एक ओर जहां दूरसंचार विभाग (डीओटी) थ्री जी और वाइमैक्स स्पेक्ट्रम एक साथ जारी करने जा रहा है, वहीं दूसरी ओर अभी से यह बहस छिड़ गई है कि इन दोनों वायरलेस तकनीक में से कौन बेहतर है?
वर्ल्डवाइड इंटरपोर्टेबिलिटी फॉर माइक्रोवेव एक्सेस या वाइमैक्स ऐसी टेलीकॉम तकनीक है जिसके जरिये डाटा का आदान-प्रदान बहुत तेजी से होता है। यह तकनीक आईईईई 802.16डी बेसिक फोन और आईईईई 802.16ई तकनीक वाले मोबाइल पर काम करती है। इसके जरिये 70 एमबीपीएस की रफ्तार से डाटा डाउनलोड किया जा सकता है जबकि थ्री जी में केवल 15 एमबीपीएस की गति से डाटा डाउनलोड हो सकता है।
मोबाइल वाइमैक्स से भी तकरीबन 20 एमबीपीएस की तेजी से डाटा डाउनलोड कर सकते हैं। भारत में टाटा कम्युनिकेशंस इंटरनेट सर्विसेज, इंटेल, भारत संचार निगम लिमिटेड, भारती एयरटेल और रिलायंस कम्युनिकेशंस जैसी कंपनियां वाइमैक्स सेवाएं मुहैया कराने के लिए कतार में खड़ी हैं। इनमें से अधिकतर कंपनियां बीटा आधारित तकनीक पर काम करती हैं।
एक टेलीकॉम सेवा प्रदाता कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि ये कंपनियां वाइमैक्स सुविधाएं देने की दिशा में कदम बढ़ा चुकी हैं। कुछ कंपनियां चुनिंदा शहरों में फिक्स्ड वाइमैक्स सुविधाएं मुहैया कराएंगी। टाटा कम्युनिकेशंस इंटरनेट के सीईओ प्रतीक पाशीने कहते हैं, ‘वाइमैक्स एक नई तकनीक है।
अमेरिका, जापान और कोरिया जैसे देशों में यह तकनीक खूब इस्तेमाल हो रही है लेकिन भारत में अभी इसको लंबा रास्ता तय करना है।’ वैसे वाइमैक्स आमतौर पर फिक्स्ड फोन सेवाओं के लिए उपयोग किया जाता है। मोबाइल वाइमैक्स की शुरुआत इसी साल जुलाई में इटली में हुई है।
वाइमैक्स की यह भी खासियत है कि इसके माध्यम से इंटरनेट का इस्तेमाल करना बेहद आसान हो जाता है। वायरलैस ब्रॉडबैंड सेवा प्रदाता यू स्नैपर के सीईओ ब्रह्म सिंह कहते हैं, ‘वाइमैक्स कंपनियों के लिए मुनाफे का सौदा साबित होगी। इंटरनेट के बढ़ते चलन से मोबाइल इंटरनेट और बॉडबैंड सेवाओं को बहुत फायदा होगा।’
हालांकि, इससे जीपीआरएस और मोबाइल पर ई मेल जैसी सेवाएं प्रभावित होंगी क्योंकि लोगों का रुझान वाइमैक्स की ओर अधिक बढ़ेगा। दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) का 2010 तक 2 करोड़ ब्रॉडबैंड कनेक्शन का जो लक्ष्य है उसको पूरा करने में इससे खासी मदद मिलेगी। गौरतलब है कि फिलहाल देश में केवल 43 लाख ब्रॉडबैंड कनेक्शन हैं।
इंटरनेट सेवा प्रदाता ही मुख्य तौर पर इस तरह की तकनीक को अपनाएंगे। वहीं कुछ मोबाइल सेवाएं देने वाली कंपनियां भी स्पेक्ट्रम हासिल करने की होड़ में शामिल हैं। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि वॉयस सेवाओं का जादू फिर से जगाने के लिए कंपनियों को थ्री जी स्पेक्ट्रम ही अपनाना होगा क्योंकि अब 2 जी में गुंजाइश ही नहीं बची है।
वाइमैक्स के लिए उपकरण 5,000 से 10,000 रुपये के बीच में उपलब्ध है जबकि 3 जी वाले उपकरण की कीमत 10,000 हजार रुपये से शुरू होती है। वैसे इन दोनों तकनीकों में बाजी किसके हाथ लगती है यह तो अगले छह महीनों में ही स्पष्ट हो पाएगा जब स्पेक्ट्रम आवंटन की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी।