मचेंट बैंकरों को ऑल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट फंडों (एआईएफ) के दस्तावेजों की समीक्षा करने के नियामकीय आदेश से रकम जुटाने में देर हो सकती है। परिसंपत्ति प्रबंधक नए एआईएफ के बारे में प्राइवेट प्लेटमेंट मेमोरेंडम (पीपीएम) के जरिए निवेशकों को विस्तृत जानकारी मुहैया कराते हैं। इसमें शुल्क, निवेश रणनीति और अन्य अहम सूचनाएं उपलब्ध होती हैं।
बाजार नियामक सेबी ने मर्चेंट बैंकरों के लिए इन दस्तावेजों की जांच अनिवार्य बना दिया है। यह प्रक्रिया उसी तरह की है जिसमें बैंकर किसी कंपनी के आरंभिक सार्वजनिक निर्गम पर गहराई से नजर डालते हैं जब वह पहली बार आम लोगों को शेयर बेचती है।
इस कदम का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सीमित दृष्टांत है और इसे उद्योग के लिए अतिरिक्त देरी के तौर पर देखा जा रहा है, जिसने महामारी के दौरान मुश्किलों का सामना किया है।
निशिथ देसाई एसोसिएट्स की उप-प्रमुख (फंड फॉर्मेशन) नंदिनी पाठक ने कहा, विपणन की शर्तों की समीक्षा में मर्चेंट बैंकरोंं को शामिल करना अनावश्यक नजर आता है। वैश्विक स्तर पर नियामकों के लिए प्राइवेट प्लेटमेंट मेमोरेंडम की समीक्षा असामान्य है क्योंकि यह विपणन दस्तावेज होता है और अब अकेले समीक्षा का काम बैंकरों पर डाल दिया गया है।
इस काम से प्रक्रिया की लागत बढ़ेगी और एआईएफ में जिस तरह के लोग निवेश करते हैं उसे देखते हुए यह हद से ज्यादा नजर आता है। खेतान ऐंड कंपनी के पार्टनर डी. सिंह ने ये बातें कही। उन्होंने कहा, यह देखते हुए कि एआईएफ खास निवेशकों के लिए होता है, जिसमें प्रवेश की न्यूनतम सीमा होती है। ऐसे में यह पूरी व्यवस्था को बिगाड़ता है। यहां तक कि म्युचुअल फंडों के पेशकश दस्तावेजों को भी मर्चेंट बैंकर नहीं देखते।
एआईएफ में न्यूनतम निवेश एक करोड़ रुपये होता है। सिर्फ मान्यताप्राप्त निवेशक ही इसमें निवेश कर सकते हैं, जिनकी हैसियत ऊंची हो या आय ज्यादा हो। इसे 13 अगस्त अधिसूचित किया गया है, जिसमें कहा गया है कि योजना की पेशकश के कम से कम 30 दिन पहले ऐसे प्लेसमेंट मेमोरेंडम मर्चेट बैंंकरों के जरिये बोर्ड के पास जमा कराया जाना चाहिए, जिसके साथ शुल्क भी दिया जाना है।