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  आईटी  मंदी के ‘टशन’ में बॉलीवुड योजनाओं का नहीं ‘वेलकम’
आईटी

मंदी के ‘टशन’ में बॉलीवुड योजनाओं का नहीं ‘वेलकम’

बीएस संवाददाता बीएस संवाददाता | मुंबई—November 11, 2008 10:36 PM IST
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मौजूदा वैश्विक मंदी की मार से बॉलीवुड की किस्मत भी जार जार हो रही है।


टशन, लव स्टोरी 2050, द्रोण और मिशन इस्तांबुल जैसी 40 करोड़ रुपये के बजट की फिल्में बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह पिट चुकी हैं। मीडिया समीक्षक अब फिल्मों का बजट कम होने का अनुमान लगा रहे हैं।

बाजार में पैसों की कमी है और लोगों के पास ऐशो आराम और मनोरंजन पर खर्च करने के लिए अतिरिक्त पैसे नहीं हैं। इस वजह से फिल्में ज्यादा लोगों को टिकट काउंटर तक ला पाने में सक्षम नहीं हो पा रही हैं। जाहिर सी बात है कि इस वजह से बड़ी बजट की फिल्में बॉक्स ऑफिस पर टिक नहीं पा रही हैं।

कुछ बॉलीवुड कंपनियां तो अपने खर्च को कम करने की योजना को अमलीजामा भी पहना रही है। परसेप्ट पिक्चर कंपनी (मालामाल वीकली और ट्रैफिक सिग्नल को बनाने वाली कंपनी) की 2009 में 12-15 परियोजनाएं बनी हुई हैं, लेकिन कंपनी योजना, परिकल्पना और मूल्य को लेकर समीक्षा करने की प्रक्रिया पर विचार कर रही है।

पी9इंटीग्रेटेड (परसेप्ट कंपनी की एक इकाई) के सीईओ नवीन शाह ने कहा, ‘हमलोग डिजिटल, संगीत और उपग्रह अधिकारों के मूल्यों में संशोधन करने पर विचार कर चुके हैं, जो कि 10-15 फीसदी कम हो चुका है। इसमें आगे भी 30 फीसदी की कमी आने की संभावना है।’

शाह यह भी मानते हैं कि इन घाटे को समायोजित करने के लिए बड़े बड़े फिल्मी सितारों द्वारा ली जाने वाली रकम और फिल्म बजट में भी कमी की जा सकती है। प्रभुदास लीलाधर के मीडिया समीक्षक मिहिर शाह कहते हैं कि पूंजी की कमी में बॉलीवुड उस स्थिति में नही है कि किसी परियोजनाओं पर बिना सोचे समझे निवेश किया जाता रहे। वे यह भी मानते हैं कि इस घाटे को पाटने के लिए उत्पादन लागत और फिल्म के विपणन राजस्व में कटौती की जा सकती है।

प्रोडयूसर बैंक से पैसा कर्ज लेकर फिल्में बनाते हैं, लेकिन मौजूदा वित्तीय संकट की वजह से बैंकों से पैसा उगाहना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। प्राइसवाटर हाउसकूपर्स की एसोसिएट निदेशक स्मिता झा ने कहा, ‘यह बात सही है कि फिल्में बनाने के लिए तीन महीने पहले बैंकों से जितनी रकम आसानी से मिल जाती है, उसमें अभी कमी जरूर आई है। इसलिए बॉलीवुड किसी भी नई परियोजना को शुरू करने से पहले पूरी सावधानी बरत रहा है।’

यश राज प्रोडक्शन, करन जौहर की धर्मा प्रोडक्शन और अनिल अंबानी की रिलायंस एंटरटेनमेंट की हालत बहुत खस्ता है। रिलायंस बिग एंटरटेनमेंट के अध्यक्ष राजेश साहनी तरलता में कमी की वजह से किसी परियोजना के ठंडे बस्ते में जाने की बात से मुकर जाते हैं।

हाल ही में अनिल अंबानी की रिलायंस बिग एंटरटेनमेंट और स्टीवन स्पीलबर्ग की ड्रीमवर्क्स एसकेजी के साथ 1.5 अरब डॉलर में एक गठजोड़ हुआ है। इन दोनों कंपनियों ने न्यू एज स्टूडियो बनाया है, जो अगले छह साल तक हर साल छह फिल्मों को प्रोडयूस करेगी।

पीपुल ग्रुप की इकाई पीपुल पिक्चर्स के सीईओ आदित्य शास्त्री मानते हैं कि अभी बड़े बजट की फिल्मों में निवेश के लिए उपयुक्त समय नहीं है। उन्होंने कहा, ‘हमलोगों ने चार फिल्में बनाने की घोषणा की है और वे बन भी रही हैं। पहली फिल्म प्रोडक्शन के बाद के चरण में है और हमलोग दूसरी फिल्म बनाने की प्रक्रिया जनवरी 2009 में शुरू करेंगे। तीसरी फिल्म बनाने की प्रक्रिया मार्च 2009 से शुरू होने की संभावना है।’

उन्होंने कहा, ‘हमलोगों के पास महत्वाकांक्षी योजना कभी नहीं रही है। हमलोग मजबूत पटकथा और कलाकारों के सही समन्वय पर जोर देते हैं, जो आज भी बहुत ज्यादा महंगा नहीं है। इसलिए मंदी की मार से हमलोग ज्यादा परेशान नहीं हैं।’

आजकल जब कोई फिल्में बनती है, तो रिलीज होने से पहले उसकी डीवीडी बन जाती है और उसके संगीत और उपग्रहीय अधिकारों की बिक्री शुरू हो जाती है। इससे फिल्म बनाने की कुल लागत का 30 फीसदी वसूल हो जाता है। मंदी के असर को कम करने के लिए कई कंपनियां संयुक्त उद्यम बनाकर फिल्में लॉन्च कर रही हैं। इससे व्यापार में जोखिम को कम करने में मदद मिलेगी।

no 'welcome' of bollywood plans in 'tashan' of recession
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