पहला मेक्लाई जोखिम प्रबंधन सर्वे दिसंबर 2007 में बिजनेस स्टैंडर्ड और मेक्लाई फाइनेंशियल ऐंड कामर्शियल सर्विसेस लि. ने मिलकर किया था।
इस सर्वे में जिन कंपनियों को शामिल किया गया उनमें मझोली (200-250 करोड़)और बड़ी (1000 करोड़) कंपनियां थीं और ये कंपनियां अलग अलग सेक्टर से थीं, जिसमें आईटी सेवाएं, टेक्सटाइल, इंजीनियरिंग, ऑटो पुर्जे, समूह वाली कंपनियां, कमोडिटी और कंज्यूमर उत्पाद बनाने वाली कंपनियां, एग्रो और खाद्य पदार्थ और फार्मा क्षेत्र की कंपनियां शामिल की गईं।
जिन 45 कंपनियों ने सर्वे का जवाब दिया, उनमें से 12 कंपनियों का टर्नओवर 1000 करोड़ रुपए, 13 का 500-1000 करोड़ और 20 कंपनियों का टर्नओवर 250-500 करोड़ रुपए के बीच था। सर्वे के जरिए हमने ये जानने की कोशिश की है कि ये कंपनियां अपने कारोबार के जोखिमों से निपटने के लिए कितनी तैयार हैं।
हालांकि ये सच है कि केवल 45 कंपनियां एकदम सही सैम्पल नहीं बन सकता लेकिन हमने पाया कि ट्रेजरी पर किया गया एक अन्य सर्वे में केवल 32 कंपनियां ही शामिल थीं। हम इस सर्वे को एक शुरुआत के रूप में देख रहे हैं।
हम इन कंपनियों की सूची को हर साल अपडेट करते रहेंगे और उम्मीद है कि दूसरे साल में ही हमारे इस सर्वे में करीब 150 कंपनियां होंगीं। लेकिन इस सर्वे से हमें भारतीय कंपनियों में ट्रेजरी कारोबार के तरीके पर कुछ नई और रोचक जानकारियां मिलीं और यह भी मालूम चला कि किन क्षेत्रों में सुधार की जरूरत है।
परिणाम और विश्लेषण
सर्वे में हमने पाया कि हमारी सैम्पल की गई कंपनियों का औसत इंडेक्स वैल्यू 46 रहा है(100 के कुल स्कोर में)। जिस कंपनी का प्रदर्शन सबसे अच्छा रहा उसका इस इंडेक्स में स्कोर 100 में से 70 था जबकि आठ कंपनियों का स्कोर 60 से ऊपर रहा। जिस कंपनी का स्कोर सबसे खराब रहा उसे इंडेक्स में 19 स्कोर किया और 15 अन्य कंपनियों का स्कोर 40 से कम रहा। इस सबका औसत स्कोर 47.4 का रहा।
ये स्कोर बहुत उत्साहजनक तो नहीं कहे जा सकते बल्कि थोड़े चौंकाने वाले थे। सर्वे से साफ था कि भारतीय कंपनियों में जोखिम प्रबंधन की प्रक्रिया ठीक तरीके से नहीं लागू हो रही है। हालांकि यह भी सच है कि पिछले 4-5 सालों से ही ऐसा हो रहा है कि विदेशी मुद्रा बाजार अपनी उठापटक से लोगों को चौंका रहा है। यह भी सच है कि कंपनियों को भी हाल में ही यह लगना शुरू हो गया है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार से उन्हें खुद ही जूझना होगा और इससे निपटने के लिए उन्हें ही कोई प्रणाली विकसित करनी होगी।
लेकिन इसके बावजूद सर्वे के कुछ नतीजे चौंकाने वाले थे। मिसाल के तौर पर कंपनी के आकार और उसकी ट्रेजरी की मजबूती में कोई संबंध नहीं था। सैम्पल की 12 कंपनियों में जिनकी बिक्री 1000 करोड से ज्यादा की थी, केवल 5 ऐसी थीं जिन्हे 60 से ज्यादा स्कोर मिला, जबकि चार का स्कोर 40 से नीचे था। इसके अलावा कंपनियों में जोखिम और बेहतर ट्रेजरी तरीकों में भी कोई संबंध नहीं दिखा।
