मोबाइल विक्रेताओं को अब यह अहसास होने लगा है कि उपभोक्ता मोबाइल पर आने वाले अनचाहे विज्ञापनों को कितना झेलते हैं।
अब उपभोक्ता अपने मोबाइल को प्रबंधन तकनीक (थ्रीपीज) के जरिए किसी अनचाहे विज्ञापन को रोक सकते हैं। इस तकनीक के जरिए उन उपभोक्ताओं के मोबाइल पर अपने मनमाफिक समय पर वैसे विज्ञापन आएंगे जिन विज्ञापनों के लिए वे इजाजत देंगे। इससे मोबाइल विज्ञापनों की क्षमता में भी बढ़ोतरी हो सकती है।
मान लीजिए अगर आप किसी रिटेल स्टोर से कुछ खरीदते हैं और आप चाहते हैं कि इन सामान का कोई लेटेस्ट वर्जन आए तो उसकी जानकारी आपको होनी चाहिए तो आप उस स्टोर से जानकारी मंगा सकते हैं। इस नए चलन को एक नया नाम भी मिल चुका है, ‘इनवरटाइजिंग’। इसका मतलब है ऐड यानी विज्ञापन को अपनी सहूलियत के मुताबिक मंगाना।
दरअसल इसके जरिए उपभोक्ताओं को अनचाहे विज्ञापनों से तो निजात मिल ही जाएगी। नेटकोर सॉल्यूशंस (मोबिलिटी सेल्स)के वाइस प्रेसीडेंट चिराग रनदेरिया का कहना है, ‘दरअसल इनवरटाइजिंग मोबाइल विज्ञापनों से एक स्तर आगे ही है। यह एक ऐसी विज्ञापन जैसी सूचना है जिसका चयन लोग अपने पसंद के मुताबिक करते हैं और किसी ब्रांड से अपना सीधा संपर्क कर लेते हैं। इसलिए विज्ञापनों के जरिए नए ग्राहकों को बनाने में मदद मिलती है तो इनवरटाइजिंग के जरिए संपर्क में कोई ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ता और लगातार संपर्क भी बनाए रखा जा सकता है।’
आधे से ज्यादा विज्ञापनों के ग्राहक एसएमएस का इस्तेमाल करते हैं। केवल 3 प्रतिशत ही ऐसे ग्राहक हैं जो मोबाइल इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं। हमारे देश में मोबाइल मार्केटिंग लगभग 50 करोड रुपये की है।
इस तरह की सेवाओं की मांग बहुत बढ़ रही है। नेटकोर ‘मेरी सहेली’ के विज्ञापन अभियान का काम कर रही है। पश्चिमी रेलवे के फिलहाल 52,786 ग्राहक हैं। यह अपनी सेवाओं के बारे में नियमित जानकारी देती रहती है और नई ट्रेन सेवा के चालू होने और दूसरी सुविधाओं की सूचना भी दी जाती है।
हिन्दुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड के 110 ग्राहक हैं। इसने जब अपना वॉटर प्यूरीफाई प्यूरिट लॉन्च किया तब उपभोक्ताओं ने इस नए दिलचस्प मोबाइल विज्ञापन के फार्मेट का इस्तेमाल भी किया। दूसरी ओर कोलगेट(3,683 ग्राहक), अमूल(3,893 ग्राहक) और दी इकोनॉमिस्ट(6,608 ग्राहक)भी इस तरह के विज्ञापन अभियान चला रहे हैं।
इनवरटाईजिंग ब्रांड और ग्राहक के साथ सीधा संपर्क कायम कर रहे हैं। अब यह उपभोक्ताओं की मर्जी पर होता है कि वे जिन ब्रांड को पसंद करते हैं, जिस दुकान में वे जाते हैं और जिन कंपनियों के उत्पादों को वे खरीदते हैं उन्हीं के विज्ञापनों को अपने मोबाइल पर देखना चाहेंगे।
रनदेरिया का कहना है, ‘इस तकनीक के जरिए डू नॉट कॉल रजिस्ट्री का भी ख्याल रखा जाता है। यह बेहद ही जवाबदेह चैनल है। विज्ञापनदाता अपने हरेक ग्राहकों को भेजे जाने वाले विज्ञापनों के लिए भुगतान भी करते हैं। आने वाले महीने में हम परमिटेड कॉलर रिंग बैक टयून्स के साथ मौजूद होंगे।’
कोई भी ब्रांड अपने 20 फीसदी वैसे ग्राहकों से प्रत्येक महीने, 2 रुपये प्रति ग्राहक के हिसाब से रिश्ता बना सकते हैं जो कंपनी को सबसे ज्यादा फायदा देते हैं। निल्सन ने हाल ही में माईटुडे के 2,000 ग्राहकों का एक सर्वे किया जिनकी औसत आयु 25 साल थी। उसमें से लगभग 80 फीसदी ग्राहक प्रिमियम सेगमेंट से आते हैं और 75 प्रतिशत ग्राहक अपने मोबाइल पर आने वाले हरेक एसएमएस को पढ़ते हैं।
उनमें से केवल 30 प्रतिशत विज्ञापनों पर गौर करके उस पर अमल करने की कोशिश करते हैं। माईटूडे ने पिछले साल 120 से ज्यादा विज्ञापनदाताओं के साथ काम किया है जिन्होंने 200 से ज्यादा कैंपेन कराया है।
एक मोबाइल विज्ञापन कंपनी एमखोज के सीईओ नवीन तिवारी का कहना है, ‘वैसे तो इंटरनेट विज्ञापनों के लिए बेहतर जरिया माना जाता है लेकिन 40 फीसदी से ज्यादा दर्शक अपने बारे में गलत सूचनाएं मुहैया कराते हैं।’
एमखोज ने इनवरटाइजिंग मॉडल के जरिए 50 ब्रांड का विज्ञापन किया है। इंटरनेट के बजाय मोबाइल नंबर के जरिए लक्षित ग्राहकों से बड़ी आसानी से संपर्क साध लिया जाता है। इसमें कोई गलतफहमी की गुंजाइश भी नहीं रहती है और उपभोक्ताओं को अपने मनचाहे विज्ञापन मिल जाते है।