भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) बड़े कारोबारी घरानों को बैंकों के संचालन से दूर बनाए रखने के अपने पुराने नजरिये पर कायम है।
इस घटनाक्रम से जुड़े अधिकारियों का कहना है किनई निजीकरण नीति के संदर्भ में सरकार के साथ औपचारिक चर्चाओं में आरबीआई ने इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट कर दिया है।
नीति आयोग ने हाल में सरकार को यह सुझाव दिया था कि दीर्घावधि निजी पूंजी को बैंकिंग सेक्टर में आने की अनुमति दी जानी चाहिए। आयोग ने कुछ खास औद्योगिक घरानों को इस शर्त के साथ बैंकिंग लाइसेंस दिए जाने का भी सुझाव दिया गया था कि वे समूह कंपनियों को उधारी नहीं देंगे।
नियामक की मुख्य चिंता यह है कि यदि बड़े व्यावसायिक घराने बैंकों में नियंत्रक हिस्सेदारी हासिल कर लेंगे तो तो लेनदेन और रकम के इस्तेमाल का पता लगाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। पर्याप्त निगरानी और सख्त कॉरपोरेट प्रशासनिक ढांचे के बावजूद कंपनियां व्यवस्था से बचने के रास्ते तलाश सकती हैं जिससे बैंकिंग क्षेत्र के वित्तीय स्थायित्व पर बड़ा प्रभाव पड़ सकता है।
स्वतंत्र रूप से काम करने वाले वित्तीय सलाहकार आश्विन पारेख भी आरबीआई के तर्क से सहमत दिखे। पारेख ने कहा, ‘कारोबारी घरानों को बैंकों में नियंत्रण हिस्सेदारी लेने की अनुमति देने से बैंकिंग ढांचा प्रभावित हो सकता है, जिससे देश के वित्तीय तंत्र पर बुरा असर पड़ेगा।’
हालांकि सरकार अपने इस प्रस्ताव पर खासा जोर दे रही है। इसे ध्यान में रखते हुए आरबीआई ने कहा था कि अगर कंपनियां बैंकों के परिचालन में उतरती हैं तो उस समूह का पूरा वित्तीय बहीखाता बैंकिंग नियामक की जांच के दायरे में आना चाहिए। सूत्र ने कहा, ‘सरकार को आरबीआई का यह सुझाव पसंद नहीं आया, जिसके बाद बड़े कारोबारी घरानों को बैंकिंग परिचालन में उतरने की अनुमति देने का मामला आगे नहीं बढ़ सकता है।’ दुनिया के ज्यादातर विकसित देशों में कारोबारी घरानों के अधीन बैंकों को रखने की प्रणाली लगभग खत्म हो गई है, खासकर 2008 के वित्तीय संकट के बाद ऐसा अधिक देखने में आया है। अब ऐसा कहा जा रहा है कि बैंकिंग प्रणाली में कारोबारी घरानों को उतरने की इजाजत देने के बजाय बैंकिंग नियामक को बैंकों में संस्थागत मालिकाना हक की अनुमति देने पर एतराज नहीं होगा। बैंकों में अधिकारों के विकेंद्रीकरण एवं निर्णय लेने में दूसरे पक्षों की भागीदारी बढ़ाने और निगमित संलाचन को बढ़ावा देने के लिए आरबीआई ऐसा करने के लिए तैयार हो जाएगा।
आरबीआई इस वजह से भी कंपनियों को बैंकिंग परिचालन में उतरने से रोकना चाहता है कि इससे भविष्य के लिए गलत मिसाल पेश होगी। इस बारे में एक दूसरे उच्च पदस्थ सूत्र ने कहा, ‘जब एक कारोबारी घराने को बैंकिंग लाइसेंस दिया जाएगा तो दूसरे भी कतार में आ जाएंगे। इनमें किसे चुना जाए और किसका आवेदन किया जाए यह तय करना मुश्किल हो जाएगा।’
पिछले साल लक्ष्मी विला बैंक के साथ विलय के लिए इंडियाबुल्स हाउसिंग के प्रस्ताव को नियामक से मंजूरी नहीं मिली थी, कुछ जानकारों के अनुसार जिसकी वजह समूह के विविध व्यावसायिक हित (खासकर रियल एस्टेट क्षेत्र में) हो सकते हैं। हिंदुजा समूह द्वारा प्रवर्तित इंडसइंड बैंक (जिसे 1994 में बैंक लाइसेंस मिला था) को छोड़कर, कोई बड़ा बैंक भारत में किसी व्यावसायिक घराने के स्वामित्व वाला नहीं है। 2021 में जब आरबीआई ने बैंकिंग लाइसेंस आवेदन मांगे तो आदित्य बिड़ला समूह, लार्सन ऐंड टुब्रो, और श्रीराम कैपिटल समेत कई व्यावसायिक घरानों ने इसके लिए आवेदन किए। लेकिन सिर्फ एचडीएफसी बैंक (अब आईडीएफसी फस्र्ट) और बंधन बैंक को ही इसमें सफलता मिली।