सर्वे की जिन 15 कंपनियों को फॉरेक्स यानी विदेशी मुद्रा का जोखिम अहम लगता था, उनमें से केवल तीन ऐसी थीं जिनका रिस्क मैनेजमेंट स्कोर यानी जोखिम प्रबंधन का स्कोर 60 से ऊपर था। हालांकि ये भी हो सकता है कि सर्वे के आकार की वजह से सही तसवीर न उभरी हो लेकिन अगले दो सर्वे में इसे सुलझा लिया जाएगा।
क्या निकला सर्वे में
1- 18 कंपनियां, जिनमें से 5 की बिक्री 1000 करोड़ से ज्यादा थी उनके पास अपनी बिक्री और लागत से जुड़े जोखिम का कोई आकलन नहीं था। जबकि हमारा मानना है कि कंपनियों को कारोबार से जुड़े जोखिमों के बारे में पूरी मालूमात होनी चाहिए जिससे कि जरूरत पड़ने पर उन्हे इससे बचाया जा सके।
जोखिम प्रबंधन का सबसे अहम सच यही होता है कि अगर आप उसे आंक सकते हैं तो आप उसका प्रबंधन भी कर सकते हैं। रोचक बात यह रही कि 27 कंपनियों को अपने कारोबारी रिस्क या जोखिम का अंदाजा ही नहीं था जबकि 14 कंपनियों ने अपनी बिक्री के 5 फीसदी तक के रिस्क का अंदाजा लगा रखा था।
2-सर्वे की आधी से ज्यादा यानी 26 कंपनियों के पास कागज में कोई रिस्क मैनेजमेंट पॉलिसी नहीं थी। ये तथ्य चौंकाने वाला था क्योकि आज के कारोबार में जोखिम प्रबंधन सबसे अहम हिस्सों में से एक हो चुका है।
बल्कि सेबी की लिस्टिंग एग्रीमेंट के कक्लॉस 49 में साफ दर्ज है कि लिस्टेड कंपनियों के वरिष्ठ अधिकारियों को अपने रिस्क मैनेजमेंट प्रॉसेसस लिखित में दस्तखत करके देने होंगे। यहां तक कि रिजर्व बैंक के दिशानिर्देशों में साफ है कि बैंक जिनके पास कागज में कोई रिस्क मैनेजमेंट पॉलिसी नहीं है वो डेरिवेटिव्स की बिकवाली नहीं कर सकते।
सर्वे की 18 में से 4 कंपनियों के पास रिस्क मैनेजमेंट पॉलिसी थी और उनका स्कोर सर्वे में सबसे ऊपर था (60 से ऊपर), 5 का स्कोर 50 से ऊपर था। इससे साफ है कि जिन कंपनियों ने फॉरेक्स रिस्क मैनेजमेंट पॉलिसी की जरूरत को पहचाना भी है उनमें से भी ज्यादातर इसका इस्तेमाल ट्रेजरी कारोबार की मजबूती के लिए नहीं कर पा रही हैं।
3- 13 कंपनियों की स्वतंत्र ट्रेजरी थी। इनमें से 7 कंपनियां बडी थीं और 2 कंपनियां 250-500 करोड़ की रेंज की थीं। लेकिन इनमें से केवल 7 कंपनियों की ट्रेजरी पॉलिसी कागज पर थी। यही नहीं, तीन कंपनियों में बैक ऑफिस से ट्रेजरी डील्स के कंफर्मेशन की कोई व्यवस्था नहीं थी और एक कंपनी के पास तो कोई ट्रेजरी पॉलिसी ही नहीं थी।
4-सर्वे में 5 कंपनियां ऐसी थीं जिनमें ट्रेजरी के काम के लिए 4 लोग काम कर रहे थे (हालांकि यह नहीं साफ था कि क्या वो केवल ट्रेजरी का ही काम कर रहे थे), 9 कंपनियां ऐसी थीं जिनमें ट्रेजरी के लिए 2-4 लोग काम कर रहे थे और बाकी में 2 से कम लोग इसे चला रहे थे।
