देश के लिए फार्मा नीति बनाने के लिए गठित अंतर मंत्रालयीय समूह के गठन के 16 महीने बाद इसकी अंतिम रिपोर्ट आनेवाली है।
कृषि मंत्री शरद पवार की अध्यक्षता वाला मंत्री समूह 30 अप्रैल को एक बैठक करने जा रहा है जिसमें फार्मा नीति के लिए सिफारिशों को अंतिम रूप दिया जाएगा। इसमें आम आदमी को दवाई उद्योग से जोड़ने की हरसंभव कोशिशों पर बात की जाएगी।
मंत्रिमंडलीय समूह के सामने रखे गए फार्मा नीति के मसौदे में मूल्य नियंत्रण की सीमा को बढ़ाने की भी बात कही है। 55,000 करोड़ रुपये के घरेलू दवाई उद्योग में वर्तमान 20 प्रतिशत की दर को 35 प्रतिशत करने की योजना है। इसका मतलब यह हुआ कि अब मूल्य नियंत्रण के दायरे में 354 दवाएं आ जाएंगी। 11 जनवरी 2007 में इसका गठन किया गया था और उसके बाद से यह इसकी चौथी बैठक है।
मंत्री समूह इस बात की भी सिफारिश कर सकता है कि सभी दवाइयों का कारोबारी मार्जिन क्या होगा और दवाओं की खुदरा बिक्री कैसे की जाएगी। इसके अलावा पेटेंट दवाई और मशीनों की कीमत और दवाओं से जुड़े हुए मामलों को निपटाने की प्रक्रिया पर भी सिफारिश की जाएगी। मंत्रिमंडलीय समूह रसायन मंत्रालय, दवाई उद्योग और स्वास्थ्य पर आधारित एनजीओ के भी विचारों को भी ध्यान में रख रहा है।
एक सूत्र के मुताबिक 30 जनवरी 2008 को हुई बैठक में नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) के मूल्य नियंत्रण पर कड़ाई से पेश आने के सुझावों पर बात की गई थी।एनपीपीए ने इस बात के संकेत दिए हैं कि अब जो दवाओं के दामों को नियंत्रित किया जाएगा वह अनिवार्य होगा और इस संबंध में वास्तविक लागत आधारित मूल्य निर्धारण प्रणाली को नहीं माना जाएगा। मंत्रिमंडलीय समूह का गठन तब किया गया था जब दवाई उद्योग मूल्य नियंत्रण एक लॉबी बनाने लगे थे।
मंत्रिमंडलीय समूह के सदस्यों में रसायन मंत्री रामविलास पासवान, उद्योग मंत्री कमलनाथ, स्वास्थ्य मंत्री अंबुमणि रामदास, विज्ञान और तकनीक मंत्री कपिल सिब्बल और योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया शामिल हैं।दवाओं के दाम को लेकर मंत्रालय और दवा निर्माताओं में लम्बे समय से विवाद रहा है। लेकिन लॉबी के दबाव में अब तक कोई ठोस निर्णय नहीं लिया जा सका था। केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान ने इसे जोर शोर से उठाया था।
आम आदमी के लिए
मूल्य नियंत्रण के दायरे में 354 दवाओं को लाने की तैयारी, दवा उद्योग के 35 प्रतिशत हिस्से पर होगा नियंत्रण।
दवाओं के जो दाम निर्धारित किए जाएंगे, वह लागत आधारित मूल्य प्रणाली पर निर्भर नहीं होंगे।