वैश्विक वित्तीय बाजारों के लिए कुछ महीने उथल-पुथल भरे रहे हैं क्योंकि उन्हें बढ़ती मुद्रास्फीति की वजह से केंद्रीय बैंकों की सख्ती समेत कई घटनाक्रम का सामना करना पड़ा है। निर्मल बांग में इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के मुख्य कार्याधिकारी राहुल अरोड़ा ने पुनीत वाधवा के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि उन्हें भरोसा है कि बाजार हमेशा चिंताओं के बीच ऊपर चढ़ने में सफल रहे हैं और नई ऊंचाइयां बनाने में सफल रहेंगे। पेश हैं उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश:
क्या वित्तीय बाजारों में अगले कुछ महीनों के दौरान वैश्विक केंद्रीय बैंकों द्वारा उठाए जाने वाले संभावित कदमों का असर पूरी तरह से दिख चुका है?
काफी हद तक वैश्विक केंद्रीय बैंकों के कदमों का असर दिख चुका है और इनका बॉन्ड प्रतिफल में भी बदलाव दिख चुका है। अच्छी बात यह है कि, ये दर वृद्धि शुरुआत हैं और हमें अगले तीन-चार महीनों में हम इन चिंताओं से उबर जाएंगे। जहां इनका प्रभाव कुछ अंतर से महसूस किया जाएगा, वहीं
इक्विटी बाजार मूल्यांकन पर भी असर दिखेगा।
क्या इस उतार-चढ़ाव के बीच वैश्विक इक्विटी बाजारों के लिए कोई सकारात्मक बदलाव है?
सबसे बड़ा सकारात्मक बदलाव यह है कि बाजार चिंताओं के बीच हमेशा चढ़ते हैं और नई ऊंचाइयां बनाने के रास्ते तलाशते हैं। ऐसा हरेक संकट या युद्ध के बाद हुआ है। दुनिया के सामने सबसे बड़ा आर्थिक खतरा मुद्रास्फीति और ब्याज दरों से जुड़ा हुआ है, जिनका आर्थिक प्रभाव काफी ज्यादा है।
आप कब तक उभरते बाजारों, खासकर भारतीय इक्विटी से विदेशी निवेश्न की निकासी दर्ज करेंगे?
इसकी ज्यादा संभावना है कि विदेशी पूंजी इस साल दीवाली के आसपास भारतीय बाजार में वापस लौटेगी। वृद्धि में भारी गिरावट के साथ साथ ऊंची मुद्रास्फीति और कॉरपोरेट आय पर उसका प्रभाव भारतीय बाजारों के लिए एकमात्र सबसे बड़ा जोखिम बना हुआ है। अच्छे मॉनसून की संभावना और 2024 चुनावों के लिए तैयारी (जिससे सरकारी खर्च बढ़ सकता है) से अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ सकेगी और बाजारों के लिए इनका सकारात्मक असर दिखेगा।
घरेलू संस्थागत निवेशक (डीआईआई) और खुदरा निवेशक कब तक अपना उत्साह बनाए रखेंगे?
डीआईआई, खासकर खुदरा निवेशक इस बार भारतीय बाजारों के लिए रक्षक बनकर उभरे हैं। यदि एफआईआई की भारी बिकवाली के बीच वे खरीदारी नहीं करते तो निफ्टी-50 आसानी से 12,500 के स्तरों के आसपास आ गया होता। लेकिन एसआईपी के जरिये निवेश करने के अनुशासित दृष्टिकोण भारतीय निवेशकों से बाजार को मदद मिली है। भले ही कुछ हद तक उनका भरोसा डगमगाएगा, खासकर नई पीढ़ी के शेयरों में गिरावट को देखकर, क्योंकि वे बुलबुले जैसी स्थिति के साथ सूचीबद्ध हुए थे।
क्या बाजार खराब परिवेश – ऊंची मुद्रास्फीति, रुपये में गिरावट, बढ़ते राजकोषीय और चालू खाता घाटा (सीएडी) और बढ़ते कोविड मामलों के लिए तैयार हैं?
मेरा मानना है कि इन सबका असर दिख चुका है। डॉलर के मुकाबले रुपया पहले ही 78 को पार कर चुका है, लेकिन मैं नहीं मानता कि आरबीआई लगातार इसमें कमी लाने पर जोर देगा। मौजूदा स्थिति में हमें सीएडी, मुद्रास्फीति और राजकोषीय घाटे पर हाल में जताए गए अपने लक्ष्यों में बदलाव करने का कोई कारण नजर नहीं आ रहा है। मैं नहीं मानता कि बाजार अब यहां से बहुत ज्यादा कमजोर होगा।
बढ़ती ब्याज दरों और मुद्रास्फीति के बीच आपकी निवेश रणनीति क्या है?
पिछले कुछ वर्षों में समय-वार और कीमत संबंधित गिरावट दर्ज कर चुके क्षेत्र अच्छी वापसी कर सकते हैं, जिनमें बैंकिंग, एफएमसीजी और रसायन मुख्य रूप से शामिल हैं। इन क्षेत्रों में भारी गिरावट आई है। पूरा ग्रामीण थीम चुनाव के संदर्भ अच्छा योगदान देगा।
उधारी महंगी हो रही है। इस सबका मांग और कॉरपोरेट आय पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
जहां आय में हरेक मामले के हिसाब से कटौती की गई है, वहीं मुद्रास्फीति या बढ़ती ब्याज दरों का प्रभाव क्विक-सर्विस रेस्टोरेंट, मल्टीप्लेक्स, खास पेंट कंपनियों आदि पर कम देखा गया है।