भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) की कोशिशें रंग लाई तो अब आप कम कीमत पर ही ज्यादा बातें करेंगे। आप पूछेंगे, इसमें ऐसी कौन सी नई बात है? यह तो ट्राई लंबे समय से कहते आ रहा है।
लेकिन हाल ही में उसने एमवीएनओ के बारे में जो सलाह दी है, उससे आपका यह सपना अब हकीकत बन जाएगा। आप सोच रहे होंगे ये एमवीएनओ क्या चीज है? सीधी-साधी भाषा में एमवीएनओ का मतलब होता है, मोबाइल वर्चुअल नेटवर्क ऑपरेटर्स।
क्या बला है ये?
ट्राई के शब्दों में कहा जाए तो एमवीएनओ वो सेवा प्रदाता होते हैं, जिनके पास स्पेक्ट्रम नहीं होता है, लेकिन वो लाइसेंस प्राप्त टेलीकॉम ऑपरेटरों से समझौता करके अपनी सेवा देती हैं। एरिक्सन में महाप्रबंधक विनय जायसवाल का कहना है कि, ‘आम भाषा में कहा जाए तो एमवीएनओ उन सेवा प्रदाताओं को कहा जाता है, जो टेलीकॉम कंपनियों से किराए पर स्पेक्ट्रम को लेकर सेवा मुहैया करवाती हैं।’
पहली बार एमवीएनओ का कामयाब परिचलन ब्रिटेन में वर्जिन मोबाइल ने 1999 में किया था। एमवीएनओ और लाइसेंस प्राप्त टेलीकॉम कंपनियों के बीच संबंध बाजार के हिसाब से बदलते रहते हैं। वैसे, बाहरी मुल्कों में ज्यादातर एमवीएनओ और लाइसेंस प्राप्त टेलीकॉम ऑपरेटर्स बिल्कुल अलग-अलग कंपनियों की तरह काम करते हैं। उनकी अपनी अलग कॉलरेट और सिमकार्ड होते हैं।
कुछ मुल्कों में तो एमवीएनओ लोगों को टेलीकॉम ऑपरेटरों से बिल्कुल ही अलग नंबर भी देते हैं। दुनियाभर में इस वक्त एमवीएनओ के तीन मॉडल हैं। पहले में तो सस्ते कॉल रेट होते हैं, जबकि दूसरे तरह के एमवीएनओ लाइफस्टाइल से जुड़ी हुई हैं। वहीं तीसरे एमवीएनओ विज्ञापन के जरिये कमाई करते हैं।
क्या हैं इसके फायदे?
टेलीकॉम विश्लेषकों के मुताबिक इसका सबसे बड़ा फायदा तो कंपनियों को है कि उन्हें अपनी सुविधाएं मुहैया करवाने के लिए मोटी लाइसेंस फीस सरकार को अदा नहीं करनी पड़ेगी। वह कम कीमतों पर ही अपनी सेवा मुहैया करवा सकेंगी। साथ ही, इससे लोगों को भी काफी फायदा होगा। उन्हें एक तो कम दरों पर ढेर सारी बातें करने का मौका मिल जाएगा।
साथ ही, उन्हें सस्ती दरों पर कई सारी वैल्यू एडेड सर्विसेज भी मिलेंगी। इसके आने से बाजार में उपभोक्ताओं को नए-नए विकल्प भी मिलेंगे। साथ ही, लाइसेंस प्राप्त टेलीकॉम ऑपरेटरों को इसकी वजह सें अपने पूरे नेटवर्क का इस्तेमाल करने का मौका भी मिलता है।
इसमें भी हैं खामियां
इसकी सबसे बड़ी खामी तो यह है कि इसमें नेटवर्क को लाइसेंस शुदा टेलीकॉम कंपनियों से किराए पर लेनी होती होती है। टेलीकॉम सेक्टरों के विश्लेषकों के मुताबिक यह अपने आप में एक भारी मुसीबत है। पहली बात तो यह है कि इसके लिए एमवीएनओ को मोटी रकम चुकानी पड़ेगी। यह इन कंपनियों के लिए भारी बोझ साबित हो सकता है।
दूसरी बात यह है कि एमवीएनओ एक अलग कंपनी की तरह काम करते हैं और उन्हें लाइसेंस प्राप्त कंपनियों से कोई सहयोग नहीं मिलता है। इस वजह से नई कंपनियों के लिए बिलिंग और कस्टमर केयर का काम काफी मुश्किल हो जाता है।
सेलुयर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआई) के डाइरेक्टर जनरल टी. वी. रामचंद्रन का कहना है, ‘इस बात में संदेह है कि यह मॉडल अपने मुल्क में कामयाब हो पाएगा। दरअसल, विदेशों में वहां एक सर्किल में ज्यादा से ज्यादा दो या तीन ऑपरेटर ही काम करते हैं। लेकिन यहां तो एमवीएनओ को आते ही बड़ी-बड़ी कंपनियों से निपटना पड़ेगा। अपने मुल्क में पहले से ही स्पेक्ट्रम की भारी कमी है।’
बेसब्र देसी कंपनियां
ट्राई ने इस बुधवार को ही इस बारे में सरकार को अपनी सिफारिशें सौंपी हैं। जबसे कंपनियों को इस बारे में खबर मिली है, उनके अधिकारियों का उत्साह छुपाए नहीं छुप रहा है। कई कंपनियां ने इस बारे में अभी से तैयारी भी शुरू कर दी है।
सूत्रों की मानें तो आज की तारीख में जीटीवी समूह, ईएसपीएन. एमटीवी और कई दूसरी कंपनियां ट्राई की इन सिफारिशों के बाद हरकत में आ गई हैं। वैसे, अपने मुल्क में टाटा ग्रुप के साथ समझौता करके ऐसी सुविधा मुहैया करवा रही है।