाने पर भी कड़ी आपत्ति जताई गई है। सदस्य देशों का कहना है कि समिति के पास दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे अधिक मुनाफा कमाने वाली कंपनियों की बेहद संवेदनशील और सार्वजनिक नजरों से दूर रही जानकारी आ सकती है।
उभरते देशों के समूह के इस नए रुख से गूगल, फेसबुक और नेटफ्लिक्स जैसी दिग्गज डिजिटल कंपनियों पर कर लगाने की वैश्विक बहुपक्षीय व्यवस्था लागू करने में अड़चन आ सकती है। वैश्विक कर समझौते पर अक्टूबर 2021 में 136 देशों ने सहमति जताई थी, जिनमें भारत भी शामिल था। इसके तहत देशों को डिजिटल कंपनियों पर कर लगाने का अधिकार मिल रहा है। इसमें 15 फीसदी की दर से वैश्विक न्यूनतम कॉरपोरेशन कर लागू करने की बात है। व्यवस्था 2023 से लागू होने की उम्मीद है।
वैश्विक कर समझौते के स्तंभ एक के तहत हस्ताक्षर करने वाले सभी देशों को डिजिटल सेवाओं पर कर की अपनी मौजूदा व्यवस्थाएं खत्म करनी होंगी और सभी कंपनियों के बारे में अपने एकतरफा उपाय भी बंद करने होंगे।
पीडब्ल्यूसी में कर-नीति के सलाहकार अखिलेश रंजन ने कहा, ‘अक्टूबर, 2021 में मुनाफे के आवंटन और सीमा आदि पर चर्चा के साथ व्यापक ढांचे पर सहमति हुई थी। उस समय सभी लोग उन शर्तों पर राजी थे। अब जी-24 की चिंता की वजह शायद यह है कि अमेरिका स्तंभ एक के पक्ष में नहीं दिख रहा। उसने न्यूनतम कर के बारे में स्तंभ दो पर भी हस्ताक्षर नहीं किए हैं। ऐसे में विकासशील देश किसी ऐसी शर्त में नहीं बंधना चाहते, जो उनके संप्रभु अधिकारों के खिलाफ हो।’