9 कंपनियां ऐसी थीं जिन्होने अपने ट्रेजरी टीम को साल में 5 दिन से ज्यादा की ट्रेनिंग का बंदोबस्त कर रखा था, 15 कंपनियों ने 2-5 दिनों की ट्रेनिंग की व्यवस्था कर रखी थी और बाकी कंपनियों में 2 दिन से कम की ट्रेनिंग का इंतजाम था।
5-25 कंपनियां एक्सपोर्ट प्राइसिंग के बजट रेट्स के लिए अपनी ट्रेजरी का इस्तेमाल कर रही थीं। इससे साफ है कि इनके कारोबार और रिस्क मैनेजमेंट प्रॉसेस में कोई संबंध नहीं है।
6-केवल 17 कंपनियां ऐसी थीं जिन्हे कॉन्ट्रैक्ट करने की तारीख को ही अपने रिस्क मैनेजमेंट की जरूरत पहचानी थी, बाकी मामलों में इसे बाद में समझा गया। या तो इनवायस की तारीख को या फिर जब ट्रेजरी को एक्सपोजर की तारीख बताई गई।
इससे मालूम चलता है कि ज्यादातर कंपनियों ने इस जोखिम को काफी बाद में पहचाना। हालांकि कुछ मामलों में ये इसलिए भी हो सकता है कि कॉन्ट्रैक्ट केवल वॉल्यूम के लिए होते हैं और इसकी कीमत हर ऑर्डर के समय ही तय होती है।
7-जिन कंपनियों का सर्वे किया गया उनमें से ज्यादातर (45 में से 35) आयात और निर्यात का प्रबंधन अलग अलग करती हैं। लेकिन जो कंपनियां जो इनका हिसाब साथ साथ रखती हैं उनमें से भी ज्यादातर नेचुरल हेजिंग की लागत को घटाने के लिए ईईएफसी खातों का इस्तेमाल करती हैं।
8-ज्यादातर कंपनियां (45 में से 38), जिसमें स्वतंत्र 13 ट्रेजरी वाली कंपनियों में से 12 भी शामिल हैं, को हेजिंग की जरूरत थी, और इनमें से 25 कंपनियों में मैन्डेटरी हेजिंग 50 फीसदी से फिर उससे ज्यादा की थी। लेकिन चूंकि जोखिम की जरूरत देर से समझी जा रही है इसलिए ये कदम बहुत कारगर नहीं हो रहा है।
9-27 कंपनियां ऐसी थी जो हेजिंग के लिए केवल फारवर्ड का इस्तेमाल कर रही थीं जबकि 9 कंपनियां बाकी के तरीके भी इस्तेमाल कर रही थीं। लेकिन इन नौ कंपनियों में से केवल चार ऐसी थी जिनके पास कागजों में कोई रिस्क मैनेजमेंट पॉलिसी थी। हालांकि केवल पॉलिसी होने से रिस्क मैनेजमेंट नहीं हो सकता लेकिन चिंता इस बात की होती है जब कंपनी बिना खतरों को समझे बाजार में काफी अग्रेसिव रहती है और वह अपने डेरिवेटिव के बड़े नुकासनों को रिपोर्ट नहीं करती।
10- करीब 17 कंपनियां ऐसी थी जिनका मार्क टु मार्केट का एक्सपोजर नियमित नहीं था। एक तिहाई कंपनियां ऐसी थी जो बाजार के जोखिम को देख तो रही थी लेकिन उसके प्रबंधन का कोई इंतजाम नहीं कर रही थीं। करीब 11 कंपनियों में उनका सीएफओ मार्क टु मार्केट का एक्सपोजर केवल 15 दिन या महीने भर में एक बार देखता था।
11-सर्वे में 31 कंपनियां के पास या तो ईआरपी थी या वह लागू होने वाली थी, और इनमें से 2 कंपनियां के पास ही कोई ट्रेजरी सॉफ्टवेयर था जिससे साफ है कि ट्रेजरी पर इनका बहुत कम ध्यान था।
