महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने हाल ही में कहा कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) अध्यक्ष शरद पवार को 2019 में उनके भतीजे शरद पवार के साथ मिलकर बनने वाली सरकार के बारे में पूरी जानकारी थी और उन्होंने इसका समर्थन भी किया था।
फडणवीस ने कहा कि वह झूठ नहीं बोल रहे तथा उनका वक्तव्य 100 फीसदी सच है। फडणवीस ने पुणे में संवाददाताओं से कहा, ‘ मैंने जो भी कहा वह 100 फीसदी सच था और इसमें कुछ भी झूठ नहीं था। मैं उन तमाम व्याख्याओं के बारे में कुछ नहीं कहूंगा जो अब की जा रही हैं। मैं इस विषय पर और बोलना चाहता हूं तथा उचित समय आने पर मैं ऐसा करूंगा। वह समय अभी आना शेष है।’
इस पर शरद पवार ने कहा, ‘मुझे लगता था कि देवेंद्र सुसंस्कृत तथा भद्र व्यक्ति हैं। मुझे कभी नहीं लगा कि वह झूठ का सहारा लेकर ऐसा वक्तव्य देंगे।’
इस प्रकार 23 नवंबर, 2019 के घटनाक्रम को लेकर एक और दिलचस्प अध्याय खुल गया। महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने उस दिन अलसुबह देवेंद्र फडणवीस को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और अजीत पवार को उपमुख्यमंत्री के पद की शपथ दिलाई थी। अक्टूबर 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को 105 सीट पर जीत मिली थी।
भाजपा की साझेदार शिवसेना को 56 सीट मिली थीं। दोनों दलों के पास साझा सरकार बनाने के लिए पर्याप्त बहुमत था लेकिन सत्ता की साझेदारी को लेकर मामला अटक गया। विवाद का विषय था कि आखिर मुख्यमंत्री किस दल का होगा। अजीत पवार ने भाजपा नेताओं से मुलाकात की और बताया कि बहुमत के लिए जरूरी संख्या में विधायक उनके साथ हैं।
सवाल यह है कि क्या शरद पवार यह जानते थे कि उनके भतीजे भाजपा के साथ हैं और क्या उन्हें उनका आशीर्वाद भी प्राप्त था? शरद पवार कहते हैं कि उन्हें अजीत के कदमों के बारे में कुछ भी पता नहीं था। जबकि फडणवीस कहते हैं कि उन्हें सब पता था। कोई तो है जो सच छुपा रहा है। बहरहाल फडणवीस और अजीत पवार का यह दांव कारगर नहीं रहा। सरकार महज तीन दिन चली जिसके बाद उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
2014 के लोकसभा चुनाव के अजीत पवार ने मवाल लोकसभा सीट से अपने बेटे पार्थ के लिए टिकट मांगा, हालांकि शरद पवार ने सार्वजनिक रूप से इसके खिलाफ राय दी थी। पार्थ चुनाव हार गए। 2012 में तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने घोषणा की थी कि उनकी सरकार महाराष्ट्र की सिंचाई परियोजनाओं पर श्वेत पत्र लाएगी। यह श्वेत पत्र जिस मंत्री पर निर्णय देता वह थे अजीत पवार। इस घोषणा ने संभवत: शरद पवार को भी चौंकाया हो।
प्रियम गांधी-मोदी की एक हालिया किताब में फडणवीस के दावों की पुष्टि की गई है कि अजीत पवार को अपने चाचा का पूरा समर्थन हासिल था। किताब में एक फोन कॉल का ब्योरा है जो फडणवीस ने शरद पवार को किया था। इस फोन कॉल में राकांपा और भाजपा ने न केवल मंत्रियों के विभागों के बारे में बातचीत की बल्कि यह चर्चा भी की गई कि एक बार सरकार बनाने में एक दूसरे की मदद करने के बाद संरक्षक मंत्री कौन होंगे।
इसमें शरद पवार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच की बातचीत का भी ब्योरा है जिससे संकेत निकलता है कि बातचीत एकदम उन्नत अवस्था में थी लेकिन तभी शरद पवार ने अपना मन बदल दिया।
शरद पवार के समर्थक कहते हैं कि उन्होंने अजीत पवार को आश्वस्त किया था कि वह उद्धव ठाकरे के अधीन बनने वाली सरकार में उन्हें उपमुख्यमंत्री का पद दिलाएंगे। उन्होंने ऐसा किया भी। लेकिन अजीत को लगा कि वह सौदेबाजी में अपने चाचा को पीछे छोड़ सकते हैं और इसलिए विधानसभा चुनाव के बाद वह भाजपा के पास पेशकश लेकर चले गए।
शरद पवार को हकीकत मालूम थी जबकि अजीत जल्दबाजी में थे। फडणवीस का शरद पवार के बारे में आकलन काफी तिरस्कारपूर्ण रहा है। कुछ वर्ष पहले एक मीडिया कॉन्क्लेव में उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा था, ‘उन्हें शतरंज खेलना पसंद है और मुझे यह खेल ज्यादा पसंद नहीं। शरद पवार को सत्ता की राजनीति और उसके दांवपेच से बेहद लगाव है लेकिन मेरी रुचि केवल विकास कार्यों में है।’
इस बात में बहुत अधिक दम नहीं है। इतिहास इस बात को नकार नहीं सकता कि शरद पवार ने महाराष्ट्र के विकास में कितना योगदान किया है। उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाकर तथा उनकी प्रतिष्ठा को धूल-धूसरित करके शायद फडणवीस महाराष्ट्र के एक नायक को ध्वस्त करना चाहते हैं।
दूसरी ओर, इस मामले में फडणवीस को भी कैसे दोष दिया जाए? वह युवा हैं, उम्मीद के साथ अपना भविष्य तलाश रहे हैं। अजित पवार के साथ मित्रता और राकांपा का टूटना उन्हें और भाजपा को मजबूत करने वाली बात ही है। उद्धव ठाकरे की कहानी अब खत्म है। ऐसे में शरद पवार का पराभव भला क्या नुकसान पहुंचाएगा?
वृहन्मुंबई महानगरपालिका के चुनाव कुछ सप्ताह बाद होने हैं। फडणवीस के हालिया वक्तव्यों को उनसे जोड़कर देखा जा सकता है। राकांपा इस चुनाव में बड़ी खिलाड़ी नहीं है लेकिन फडणवीस के लिए ये चुनाव मायने रखते हैं।
यह देखना दिलचस्प होगा कि इन चुनावों में उद्धव ठाकरे की शिवसेना तथा एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना का प्रदर्शन कैसा रहता है। यह भी देखना होगा कि शरद पवार इन चुनावों में नतीजों को प्रभावित कर भी पाते हैं या नहीं।