अगर आप अपना मोबाइल नंबर वही बरकरार रखकर अपनी सेवाप्रदाता कंपनी बदलना चाहते हैं तो आपको अपनी इस योजना के लिए थोड़ा होल्ड पर डालना होगा।
इस सेवा को शुरू होने में अभी तीन से छह महीने का समय और लग सकता है। मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी (एमएनपी) नाम से शुरू होने वाली योजना के टलने की मुख्य वजह इस सेवा के लिए जरूरी बुनियादी सेवाओं के अभाव को बताया जा रहा है।
पिछले साल नवंबर में केंद्रीय संचार एवं सूचना प्रोद्यौगिकी मंत्री ए. राजा ने घोषणा की थी कि उपभोक्ता अपना मोबाइल नंबर बिना बदले मोबाइल कंपनी बदल सकते हैं। इस योजना की शुरुआत 2008 की चौथी तिमाही तक की जानी थी। इसको लेकर इन कंपनियों ने भी कुछ सवाल उठाए थे। इनकी मांग थी कि फि क्स्ड लाइन फोन को भी इस योजना के दायरे में लाना चाहिए।
इस बाबत संचार मंत्रालय के एक अधिकारी का कहना है कि इस योजना को अमली जामा पहनाने के लिए दूरसंचार विभाग (डीओटी) को इन कंपनियों का एक समूह बनाना होगा, जिसके जरिये एक केंद्रीय डाटाबेस तैयार करना होगा। इस डाटाबेस में इन कंपनियों और इनके ग्राहकों का रिकॉर्ड रखा जा सकेगा। हालांकि यह काफी लंबी प्रक्रिया है, जिसकी शुरुआत मंत्रालय द्वारा निविदा आमंत्रित करने के बाद ही हो सकेगी।
सरकार अभी निविदा को तैयार करने में लगी है, जिसको चर्चा करने के बाद अंतिम रूप दिया जाएगा। फिर इसके लिए तकनीक चुनने की भी बारी आएगी। इस सबमें जितना समय जाया होगा, योजना शुरू होने में उतना ही वक्त लगाएगी। एमएनपी को परवान चढ़ाने के लिए दूरसंचार विभाग को कु छ नियम भी बनाने होंगे। इसके लिए भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) की भी मंजूरी लेनी होगी। इस मामले में भी लेटलतीफी बरती जा रही है।
नियंत्रक और कंपनियों ने शुरू में इसको लेकर कुछ काम किया लेकिन अब दोनों पक्ष ढीले पड़ते दिख रहे हैं। नवंबर 2007 में सरकार ने एमएनपी को कई स्तरों पर लागू करने की बात कही थी। जिसमें पहले स्तर पर इसे मेट्रो शहरों में शुरू किया जाना है जबकि अप्रैल 2008 तक इसे ए श्रेणी के सर्किल में भी लागू किया जाने की बात कही गई थी। इसमें महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु आते हैं।