संक्षेप में
18 कंपनियां, 5 की बिक्री 1000 करोड़ से ऊपर, बिक्री या लागत के जोखिम का आकलन नहीं
13 कंपनियों के पास स्वतंत्र ट्रेजरी
5 कंपनियों के पास ट्रेजरी में 4 लोग, 9 के पास 2-4 आदमी और बाकी के पास 2 से कम लोग
केवल 25 कंपनियां एक्सपोर्ट प्राइसिंग के बजट रेट्स देने के लिए ट्रेजरी का इस्तेमाल करती हैं
केवल 17 कंपनियां ऐसी हैं जो कॉन्ट्रैक्ट के दिन रिस्क मैनेजमेंट का एक्सपोजर समझ लेती हैं,ज्यादातर कंपनियां बाद में ही इस पर ध्यान देती हैं
45 में से 35 कंपनियां एक्सपोर्ट और इंपोर्ट को अलग अलग मैनेज करती हैं
27 कंपनियां हेजिंग इंस्ट्रूमेंट के रूप में केवल फार्वर्ड का इस्तेमाल करती हैं, 9 कंपनियां बाकी इंस्ट्रूमेंट्स का भी इस्तेमाल करती हैं
17 कंपनियां अपने एक्सपोजर का मार्क टु मार्केट नियमित रूप से आंकतीं हैं
31 कंपनियों के पास ईआरपी यानी एंटरप्राइस रिसोर्स प्लानिंग है या तो है या फिर लागू की जा रही है, केवल दो कंपनियां ट्रेजरी का सॉफ्टवेयर इस्तेमाल कर रही थीं।
जोखिम प्रबंधन नीति
सामान्य तौर पर सर्वे से ये पता चला है कि रिस्क मैनेजमेंट ऑपरेशंस के मामले में छोटी, मझोली और बड़ी कंपनियों में कोई ज्यादा फर्क नहीं है। हालांकि कुछ ऐसे मामले मिले जिनमें छोटी कंपनियों का एक्सपोजर जरूरत से ज्यादा था। लेकिन सर्वे में एक बहुत दिलचस्प बात सामने आई है कि छोटी कंपनियों का हेज इंस्ट्रूमेंट्स का एक्सपोजर मझोली कंपनियों से तीन गुना ज्यादा था जबकि मझोली कंपनियों का एक्सपोजर बडी क़ंपनियों की तुलना में छह गुना ज्यादा था।
इससे बाजार में चल रही मौजूदा डेरिवेटिव्स एक्सपोजर संकट की तसवीर भी साफ हुई है जहां बहुत सारी छोटी कंपनियों ने दावा किया कि उनके कुछ एक्सपोजर की जबरन बिकवाली कर दी गई है। एक और बात जो सामने आई, वह ये कि अपने एक्सपोजर का नियमित मार्क टु मार्केट मेन्टेन नहीं करने वालों में 64 फीसदी छोटी कंपनियां हैं।
मेक्लाई रिस्क मैनेजमेंट इंडेक्स
लोगों का मानना तो यही होगा कि जिन कंपनियों का जोखिम ज्यादा होता है, उससे निपटने के उनके तरीके और प्रक्रिया भी उतनी ही मजबूत होगी। लेकिन सर्वे में हमने ऐसा कुछ नहीं पाया। इस ग्राफ में कंपनियों के मेक्लाई रिस्क मैनेजमेंट इंडेक्स और उनके जोखिम को दर्शाने की कोशिश की गई है। ग्राफ से जाहिर है कि कई कंपनियां जिनके धंधे में जोखिम अच्छा खासा है लेकिन उस रिस्क के प्रबंधन के इंतजाम उन्होंने नहीं कर रखे हैं।
टॉप मैनेजमेंट फोकस
