आर्थिक गतिविधियों की रफ्तार बढऩे के साथ ही लघु वित्त बैंक यानी स्मॉल फाइनैंस बैंक (एसएफबी) के पास कर्ज की किस्तें तेजी से आने लगी हैं। इन बैंकों से कर्ज लेने वाले ज्यादातर लोग आर्थिक दृष्टि से समाज के सबसे निचले तबके से आते हैं। वे लोग खुद ही कर्ज चुका रहे हैं ताकि रकम हाथ में रहते हुए भी बेजा कर्ज न बढ़ जाए।
बिजनसे स्टैंडर्ड की वित्तीय वेबिनार शृंखला ‘अनलॉक बीएफएसआई 2.0’ की आज की कड़ी में देश के शीर्ष एसएफबी के मुखिया अपने कारोबार को लेकर काफी आश्वस्त दिखे। हालांकि उनसे लिए गए कर्ज के करीब 90 फीसदी हिस्से की अदायगी मॉरेटोरियम की वजह से मार्च से ही थम गई थी। मगर जुलाई आते-आते उसमें से आधे कर्ज की अदायगी शुरू हो गई थी और इन बैंकों को उम्मीद है कि अगस्त में मॉरेटोरियम खत्म होने के बाद उनका कारोबार पहले की तरह हो जाएगा और किस्तें आने लगेंगी। यह बात अलग है कि अगले कई महीनों तक इन बैंकों का जोर भी किस्तें वसूलने पर ही रहेगा।
वेबिनार में माइक्रोफाइनैंस इंस्टीट्यूशन्स नेटवर्क (एमफिन) के मुख्य कार्य अधिकारी आलोक मिश्र, उज्जीवन एसएफबी के प्रमुख नितिन चुघ, इक्विटास एसएफबी के मुखिया पीएन वासुदेवन, जन एसएफबी के प्रमुख अजय कंवल, एयू स्मॉल फाइनैंस बैंक के मुखिया संजय अग्रवाल और सूर्योदय एसएफबी के प्रमुख आर भास्कर बाबू बतौर पैनलिस्ट आए थे। सभी का कहना था कि इस दौरान सबसे अच्छी बात यही लगी कि बैंकों के कहने पर भी लोग ज्यादा कर्ज लेने के लिए तैयार नहीं हैं। इससे पता चलता है कि गरीब तबका कर्ज को लेकर कितना सतर्क और अनुशासित रहता है। एसएफबी भी अपने कर्जदारों पर दबाव नहीं डाल रहे हैं।
वासुदेवन ने कहा, ‘इस वक्त ग्राहकों को सहारे की जरूरत है, कर्ज चुकाने का दबाव उन पर नहीं होना चाहिए। हमारा और उनका रिश्ता केवल जुलाई-अगस्त के लिए नहीं है। हमारे ग्राहक तीन, चार, पांच साल तक हमारे साथ जुड़े रहेंगे। अगर ग्राहक की कमाई बंद हो गई है तो उसके साथ बात कर उसका दुख बांटना मुझे अच्छा लगेगा।’ लॉकडाउन शुरू होने के बाद वासुदेवन के इक्विटास स्मॉल फाइनैंस बैंक का करीब 90 फीसदी कर्ज मॉरेटोरियम की जद में आ गया था। लेकिन अब केवल 43 फीसदी कर्ज पर मॉरेटोरियम रह गया है।
अलबत्ता सभी की राय यही थी कि मॉरेटोरियम बढ़ाने की कोई जरूरत नहीं है। सूर्योदय स्मॉल फाइनैंस बैंक के भास्कर बाबू ने कहा, ‘मॉरेटोरियम की जरूरत रह नहीं गई। जितना हो गया वही काफी है।’ हालांकि इन बैंकों ने भी लोगों को यह समझाने में काफी पसीना बहाया कि मॉरेटोरियम कर्जमाफी नहीं है और अगस्त में यह सुविधा खत्म हो जाएगी।
एमफिन के सीईओ मिश्र की शिकायत थी कि स्थानीय स्तर पर निहित स्वार्थ वाले लोग और शरारती तत्व लोगों को यह कहकर बहका रहे हैं कि किस्त नहीं चुकाने पर कर्ज माफ कर दिया जाएगा। गनीमत यही है कि अब तक इसे राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाया गया है।उज्जीवन के मुखिया चुघ ने कहा कि मामला शहर या गांव का नहीं रह गया है। जिसके पास काम और कमाई है, वह कर्ज चुकाने आ रहा है। जन स्मॉल फाइनैंस बैंक के कंवल को आर्थिक गतिविधियों में तेजी सबसे अच्छी बात लग रही है क्योंकि इनमें तेजी आने से कर्ज की अदायगी भी तेज हो जाएगी। हालांकि वह मानते हैं कि 100 में से 1 शख्स तो कर्ज अदायगी से बचने के लिए बहाने जरूर बनाएगा।स्मॉल फाइनैंस बैकों के लिए अच्छी बात यह भी है कि नकदी की किल्लत से उन्हें नहीं जूझना पड़ रहा है। जमा पर ब्याज दर कम होने के बाद भी लोग रकम जमा कराने उमड़ रहे हैं। हालांकि ये बैंक पूर्ण वाणिज्यिक बैंकों के आसपास भी नहीं हैं मगर ये भी तकनीक का इस्तेमाल बढ़ा रहे हैं ताकि कर्ज वसूली में तेजी आए और ग्राहकों को भी फायदा हो।
