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इस बार के बजट में वित्तीय कानून कें खंड 65 (105) में नया उपखंड जोड़ा गया है। इसके तहत सूचना प्रौद्योगिकी के विकास पर सेवा कर लगाने का प्रावधान होगा। पैकेज सॉफ्टवेयर पर करों का प्रावधान है और अब कस्टमाइज सॉफ्टवेयर भी कर के दायरे में शामिल हो जाएंगे।
यह नई परिभाषाएं सूचना प्रौद्योगिकी सॉफ्वेयर सेवाओं को ध्यान में रखकर बनाई गई है। इसके तहत संकल्पना, योजना, डिजाइनिंग, सलाह, विकास और सॉफ्टवेयरों का उपयोग शामिल है। हालांकि इस लंबी परिभाषा को लेकर चिंता भी बढ़ी है, लेकिन इन चिंता पर अगले विश्लेषणों में विचार किया जा सकता है।
कस्टमाइज्ड सॉफ्टवेयर को सेवा कर के दायरे में लाने पर महत्वपूर्ण सवाल खड़ा करता है। खासकर, वैट के सापेक्ष में अगर देखें, तो मामला और पेंचीदा लगता है। कुछ राज्य ऐसे हैं, जहां पर सॉफ्टवेयर विकास को वस्तु का दर्जा मिला है।
उच्चतम न्यायालय ने टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज के मामले में एक निर्णय दिया है
, जिसके तहत मीडिया आधारित सॉफ्टवेयर को वस्तु की श्रेणी में रखा गया है, क्योंकि ये खपत, परिवहन, भंडारण आदि प्रक्रिया से गुजरते हैं। ऐसा मालूम होता है कि ये राज्य उच्चतम न्यायालय के इसी निर्णय से प्रेरित दिखते हैं।
हालांकि उच्चतम न्यायालय ने गैर–ब्रांडेड या कस्टममाइज्ड सॉफ्टवेयर को लेकर अपनी अवधारणा को स्पष्ट नहीं किया है, लेकिन न्यायालय ने कहा है कि कस्टमाइज्ड सॉफ्टवेयर वस्तुओं की तरह ही विभिन्न प्रक्रि या से गुजरते हैं, ऐसे में इन पर वैट लागू होगा।
सॉफ्टवेयर विकास को सेवा क्षेत्र में लाने से दुविधा की स्थिति बन गई है। अब यह तय करना मुश्किल लग रहा है कि सॉफ्टवेयर विकास पर सेवा कर लगाया जाए या वैट। इन दो करों को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं जान पड़ती।
जहां तक केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क की बात है
, तो यहां भी मीडिया आधारित सॉफ्टवेयर को वस्तु के रूप में परिभाषित किया गया है। अत: इनके अनुसार, कस्टमाइज्ड औैर पैकेज, दोनों तरह के सॉफ्टवेयर अगर मीडिया आधारित हैं, तो वस्तु के रूप में वर्गीकृत किए जाएंगे।
फिलहाल मीडिया आधारित कस्टमाइज्ड सॉफ्टवेयर करों के दायरे में नहीं रहकर भी वस्तु का दर्जा लिए हुए है। उपरोक्त तथ्य से अवधारणा बन रही है कि सिर्फ ऐेसे कस्टमाइज्ड सॉफ्टवेयर पर कर लगाए जा सकते हैं
, जो मीडिया आधारित नहीं हैं।
एकक महत्वपूर्ण सवाल खड़ा होता है कि ऐसे सॉफ्टवेयर, जो मीडिया आधारित नहीं हैं, वे वस्तु के श्रेणी में बने रहेंगे? इस संबंध में ओईसीडी मॉडल टैक्स कन्वेंशन कमेंट्री की बात पर गौर करें, तो दिलचस्प बात सामने आती है। ओईसीडी के अनुसार, लेन–देन के फलस्वरूप हुई संपत्ति का आशय ऐसे लेन–देन से होना चाहिए, जिसमें डिजिटल उत्पाद ग्राहकों के हाथ में जाती है।
आगे का हाल यह है कि अगर एक पक्ष किसी दूसरे पक्ष को किसी खास वस्तु या संपत्ति के निर्माण के लिए राजी करता है, जिस पर पहले पक्ष को स्वामित्व बरकरार रखना है, तो ऐसे में पहले पक्ष को दूसरे पक्ष से किसी भी तरह के संपत्ति की प्राप्ति नहीं होगी। और लेन–देन सेवा की श्रेणी में आएंगे।
कस्टमाइज्ड सॉफ्टवेयर की अगर बात करें
, तो मूल रूप से विकसित सॉफ्टवेयर पर प्र्रसार से पहले विकास करने का स्वामित्व होगा, न कि प्राप्तकर्ता का। गौर करने की बात यह है कि महत्व सॉफ्टवेयर को दिया जाएगा न कि इसे विकसित करने वाली कार्यकुशलता को।
अत: कस्टमाइज्ड सॉफ्टवेयर पर कर और इसको डिजिटल रूप में उपभोक्ता तक पहुंचाना चुनौती भरा है। सेवा कर कानून में लाए गए नए प्रावधान से ऐसा प्रतीत होता है कि लेन–देन को सेवा के रूप में माना जाएगा और यह सेवा कर के दायरे में आएगा। जो राज्य कस्टमाइज्ड सॉफ्टवेयर के लेन–देन पर वैट लागू करते हैं, उन्हें पुनर्विचार करने की जरूरत पड़ेगी।
उच्चतम न्यायालय के बीएसएनएल मामले में दिए गए निर्णय के अनुसार कस्टमाइज्ड सॉफ्टवेयर पर सेवा कर या वैट में से कोई एक लागू होगा न कि दोनों। स्वाभाविक
–सा प्रश्न खड़ा होता है कि आखिर दोनों में से कौन सा कर लगाया जाए?समस्या की वजह राज्य वैट अधिकारियों औैर केंद्र सरकार द्वारा सॉफ्टवेयर विकास को अपने–अपने तरह से परिभाषित करना है। ऐसे में कास्टमाइज्ड सॉफ्टवेयर के विकास पर लगने वाले दोहरे कर पर जल्द से जल्द विचार करने की जरूरत है।