यह बताने की कोशिश है कि रिस्क मैनेजमेंट ऑपरेशंस में सीनियर मैनेजमेंट का फोकस कितना है। हमें यह जानकर कोई अचरज नहीं हुआ कि जब सीनियर मैनेजमेंट का फोकस पॉलिसी को बोर्ड की मंजूरी और बोर्ड को मार्क टु मार्केट की रिपोर्टिंग जैसे मामलों में ज्यादा होता है तो रिस्क मैनेजमेंट पॉलिसी भी ज्यादा मजबूत होती है, हालांकि इन प्रॉसेस को ऑपरेशन में तब्दील करने का काम काफी कमजोर रहता है।
कैसे बना रिस्क मैनेजमेंट इंडेक्स
ये सर्वे इन कंपनियों को एक क्वेश्चनायर यानी प्रश्नावली देकर किया गया था जिसमें ओपन एंडेड और क्लोज एंडेड दोनों ही तरह के सवाल थे। सर्वे में कुल 60 सवाल थे और इनके जवाब सामान्य रूप में मांग गए थे। क्वेश्चनायर में जरिए कार्पोरेट ट्रेजरी का आकलन किया जाना था और यह देखना था कि इसमें सीनियर मैनेजमेंट का कितना फोकस है, कंपनी का आंतरिक रिस्क मैनेजमेंट प्रॉसेस कितना कारगर है और ट्रेजरी ऑपरेशंस कितना सोफेस्टिकेटेड है।
सर्वे में सीनियर मैनेजमेंट फोकस पर 14 सवाल थे, सवाल सामान्य थे, क्या ट्रेजरी पॉलिसी को बोर्ड ने मंजूरी दी है, क्या बोर्ड मार्क टु मार्केट नियमित देखता है, क्या ट्रेजरी के प्रदर्शन का आकलन होता है वगैरह वगैरह। इसके अलावा कंपनी के रिस्क मैनेजमेंट प्रॉसेस पर 22 सवाल थे, जिसमें रिस्क की परिभाषा, रिस्क की मॉनिटरिंग के प्रॉसेस और रिस्क के मैनेजमेंट के प्रॉसेस से जुडी चीजें पूछी गई थीं।
इसके अलावा 20 सवाल ट्रेजरी ऑपरेशंस के सोफेस्टिकेशन, उसका ऑपरेशनल हिस्सा, रिस्क मैनेजमेंट के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले इंस्ट्रूमेंट्स, रिपोर्ट, सिस्टम से जुड़े थे। हां, ऐसे सवाल भी थे जिनका संबंध तीनों सेगमेन्ट से था और उद्देश्य ये था कि इन कंपनियों के ट्रेजरी कारोबार की मजबूती या कहा जाए इसके जोखिम के कितने पुख्ता इंतजाम हैं इसका आकलन किया जा सके।
हर सेगमेन्ट में कंपनियों की रेटिंग 1-100 के स्केल पर की गई और बाद में उसका औसत निकालकर मेक्लाई रिस्क मैनेजमेंट इंडेक्स बनाया गया। किसी भी सर्वे के परिणामों को थोड़ा से फेरबदल से कुछ भी साबित किया जा सकता है, झूठ, सफेद झूठ और वह भी आंकड़ों पर आधारित।
हमने इस सर्वे में कंपनियों के ट्रेजरी ऑपरेशंस को समझने की कोशिश की है और इस कारोबार में उनके रिस्क मैनेजमेंट को इंडेक्स के जरिए दर्शाने का भी प्रयास किया है और यह भी बताने की कोशिश की है कि किसी भी कंपनी का ट्रेजरी कारोबार कितना प्रभावी है।
जैसा कि हम पहले भी कह चुके हैं यह सर्वे सालाना है और आगे हम इसमें केवल कंपनियों की सूची नहीं बढ़ाना चाहते बल्कि हम इस इंडेक्स में सुधार भी देखना चाहेंगे और चाहेंगे कि इस इंडेक्स की सार्थकता बढ़े। हमने कंपनियों के फॉरेक्स कारोबार के जोखिम को भी परखने की कोशिश की है और इसके तहत हमने बिक्री की तुलना में एक्सपोर्ट, लागत की तुलना में इंपोर्ट और कुल लागत में ब्याज का हिस्सा जैसे मुद्दों को इसका आधार बनाया है।